इस पर साधु यादव का कहना है कि सवाल बहन के ख़िलाफ़ खड़ा होने का नहीं है.

उन्होंने अपने फ़ैसले को सही ठहराते हुए कहा, ''चुनाव लड़ने का फ़ैसला लिए तो क्या हो गया. सारण की सीट पर लालू यादव और राबड़ी देवी ने रजिस्ट्री या बैनामा करवा लिया है क्या. उनके अलावा कोई दूसरा नहीं लड़ सकता है क्या. ऐसे भी पांच साल हो गए हमें अलग हुए. 2009 से हम अलग है.''

सवाल- आप पर एक आरोप यह भी है कि आपके खड़ा होने का सीधा असर यह होगा कि बीजेपी के उम्मीदवार राजीव प्रताप रूढ़ी को फ़ायदा होगा?

ऐसी कोई बात नहीं है. लोकतंत्र में क्या हमें लड़ने का कोई अधिकार नहीं है. अगर हम चुनाव लड़ेंगे तो यह कहा जाएगा कि बीजेपी या अन्य जेडीयू को जीताने के लिए चुनाव लड़ रहे हैं. क्या चुनाव लड़ने का अधिकार सिर्फ़ लालू यादव को है?

सवाल- नरेंद्र मोदी से आपकी मुलाक़ात के बाद यह क़्यास लगाए जा रहे थे कि आप बीजेपी में शामिल होंगे फिर आपने निर्दलीय चुनाव लड़ने का फ़ैसला क्यों लिया?

यह मेरा व्यक्तिगत फ़ैसला है. नरेंद्र मोदी से उनके बुलाने पर मिलने गए थे. और अगर लालू यादव किसी से मिलकर मेरा टिकट काटेंगे तो बाहर क्यों नहीं जाएंगें चुनाव लड़ने.

सवाल- क्या आप यह कहना चाह रहे हैं कि आप बीजेपी में शामिल होना चाहते थे?

लालू यादव और सुशील मोदी दोनों ने मिलकर पीठ में छुरा घोंपने का काम किया है. मेरे नरेंद्र मोदी से मिलते ही लालू यादव को बेचैनी शुरू हो गई. लालू यादव और सुशील मोदी में ऐसा रिश्ता है कि बिना लालू यादव से बात किए सुशील मोदी की पार्टी एक क़दम भी आगे नहीं बढ़ती है बिहार में.

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सवाल- लेकिन वो दोनों तो राजनीतिक रूप से धुर विरोधी है एक दूसरे के. आप यह क्या कह रहे हैं?

यह विरोध दिखावटी है. जनता को ये दोनों मिलकर धोखा दे रहे हैं.

सवाल- राजनीति में दुश्मन भी दोस्त और दोस्त भी दुश्मन बने जाते हैं आपको नहीं लगता कि आपकी राजद वापसी कभी संभव है?

राजद में जाने का मुझे कोई शौक़ नहीं है.

मेरा दिल फट चुका है. लालू यादव ने जो मेरे साथ किया है वैसा कोई इंसान किसी इंसान के साथ नहीं करेगा.

सवाल- क्या राबड़ी देवी और लालू यादव से आपकी मुलाक़ात होती है?

पांच साल से ना मेरी बात लालू यादव से होती है ना ही मेरी बात बहन से होती है. राखी पर भी मुलाक़ात नहीं होती है.

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