पटना(ब्यूरो)। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घोषणा की कि अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय खेल स्पर्धाओं में पदक लाने वाले राज्य के खिलाडिय़ों को 'बिहार प्रशासनिक सेवाÓ और 'बिहार पुलिस सेवाक्र' में ग्रेड-1 की नौकरी दी जाएगी। इसे लेकर आगे की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है, लेकिन राज्य में खिलाडिय़ों का एक ऐसा भी वर्ग है जो कई सालों से बिहार सरकार में नौकरी के लिए तरस रहा है। वह हैैं राज्य के क्रिकेटर। अन्य खेलों की तरह खेल कोटे से क्रिकेटरों को नौकरी नहीं मिल रही है। पढि़ए रिपोर्ट।

कई सालों से नहीं मिली नौकरी

सूबे में सबसे बड़ी आबादी क्रिकेटरों की है। एक ओर जहां उनके अनुकूल क्रिकेट ग्राउंड नहीं हं, जिसकी वजह से वे दूसरे राज्यों से पलायन करने को मजबूर हैं अपने भविष्य को लेकर। वहीं राज्यस्तर पर या राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में बेहतरीन प्रदर्शन के बाद भी एक अदद नौकरी को पिछले 12 सालों से संघर्ष कर रहे हंै। वर्ष 2011-12 के बाद से आज तक बिहार सरकार के द्वारा खेल कोटे से निकलने वाले विज्ञापनों में क्रिकेट को शामिल नहीं किया जा रहा है, जबकि आज विद्युत विभाग, बिहार सचिवालय आदि की टीमें हैं और राष्ट्रीय स्तर के विभागीय टूर्नामेंटों में भाग लेती हैैं

पूर्व के सालों में मिलती थी नौकरी

पूर्व क्रिकेटरों की मानें तो लालू प्रसाद के कार्यकाल में जहां खिलाडिय़ों को नौकरी मिली थी। क्रिकेटरों को अंतिम बार नौकरी जनार्दन सिंह सिग्रीवाल के विभागीय मंत्री रहने के दौरान मिली। उसके बाद बिहार सरकार ने बिहार के क्रिकेटरों से दूरी बना ली। इसके लिए कई बार क्रिकेटर सड़क पर उतरे। वहीं बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व सचिवों ने भी खेल कोटे से बिहार के क्रिकेटरों को नौकरी देने की मांग उठाई। कई खेल मंत्री आए ओर चले गए लेकिन क्रिकेटरों की नौकरी की अनुशंसा नहीं की।

खेल मंत्री से मिले बीसीए के पदाधिकारी

शुक्रवार को बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश तिवारी के निर्देश पर बीसीए के महाप्रबंधक प्रशासन नीरज सिंह और प्रबंधक मीडिया संतोष झा ने कला, संस्कृति और युवा कल्याण के मंत्री जितेंद्र कुमार राय से मुलाकात कर बिहार के क्रिकेटरों की उपलब्धियों की चर्चा करते हुए उनके प्रोत्साहन के लिए बिहार सरकार और बिहार सरकार की संस्थाओं में खेल कोटे से हो वाली नियुक्तियों में खेल क्रिकेट को शामिल करने का अनुरोध किया।

दूसरे राज्यों में पलायन को मजबूर क्रिकेटर

पूर्व क्रिकेटरों की मानें तो खेल कोटे से क्रिकेट को बाहर किए जाने की वजह है कि बिहार क्रिकेट एसोसिएशन एक प्राइवेट संस्था है जो बीसीसीआई के अधीन है। मालूम हो कि बिहार क्रिकेट एसोसिएशन को हाल ही में मान्यता मिली है और उसकी टीम लंबे समय बाद फिर से घरेलू क्रिकेट में खेलते हुई दिखी थी। इससे पहले खींचतान और भ्रष्टाचार के चलते राज्य में क्रिकेट का बुरा हाल था। बिहार से अलग हुआ झारखंड क्रिकेट के मामले में काफी आगे निकल गया था। वहां से एमएस धोनी, सौरभ तिवारी, इशान किशन, मुकेश कुमार, सबा करीम समेत कई क्रिकेटर देश के लिए खेल चुके हैं या खेल रहे हैं। यहां तक कि रांची में इंटरनेशनल मुकाबले भी होते आ रहे हैं।

प्राइवेट नौकरी करने को मजबूर क्रिकेटर

जीवकोपार्जन को लेकर कई प्रतिभावान खिलाडिय़ों ने बीच में ही खेल से अपने को दरकिनार कर लिया। तो कई ऐसे खिलाड़ी हैं जो प्राइवेट नौकरी करने को मजबूर है। दरअसल, बिहार में क्रिकेट के विवाद और रणजी ट्रॉफी न होने की वजह से कई खिलाड़ी प्राइवेट नौकरी, स्कूल में स्पोटर्स टीचर या सड़को पर रेहड़ी लगाने को मजबूर है। लेकिन 2018 में क्रिकेट की बिहार वापसी से क्रिकेटरों में उम्मीदें बढ़ी है लेकिन अब भी भविष्य को लेकर वे चिंतित है।

बिहार ने रणजी के एलिट ग्रुप में बनाई जगह

प्रतिभा की यदि बात करें तो बिहार के क्रिकेटरों ने साल 2023 की शुरुआत में ही पूरे राज्य को गौरवान्वित कर दिया। झारखंड बंटवारे के साथ इस सदी में बिहार के लिए क्रिकेट की मुख्य धारा से जुडऩा एक सपना था, लेकिन उस सपने को हकीकत बनाने की पहली सीढ़ी पार हो गई। पटना के मोइनुल हक स्टेडियम में बिहार के खिलाडिय़ों ने रणजी के प्लेट ग्रुप का फाइनल अपने नाम कर एलिट ग्रुप में जगह बनाई