हर हफ्ते कोई ना कोई नया मामला जरूर

मुश्किल का लेवल क्या होता है, इसके आधार पर ही इन रिश्तों का फ्यूचर तय होता रहा है। लेकिन हाल के दिनों में ये घर के झगड़े महिला आयोग और वीमेन हेल्पलाइन के पास तक पहुंच रहे हैं। दोनों के रिकॉर्ड पर गौर करें तो साफ है कि हर हफ्ते कोई ना कोई नया मामला जरूर आ जाता है।

Interference नहीं हुआ बर्दाश्त

आशियाना रोड की पंखुड़ी सिंह (बदला हुआ नाम) की शादी 2012 नवंबर में हुई। पंखुड़ी का ससुराल एक ज्वाइंट फैमिली था। थोड़े दिनों बाद ही सास और ननद उसके कई कामों में इंटरफेयर करने लगी। इससे झगड़े होने लगे। अब उसने अपनी शिकायत वीमेन हेल्प लाइन के पास की है।

Job  करने की जिद

रागिनी गुप्ता की शादी 2012 जुलाई में हुई। रागिनी के पति पटना हाई कोर्ट में एडवोकेट हैं। रागिनी इंडिपेंडेंट लाइफ जीना चाहती थी। इसलिए उसने नौकरी की बात कही लेकिन ससुराल वालों ने मना कर दिया। अब रागिनी ने इसी इश्यू को लेकर महिला आयोग में मामला दर्ज करा दिया है।  

वीमेन हेल्प लाइन में 2012 में आने वाले केस

जुलाई - 5

अगस्त - 6

सितंबर - 2

अक्टूबर - 3

नवंबर - 4

दिसंबर - 3

जनवरी 2013 - 5

फरवरी 2013 - 3

मार्च  2013 - 2

अप्रैल 2013  - 3

मई 2013  - 2

वीमेन कमीशन में 2012 - 2013 में आने वाले केस

जुलाई 2012 - 3

अगस्त 2012 -2

सितंबर 2012 - 2

अक्टूबर 2012 - 3

नवंबर 2012 - 4

दिसंबर 2012 - 4

जनवरी 2013  - 5

फरवरी  2013  -1

मार्च  2013   - 3

अप्रैल 2013  - 5

मई 2013  - 3

नए रिश्तों को दें थोड़ा समय

- शादी से पहले अपने ससुराल पक्ष के बारे में पूरी पड़ताल करें

- नए माहौल में एडजस्ट करने के लिए थोड़ा समय चाहिए, इसलिए अपने आप को और ससुरालजनों को समझने का मौका दे

- किसी भी बात पर तुरंत रिएक्शन ना दें। कुछ भी कहने-करने से पहले उसके प्रभाव के बारे में सोचें।

- खुद की सोच पॉजिटिव रखें, इमोशंस पर कंट्रोल रखें।

- कोई प्रॉब्लम आती है तो अपने पति से इस बारे में खुलकर बातें करें

- रिस्पांसिब्लिटी लेने की आदत डालें

डॉ। आसिफ अली, साइकोलॉजिस्ट

फैमिली का मतलब समझना होगा

- न्यूक्लीयर फैमिली का टें्रड बढ़ता जा रहा है। इस कारण आपसी मन मुटाव अधिक हो रहे हैं

- आज की गल्र्स ज्वाइंट फैमिली में नहीं रहना चाहती। इससे सास ससुर या ननद के साथ रहना और उनकी बातें सुनना पसंद नहीं करती हैं।

- आज के जेनरेशन को रिश्तों की परख कम होती जा रही है। वो बस फ्री रहना चाहते है। उनकी चीजों में कोई रोक टोक करें, ये उन्हें बरदाश्त नहीं है

- एडजस्ट करना आज किसी को पसंद नहीं, हर कोई बस अपनी बातें थोपना चाहता है

सोशियोलॉजिस्ट डा। रेणु रंजन के कहेनुसार

इस तरह के केसों की संख्या काफी बढ़ गई है। इसमें अधिकांश मामले आपसी अंडरस्टैडिंग की कमी के कारण होता है। लड़का हो या लड़की एक दूसरे की सुनना ही नहीं चाहते। हम दोनों फैमिली की काउंसिलिंग करते हैं। बस एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाया जाता है।

प्रमिला, प्रोजेक्ट ऑफिसर, वीमेन हेल्प लाइन