पेड़ों की सुरक्षा ही लक्ष्य

पेड़ पौधों को बचाने में सुंदरलाल बहुगुणा की अहम भूमिका है। 1971 में सुन्दरलाल बहुगुणा ने पेड़ों की सुरक्षा में सोलह दिन तक अनशन किया। चिपको आन्दोलन के कारण वृक्षमित्र के नाम से वह पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हो गए ।

महिलाएं पेड़ो से चिपकी

इस आंदोलन के तहत महिलाएं वृक्षों से चिपककर खड़ी हो गई थीं। इसके बाद इस ओर सरकार का ध्यान गया। ऐस में देश के हिमालयी वनों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्षों के लिए रोक लगा दी गई थी।

टिहरी बांध का विरोध

पर्यावरण को बचाने के लिए ही 1990 में सुंदर लाल बहुगुणा ने टिहरी बांध का विरोध किया था। वह उस बांध के खिलाफ रहे। उनका कहना था कि 100 मेगावाट से अधिक क्षमता का बांध नहीं बनना चाहिए

विश्वस्तर पर उभरी

चिपको पदयात्रा के तहत एक बार फिर सुंदरलाल बहुगुणा ने जून 1981 में चंबा के लंगेरा गांव से हिमाचल की पदयात्रा शुरू की। 5000 किमलोमीमीटर की यह यात्रा 1983 में विश्वस्तर पर काफी तेजी से उभर कर सामने आई।

दलित उत्थान की लडा़ई

वहीं पर्यावरण के साथ साथ उन्होंने दलितों के उत्थान के लिए भी आंदोलन किया है। दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए उन्होंने आन्दोलन छेड़ दिया था। जिसके बाद उनके हालातों में बदलाव हुए।

अब तक मिले पुरस्कार

बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने इन्हें 1980 में सम्मानित किया। इसके बाद 1984 के सुदंर लाल को राष्ट्रीय एकता पुरस्कार, समेत अब तक कई पुरस्कार मिल चुके हैं।

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