पटना (ब्यूरो)। इबादत का पाक महीना रमजान हर रोजेदार के लिए खास होता है। रमजान का इंतजार रोजेदार को साल भर रहता है। इस्लाम को मानने वाले ज्यादातर लोग रोजे रखते हैं। इस माह को पाक माना जाता है। मान्यता के अनुसार रमजान में ही हजरत मोहम्मद पैगंबर के जरिए कुरान की आयतों को उतारा गया था, इसलिए इस माह को 'कुरान का महीनाÓ भी कहा जाता है। कहा जाता है कि रमजान में जो लोग खुदा की इबादत करता है उनके लिए अल्लाह जन्नत की द्वार खोल देते हैं। इसलिए 14 साल के उपर सभी लोग रोजे रखते हैं। रोजे के दौरान जकात और फितरा का बड़ा महत्व है। हर मुस्लिम अपनी कमाई से ढाई परसेंट जकात के रूप में देते हैं। आज दैनिक जागरण आई नेक्स्ट में क्या है खास महत्व

नेक काम करने की परंपरा
धर्मगुरुओं ने बताया कि माह ए रमजान में अल्लाह रोजेदारों के लिए न सिर्फ जन्नत के द्वार खोल देते हैं बल्कि शैतानों को कैद कर लेते हैं। रमजान के पाक माह में रोजेदार अधिक से अधिक नेक काम करते हैं। 14 से उपर हर मुस्लिम रोजा रखते हैं। रोजदार न सिर्फ रोजा रखते हैं बल्कि नमाज और कुरान पढऩे के अलावा जकात और फितरा को भी विशेष महत्व दिया गया है और इसे मुस्लिम का फर्ज बताया गया है। जिससे दूसरे रोजेदार को भी ईद मनाने में सुविधा होती है।

जकात देने पर होती है इबादत कुबूल
रोजेदार अजहर ने बताया कि मुस्लिम धर्म में जकात का तात्पर्य दान करने से है। रमजान के पवित्र माह में हर मुस्लिम को जकात अदा करना जरूरी बताया गया है, क्योंकि पूरे माह जो खुदा की इबादत करते हैं वो जकात देने के बाद ही कुबूल होता है। मान्यता है कि व्यक्ति रमजान के दिनों में जितना ज्यादा जकात करते हैं, उनके घर उतनी ज्यादा बरकत आती है। इससे जरूरतमंद की मदद होती है और जकात करने वाले का रिश्ता अल्लाह से और मजबूत हो जाता है। लेकिन जकात में खर्च किए जाने वाले धन मेहनत की कमाई से होने चाहिए। जकात विधवा महिलाओं, अनाथ बच्चों, बीमार व कमजोर व्यक्ति आदि किसी भी जरूरतमंद को दी जा सकती है।


परिवार के मुखिया देते हैं फितरा
समाज सेवक तुफैल अहमद अंसारी ने बताया कि फितरा यानी चैरिटी। जो लोग संपन्न हैं, धन की कोई कमी नहीं है, उन्हें रमजान में ईद से पहले जरूरतमंदों को फितरा की रकम अदा करने की बात कही गई है। फितरा से जरूरतमंदों को ईद मनाने में मदद मिलती है। फितरा देने के लिए नियम है कि परिवार के मुखिया अपने परिवार के सदस्यों की संख्या को जोड़कर हर मेंबरे के हिसाब से दो किलो गेहूं के मूल्य के बराबर रकम दान के रूप में देते हैं। उदाहरण के लिए अगर किसी परिवार में मुखिया को लगाकर पांच मेंबर हैं तो 10 किलो गेहूं का जो मूल्य होगा उसे फितरा के तौर पर जरूरतमंदों को दान करने की परंपरा है। हालांकि अगर किसी रोजेदार के पास उतना फितरा की रकम अदा करने की क्षमता नहीं है तो वे अपनी सुविधा के अनुसार भी दान दे सकते हैं।

रोजेदार दे रहे जकात और फितरा
रोजेदार असलम ने बताया कि इस्लाम में कोई चीज दिखावा नहीं है। तरावीह की नमाज के बाद रात में ऐसे लोगों को चिन्हित कर हमलोग जकात और फितरा देना शुरू किए हैं जो वास्तव में जरूरतमंद हैं। इसके लिए रात को शहर की सड़कों पर घूमते रहते हैं। ये पूरे माह चलता रहेगा, जरूरतमंदों को दान कभी भी किया जा सकता है।