- गोव‌र्द्धन मठ पुरी के पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य निश्चलानंद ने धर्म दर्शन संगोष्ठी को किया संबोधित

DARBHANGA: मृत्यु ही जीवन का अंतिम सत्य है। मृत्यु या श्राद्ध-भोज पितरों के सम्मान में किया जाने वाला सर्वोत्कृष्ट अनुष्ठान है। इसके माध्यम से ही पितरों को भोजन की प्राप्ति होती है। ये बातें गोव‌र्द्धन मठपुरी के पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने कहीं। वे गुरुवार को टटुआर में धर्म दर्शन संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि मृत्यु-भोज का विरोध करने वाले लोगों को आत्म¨चतन की जरूरत है। उन्हें पाश्चात्य संस्कृति का पिछलग्गू बन निराधार विचार थोपने की जगह गौरवशाली सनातन धर्म में निहित विचारों, सिद्धांतों और परंपराओं का अनुसरण करना चाहिए।

अंतरजातीय विवाह संस्कार नहीं माना जा सकता

शंकराचार्य ने कहा कि अंतरजातीय विवाह को संस्कृति या संस्कार नहीं माना जा सकता। इसे मैरिज नाम भले दे सकते हैं, लेकिन परिणय संस्कार में निहित भावों का निरूपण नहीं हो सकता। यह विवाह शास्त्रों के विपरीत है।

सांस चलने तक रखते हैं याद

जगद्गुरु ने कहा कि यह परम सत्य है कि लोग आपको उसी समय तक याद करते हैं, जब तक आपकी सांस चलती है। सांस के रुकते ही करीबी रिश्तेदार, दोस्त, पत्नी और बच्चे दूर चले जाते हैं। सत्य की कोई भाषा नहीं होती है। इसे अंतर्मन से महसूस किया जाता है। जब मन में सत्य जानने की जिज्ञासा पैदा होती है, तब बाहरी चीज अर्थहीन लगती है।

आत्मा राजा के समान

उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति को इतना ज्ञान होना चाहिए कि आत्मा एक राजा के समान होती है, जो शरीर, इंद्रियों, मन और बुद्धि से सर्वथा अलग होती है। आत्मा इन सबका साक्षी स्वरूप है। अज्ञानता के कारण आत्मा भले सीमित लगती हो, लेकिन जब अज्ञान का अंधेरा मिट जाता है तब उसके वास्तविक स्वरूप का ज्ञान हो जाता है।