-जांच कमेटी को 30 दिन में सौंपनी थी रिपोर्ट, 106 दिन में सौंपी

-पटना नगर निगम और बुडको के बीच तालमेल नहीं रहने से डूबा शहर

PATNA : पटना जलजमाव को लेकर सरकारी जांच का वही हश्र हुआ जिसका पहले से अनुमान था। सरकार की हाईलेवल कमेटी को 30 दिनों में रिपोर्ट देनी थी लेकिन 106 दिन बाद जांच रिपोर्ट सौंपी गयी है। सरकारी जांच में कई बड़ों को क्लीन चिट देकर छोटों पर गाज गिराने की अनुशंसा की गयी है। विकास आयुक्त अरुण कुमार सिंह की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने मुख्यमंत्री को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पटना नगर निगम के तत्कालीन नगर आयुक्त अनुपम कुमार सुमन और बुडको के एमडी अमरेंद्र कुमार सिंह के बीच समन्वय के अभाव में पटना की दुर्दशा हो गयी। इन दोनों के खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई की अनुशंसा की गयी है। गौरतलब है कि अनुपम सुमन नौकरी से इस्तीफा देकर पहले ही जा चुके हैं। इसके अलावा बड़ी संख्या में इंजीनियर व पटना नगर निगम के एक्जक्यूटिव ऑफिसर पर भी कार्रवाई की बात रिपोर्ट में कही गयी है। दरअसल, पिछले साल सितंबर की भीषण बारिश में पटना डूब गया था। बारिश के पानी में राजेंद्र नगर के बड़े हिस्से में नाव चलाने की मजबूरी व अधिकतर मुहल्लों में जल जमाव की त्रासदी से पूरा पटना कई दिनों तक जूझता रहा था।

नाला उड़ाही में लापरवाही का ठीकरा पीएमसी के एक्जक्यूटिव पर

जांच कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में यह कहा है कि नाला उड़ाही में पटना नगर निगम (पीएमसी) के एक्जक्यूटिव अधिकारियों ने जबर्दस्त लापरवाही की है। पटना सिटी को छोड़ सभी जगह तैनात एक्जक्यूटिव अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई की अनुशंसा की गयी है।

नाला उड़ाही के लिए भुगतान में भी बड़े स्तर पर गड़बड़ी

जांच कमेटी ने यह पाया है कि प्रति वर्ष नाला उड़ाही को ले किए जाने वाले भुगतान में जबर्दस्त गड़बड़ी की जा रही है। नाला उड़ाही के लिए होने वाला भुगतान संवेदक द्वारा मजदूरों की संख्या बताकर ले लिया जा रहा है। तकनीकी रूप से यह गलत है क्योंकि नाले की गहराई और चौड़ाई के हिसाब से गाद कितना निकाला गया, इस पर भुगतान होना चाहिए। निकाले गए गाद को निष्पादित करने की नीति भी स्पष्ट नहीं है।

संप हाउस की निविदा में भी खूब है घालमेल

जांच कमेटी ने अपनी अनुशंसा में यह साफ किया है कि पानी की निकासी के लिए प्रति वर्ष संप हाउस के लिए जो निविदा की जाती है,उसमें बड़े स्तर पर घालमेल किया गया है। जांच के क्रम में यह बात सामने आयी है कि तीन-चार एजेंसी के बीच लंबी अवधि से काम का बंटवारा होता रहा है। यह भी जांच का विषय है।