पटना ब्‍यूरो। एंजियोप्लास्टी वाले मरीज इतने गंभीर होते हैं कि एंजियोप्लास्टी करने की शर्त पर भी उनकी मृत्यु की संभावना 1 फीसदी तक होती है। एंजियोप्लाटी नहीं करने पर उनकी मृत्यु की संभावना 50 फीसदी तक चली जाती है। ऐसे में समझा जा सकता है कि ऐसे केसेज करना कितना मुश्किल काम है। डॉक्टरों पर हमेशा दबाव रहता है मगर इस दबाव के बीच वे अच्छा से अच्छा परिणाम देने की कोशिश करते हैं। यही कारण है कि फोर्ड हॉस्पिटल पर लोगों का भरोसा बढ़ता चला गया है। फोर्ड हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर में कार्डियोलॉजी के 15 हजार से ज्यादा इलाज पूरे होने की सफलता पर संवाददाताओं को संबोधित करते हुए ये बातें हॉस्पिटल के निदेशक और वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ। बीबी भारती ने कहीं। उन्होंने कहा कि पिछले दस सालों में हमलोग कार्डियोलॉजी के 15 हजार से ज्यादा इलाज कर चुके हैं। इसमें एनजियोग्राफी, एनजियोप्लास्टी, ब्लूनिंग, डिवाइस क्लोजर, एएसडी क्लोजर, पीडीए क्लोजर, वीएसडी क्लोजर। इसके अलावा एंजियोप्लास्टी के मुश्किल मामले जिनमें कैल्सिफाइड केसेज, बाइफरकेशन केसेज, पेसमेकर, सीआरटी शामिल हैं, में हमलोगों ने सफलतापूर्वक इलाज किया है। यह एक बड़ी उपलब्धि है। कार्डियोलॉजी की टीम बिहार में बेहतर कार्य कर रही है। हमारी टीम में डॉ। अनिल, डॉ। सुशांत, डॉ। मनमोहन जैसे अनुभवी डॉक्टर शामिल हैं। उन्होंने कहा कि हर महीने कोई न कोई ऐसा केस जरूर आता है जिसकी स्थिति काफी गंभीर होती है मगर हमारी अनुभवी डॉक्टरों की टीम ऐसे मरीजों को भी बचाने में सफल रही है।
डॉ। भारती ने कहा कि हृदय रोग की समस्या झेल रहे मरीजों को सलाह दी जाती है कि वे नियमित रूप से ब्लड प्रेशर की जांच कराते रहें। ऐसे लोगों को गर्मी में ज्यादा नहीं निकलना चाहिए। ऐसी स्थिति में उनके बीमार पडऩे की संभावना बढ़ जाती है। कार्डियोजेनिक मरीजों में ब्लड प्रेशर कम होने पर मल्टी ऑर्गन फेल की आशंका काफी बढ़ जाती है।
साइलेंट हार्ट अटैक के एक सवाल पर डॉ। भारती ने कहा कि साइलेंट जैसी कोई चीज नहीं होती है। होता यह है कि ऐसे मरीजों में लक्षण बहुत कम दिखते हैं। घबराहट या छाती में भारीपन जैसी मामूली समस्याएं आती हैं जिन्हें वे नजरअंदाज कर देते हैं। आगे चलकर यही हार्ट अटैक का कारण बन जाता है। अधिक आयुवर्ग या डाइबिटिक के मरीजों में ऐसी समस्याएं ज्यादा देखी जाती हैं।