फ्लायर : जिस स्कूल को आज धरोहर के रुप में विकसित होना चाहिए था आज वह अपनी बदहाली पर आसूं बहा रहा है।

- टी.के.घोष एकेडमी से देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद ने की थी पढाई

- सन् 1882 ई। में डच कंपनी ने की थी टी.के.घोष एकेडमी स्कूल की स्थापना

गौरवशाली इतिहास से जुड़े होने के बावजुद अपने अस्तित्व के लिए स्कूल कर रहा

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PATNA : बिहार में शिक्षा व्यवस्था की खस्ता हाल के बारे में आपने तो बहुत सुना होगा। लेकिन दैनिक जागरण आई नेक्स्ट आज आपको एक ऐसे स्कूल की कहानी बताने जा रहा है। जिसे सुनकर आप भी चौंकजाएंगे। जी हां! हम बात कर रहे हैं टी.के.घोष एकेडमी स्कूल के बारे में। जहां देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ.राजेन्द्र प्रसाद ने पढ़ाई की थी। आज उस स्कूल को एक धरोहर के रुप में विकसित होना चाहिए था, पर वह आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। आजादी से पूर्व इस स्कूल में हजारों स्टूडेंट्स पढ़ते थे। एंट्रेंस टेस्ट के आधार पर स्टूडेंट्स को प्रवेश मिलता था। अंग्रेजों के समय में राजधानी के नामचीन स्कूलों में इसकी गिनती होती थी। अब आलम यह है कि यहां पर एक्का-दुक्का स्टूडेंट्स ही दिखाई देते हैं।

खंडहर मे तब्दील हो रही धरोहर

पटना स्थित टी.के.घोष एकेडमी से राजेन्द्र बाबू ने पढा़ई की थी। इस स्कूल की स्थापना डच कंपनी के द्वारा हुई, जिसे सन् क्88ख् ई। में टी.के.घोष एकेडमी का नाम दिया गया। सीएम नीतीश कुमार नेतरहाट और नवोदय की तर्ज पर सिमुलतल्ला में करोड़ो रुपए खर्च कर स्कूल बनवा चुके हैं। वहीं सरकार द्वारा पुरानी धरोहर को नजरअंदाज किया जा रहा है। बिहार सरकार ने क् अक्टूबर क्977 को इस स्कूल को राजकीय उच्च विद्यालय घोषित तो कर दिया, लेकिन इसकी आधारभूत सरंचना का विकास नहीं किया गया। जिसके कारण इसकी जर्जर स्थिति हो गई है और यह खंडहर मे तब्दील होते जा रहा है।

स्कूल को बचाने के लिए फ्7 दिनों तक चला था अनशन

आपको बता दें कि कभी यह स्कूल स्वतंत्रता आंदोलनकारियों का केन्द्र हुआ करता था। आजादी के बाद इस स्कूल को आदर्श स्कूल बनाने के बजाए इसे अपने अस्तित्व बचाने का संघर्ष करना पड़ा। वर्ष क्977 में इस विद्यालय के कब्जे में क्.099 एकड़ जमीन थी। क्98म् में स्कूल की भूमि को लेकर विवाद शुरू हुआ जो बाद में तुल पकड़ लिया। इस मामले को बिहार विधान परिषद में उठाया गया। उस वक्त स्कूल के एक शिक्षक आर.एन.झा ने इस विवाद को लेकर भूख हड़ताल भी किया था। उनका अनशन पूरे फ्7 दिनों तक चला। लंबी लड़ाई के बाद आखिरकार फ् नवम्बर ख्0क्फ् को पटना के जिलाधिकारी ने भूमि विवाद को निपटाया और स्कूल की जमीन को कानूनी तरीके से स्कूल के प्राचार्य को सौंप दिया।

स्कूल में हैं मात्र भ्म् स्टूडेंट्स

राजेन्द्र प्रसाद ने जिस स्कूल का जिक्र अपनी बायोग्राफी में किया है। आज वहां 9 वीं क्लास में फ्ख् और क्0वीं में केवल ख्ब् स्टूडेंट्स ही हैं। छात्रों की दिनोंदिन घटती संख्या पर स्कूल के प्राचार्य का कहना है कि अभिवावक यहां केवल उन्हीं बच्चों का ऐडमिशन कराते हैं जिनके पास बड़े स्कूलों में दाखिला करवाने के लिए ज्यादा पैसे नहीं होते हैं। इस स्कूल के गौरवशाली इतिहास को बताने के लिए कई प्रयास भी किए गए लेकिन लाभ नहीं मिला। नाम न छापने के शर्त पर वहां के एक कर्मचारी ने बताया कि सरकार की लापरवाही के चलते स्कूल की आज ऐसी दुर्दशा हुई है। यहां कुछ दिन पहले अतिक्रमण का जाल बिछा हुआ था। पर जब कर्मचारियों और स्टूडेंट्स ने इसका विरोध किया तब जाकर स्कूल अतिक्रमण मुक्त हुआ। कर्मचारी ने बताया कि पहले जहां क्भ् क्लास रूम था पर अब यहां केवल ब् कमरे ही बचे हैं। इस स्कूल में बच्चों को पीने का पानी शुद्ध नहीं मिल रहा है और न ही शौचालय की भी व्यवस्था नहीं है।

-कई महान विभूति यहां पढ़ चूके हैं

इस स्कूल में कई ऐसे महान विभूति पढ़ चुके हैं जिन्होने आज देश का मान बढ़ाया है जिसमें भारत रत्‍‌न डॉ। राजेन्द्र प्रसाद, बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री विधानचन्द्र राय, हसन अली ईमाम, बिहार एवं ओडि़सा राज्य के प्रथम वित्तमंत्री डॉ। सच्चिदानंद सिन्हा, अब्दुलबारी सिद्दकी, आइएएस टीपी सिंह, भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी सहित कई प्रसिद्ध लोग आज देश के उच्च पद पर आसीन हैं।

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