अगर एक्टर न होते तो क्या होते?

कारपेंटर होता... क्योंकि इसके अलावा कुछ सोचा नहीं है. दरअसल बचपन से ही मैं लकड़ी और हथौड़ी से खेलता था. मुझे कुछ न कुछ बनाने का शौक था. कभी लकड़ी का घर बनाता था, कभी बॉक्स बनाता था. एक बार मैंने लकड़ी का ब्रिज बनाया था. शुरूआत से ही क्रिएटिव करने में रूचि रही है.

किस तरह की फिल्में करना पसंद करते हैं?

मेरा मानना है कि इंटरटेनमेंट के साथ ही समाज की सच्चाई और उससे जुड़ी सीख को पब्लिक तक पहुंचाने का सबसे बेहतर माध्यम सिनेमा है. इसलिए कोशिश करता हूं कि मैं ऐसी फिल्में करूं जिसमें इंटरटेनमेंट के साथ ही कोई न कोई सीख भी समाज तक पहुंचाई जा सके.

आप कम फिल्में करते हैं, इसके बाद भी यूथ्स में क्रेज है. कैसा फील करते हैं?

फिल्म करने से पहले मैं उसकी कहानी को पढ़ता हूं. अगर कहानी मुझे पसंद आती है तो मैं आगे बढ़ता हूं. ऐसा इसलिए है कि पब्लिक ने मेरी जो इमेज अपने दिल और दिमाग में बना ली है. मैं उस इमेज को कमजोर नहीं करना चाहता हूं. इस इमेज को बनाए रखने के लिए बहुत मेहनत करनी होती है और यकीन मानिए ये आसान काम नहीं है.

आप अपनी मौजूदा पोजिशन को स्ट्रगल पीरियड से कैसे कम्पेयर करते हैं?

फिल्म इंडस्ट्री में सरवाइव करना ईजी नहीं है. जब 8 साल पहले इंडस्ट्री में कदम रखा था तो उस वक्त किसी तरह का प्रेशर नहीं था. बस एक धुन सवार थी कि अपना काम करना है. उस वक्त शायद पब्लिक को मुझसे किसी तरह की खास एक्सपेक्टेशन नहीं थी. इसलिए काम करना आसान था. लेकिन जब एक इमेज सेट हो गई है तो मुश्किलें भी बढ़ गई हैं. किसी ने सच ही कहा है कि कामयाबी को हासिल करना मुश्किल होता है लेकिन कामयाबी बरकरार रखना और भी मुश्किल होता है. लोगों की उम्मीदें बढ़ जाती हैं.

आप अभी तक फैमिली के साथ फिल्मों में नजर नहीं आए. इसकी क्या वजह है, अगर यमला-पगला-दीवाना की स्वीकल बने तो क्या आप उसमें रोल करेंगे?

इसकी कोई खास वजह नहीं है. अगर कोई ऐसी स्टोरी सामने आती है, जो मुझे पसंद होगी तो मैं फैमिली के साथ जरूर करूंगा. ऐसा नहीं है कि यमला-पगला-दीवाना के स्वीकल में ही करूंगा, अगर इससे बेहतर स्टोरी तैयार होती है तो मैं उसमें भी तायाजी और भाईयों के साथ काम करना पसंद करूंगा.