पटना (ब्यूरो)। यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन यानी यूजीसी ने सभी यूनिवर्सिटी को अपने यहां लोकपाल की नियुक्ति के आदेश दिए हैं। स्टूडेंट्स की समस्याओं को सुनकर उनका समाधान निकालने के लिए हर यूनिवर्सिटी में ओमबड्सपर्सन यानी लोकपाल का होना अनिवार्य है। लेकिन देश के कई विवि संग बिहार के भी कई यूनिवर्सिटी ने लोकपाल की नियुक्ति नहीं की गई। वहीं अंत समय में पटना विश्वविद्यालय ने लोकपाल नियुक्त तो कर दिया लेकिन उनका कार्यालय नियुक्ति के 20 दिन बाद भी कागजों में ही चल रहा है। ऐसे में यूनिवर्सिटी के छात्र अपनी समस्या को लेकर लोकपाल की तलाश में इधर-उधर भटकने को मजबूर है।

कार्यालय व स्टाफ अबतक नहीं मिला
दरअसल, यूजीसी ने लोकपाल नियुक्ति की अंतिम तिथि सितंबर 2023 रखी थी। अधिकतर यूनिवर्सिटी में इनकी नियुक्ति नहीं होने से इस तिथि को बढ़ाकर यूनिवर्सिटीज को 31 दिसंबर 2023 तक की नई डेडलाइन दी गई थी। पटना विश्वविद्यालय ने अंतत: 19 जनवरी को लोकपाल के नाम पर मुहर लगाई थी कॉलेज के प्रो। रमाशंकर सर को लोकपाल नियुक्त किया गया। लेकिन उनके लिए न तो कक्ष की व्यवस्था की गई और न स्टाफ की। इसकी मुख्य वजह कॉलेज में प्रभारी वीसी का होना बताया जा रहा है। उनकी विश्वविद्यालय में मौजूदगी न होने की वजह से लोकपाल के कक्ष की व्यवस्था पर मुहर नहीं लग पा रहा है।

यह विवि डिफॉल्टर लिस्ट से बाहर
इधर, यूजीसी की डेडलाइन के तहत लोकपाल नियुक्त नहीं किए जाने के कारण बिहार के 15 विश्वविद्यालय को यूजीसी ने डिफॉल्टर घोषित कर दिया है। इन विश्वविद्यालय में नौ माह में लोकपाल नियुक्त नहीं हुए थे। जिसके कारण यूजीसी ने इन्हें डिफॉल्टर घोषित कर दिया है और केंद्रीय अनुदान देने पर रोक लगा दी है। साथ ही राष्ट्रीय उच्च स्तरीय शिक्षा अभियान समेत भारत सरकार से मिलने वाले तमाम तरह के अनुदान पर रोक लगाने की आशंका है। केवल आर्यभट्ट नॉलेज यूनिवर्सिटी और मगध विश्वविद्यालय डिफॉल्टर लिस्ट से बाहर है।

ये विश्वविद्यालय हैं डिफॉल्टर
यूजीसी ने 11 अप्रैल 2023 को ही विश्वविद्यालय के लिए छात्रों की शिकायत निवारण का रेगुलेशन जारी किया था। इसके साथ ही एक महीने के भीतर लोकपाल की नियुक्ति की चेतावनी दी थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ऐसे में यूजीसी ने इन कॉलेजों को डिफॉल्टर घोषित किया है। सूची में पटना विश्वविद्यालय भी था, लेकिन जनवरी माह में ऐन केन प्रकारेण पीयू ने लोकपाल की नियुक्ति कर दी। लेकिन पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय, बिहार इंजीनियरिंग यूनिवर्सिटी, बिहार यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज, मौलाना मजहरूल हक अरबी फारसी विश्वविद्यालय, वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय आरा, बीआरबी मुजफ्फरपुर, जयप्रकाश विश्वविद्यालय छपरा, संस्कृत विश्वविद्यालय दरभंगा, एलएनएम विश्वविद्यालय दरभंगा, टीएमबीयू विश्वविद्यालय भागलपुर, बीएन मंडल विश्वविद्यालय मधेपुरा, बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर, मुंगेर विश्वविद्यालय मुंगेर, पूर्णिया विश्वविद्यालय पूर्णिया शामिल है।

क्या कहता है रेगुलेशन
छात्रों से भेदभाव और प्रवेश, परीक्षा तथा परिणाम की प्रक्रिया से संबंधित भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए विश्वविद्यालय को छात्र शिकायत निवारण समिति एसजीआरसी का गठन करना है। एसजीआरसी के फैसले से असहमत होने पर लोकपाल के पास अपील कर सकते हैं।

ऐसे मामलों की सुनवाई
- अयोग्य छात्रों को प्रवेश देना
- योग्यता होने पर भी किसी छात्र को प्रवेश देने से इनकार करना
- सीटों के आरक्षण के कानून का पालन नहीं करना
- एससी-एसटी, ओबीसी, महिला, अल्पसंख्यक अथवा दिव्यांग छात्रों से भेदभाव
- परीक्षा परिणाम में अनुचित तरीका अपनाना

लोकपाल के नहीं होने से यह है नुकसान
विश्वविद्यालयों में भ्रष्टाचार तथा छात्रों से भेदभाव के मामले की सुनवाई की औपचारिक व्यवस्था नहीं है। इसलिए कानूनी तौर पर गठित एक अर्धन्यायिक निकाय के होने से इसका समाधान हो सकता है। लोकपाल को इतने अधिकार दिए गए हैं कि वह कुलपति के दबाव से मुफ्त होकर फैसले ले सकता है। 10 वर्षों या इससे अधिक समय तक जिलों में न्यायाधीश रह चुके व्यक्ति को लोकपाल नियुक्त करने का प्रावधान है या सेवानिवृत्त कुलपति या डीन या 10 सालों के अनुभव वाले सेवानिवृत्त प्रोफेसर को भी लोकपाल बनाया जा सकता है।