डॉ. त्रिलोकीनाथ (ज्योतिर्विद्)। Chaitra Navratri 2024 kalash staphana Muhurat दकक: कलश स्थापना का मुहूर्त 9 अप्रैल मंगलवार की सुबह 05 बजे से आंरभ होगा। कलश स्थापना का मुहूर्त सूर्यास्त तक बना रहेगा। इस दिन राहुकाल को बचाते हुए किसी भी समय सूर्यास्त होने के पहले कलश की स्थापना माँ के भाक्तगण कर सकते है। इस दिन सर्वार्थ-सिदधि योग और अमृत-सिदधि योग की स्थिति बनी रहेगी। स्थाई नक्षत्र रेवती एवं अश्वनी भी विराजमान रहेंगे। मां की आराधना करके भक्तगण विधि विधान से कलश की स्थापना करके माँ का आर्शिवाद प्राप्त करने में सफल हो सकते है।

माँ दुर्गा के नवस्वरुपों की पूजा और उनके विभिन्न स्वरुपों का प्रभाव
नवरात्री का महात्म नव देवियाँ अलग अलग दिनों में अपने विशेष गुणकारी प्रभाव के कारण जन सामान्य पर अपना आशीर्वाद बनाये रखती है। प्रत्येक देवी का एक गुणाकार महात्म होता है। इनकी भिन्न-भिन्न स्वरुपों की पूजा से प्रत्येक देवियों जो अलग-अलग स्वभाव एवं महात्म है इसी महात्मता के कारण भक्तजनों को प्रत्येक दिन की देवियों का आशीर्वाद उनके स्वरुपों के अनुसार मिलता रहता है। प्रत्येक दिन की देवियों का स्वभाव भी अलग है। मानव जीवन विभिन्न स्वभाव एवं विचारों के आधार पर चलता है। भक्तजन यदि पूरी निष्ठा से देवियों की पूजा या साधना करते है। तो ये देवियाँ अपना आशीर्वाद भक्तजन पर बनाये रखती है। अपने विशेष गुणों को अपने आशीर्वाद के साथ प्रसाद रुप में भक्तजन को देती रहती है। इनमें से कुछ देवियाँ शांत स्वभाव की है कुछ उग्र स्वभाव की है कुछ मिली-जुली स्वभाव की है जो व्यक्ति जिस स्वभाव का है उसी के अनुसार इन नौ दुर्गा देवियों की विशेष पूजा करके उनका विशेष आशीर्वाद प्राप्त कर सकता है। नवरात्र के दिनों में ऐसी मान्यता है ये देवियाँ धरती पर आती है अपने भक्तों को अपने आशीर्वाद से निर्भय एवं हर तरह से शक्ति संपन्न बनाती है इसलिए नवरात्री में इन देवियों की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। नव दुर्गाओं के भिन्न भिन्न स्वरुपों का वर्णन किया गया है।

1. शैलपुत्रीः- वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रर्धकृतशेखराम्। वृषारुढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
हिमालय की वादियों में जन्म लेने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। माँ की नौ दिनों की पूजा में पहले दिन इन्हीं की पूजा की जाती है। ये स्वाभिमान एवं दृढ़ता की प्रतिरुप मानी जाती है। इनका वाहन वृषभ है देवी के दायें हाथ में त्रिशूल रहता है और बायें हाथ में कमल का पुष्प रहता है। एक पौराणिक कथानुसार यज्ञ में अपने पति का अपमान न सहन कर सकी। और योगानि द्वारा अपने को जलाकर भष्म कर लिया। जिससे दुखित होकर भगवान शंकर ने उस यज्ञ का विधंश कर दिया। यही सती अगले जन्म में शैल राज हिमालय की पुत्री के रुप में जन्मी और शैलपुत्री कहलायी बाद में इनका विवाह शिव जी के साथ हुआ। इनकी पूजा से स्वाभिमान एवं दृढ़ता में वृद्धि होती है।

2. ब्रह्मचारिणीः- दघाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
माँ दुर्गा की नौ शक्तियों में महत्वपूर्ण दूसरी शक्ति स्वरुपा ब्रह्मचारिणी का है ब्रह्मचारिणी का अर्थ है- तप के समान आचरण करने वाली ब्रह्मचर्य का पालन करने वाली इस देवी के स्वरुप के बारे में बताया गया है। यह देवी दायें हाथ में जप की माला है एवं बायें हाथ में कमंडल धारण किये हुए है। भगवान शिव को पति के रुप में प्राप्त करने के लिए इन्होंने घोर तपस्या की। कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपसचारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है। कठिन तपस्या के कारण इस देवी का शरीर कृषकाय हो गया था। देवता ऋषि सिद्धगण मुनि सभी ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व शुभ फल देने एवं कार्यों को पूर्ण कराने वाली देवी बताया गया है। इनेक बारें में कहा गया है। आजतक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यही कारण है कि देवी की संपूर्ण मनोकामना पूर्ण हुई और भगवान चन्द्रमौली शिव जी आराध्य देव के साथ पति रुप में प्राप्त हुए। इस देवी की पूजा से कठिन से कठिन कार्यों की पूर्ति होती है। सिद्धगण भी इसी देवी की भांति कठिन तपस्या करके देवी मनवांछित शुभ फल प्राप्त करने में सफल हो सकते है।

3. चन्द्रघंटाः- पिण्डजाप्रव रारुढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुतं मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।
चन्द्रघंटा माँ दुर्गा की तीसरी शक्ति मानी गई है। नवरात्री के तीसरे दिन इस देवी की अराधना की जाती है। इस देवी के स्वरुप के बारें में बताया गया है। इनके सिर पर घंटे के आकार का आधा चन्द्रमा है । इसलिए इन्हें चन्दघंटा के नाम से जाना जाता है। सोने के समान इनका शरीर चमकता है। देवी का यह रुप परमशांतिदायक है और कल्याणकारी है। इस देवी के दस हाथ बताये गये है। यह देवी खडग एवं अन्य अस्त्र- शस्त्रों से विभूषित है। सिंह इनकी सवारी है। इस देवी की मुद्रा युद्ध के लिए सक्रिय अवस्था में रहने वाले भाव जैसी होती है। यदि इस देवी की कृपा मिल जाये तो साधक अलौकिक वस्तुओं का दर्शन करने में सफल हो जाता है। इनके प्रभाव से दिव्य सुगंधित वातावरण का अनुभव होता है। ये लक्ष्य प्राप्त की भी देवी मानी गई है। इनकी पूजा से भक्तगण अपने लक्ष्य को जो इन्होंने मनोकामना बनाई है उसकी प्राप्ति होती है।

4. कुष्मांडाः- सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च। दधाना हस्तपाद्मभ्यां कुष्मांडा शुभदास्तु मे।।
देवी के चौथे दिन की पूजा कुष्मांडा देवी के रुप में की जाती है। इस देवी की आठ भुजाएं बताई गई है इसलिए इन्हें कुष्मांडा देवी के नाम से जाना जाता है। इनके आठों हाथों में भिन्न भिन्न तरह के वस्तुएं बताई गई है। इनके सात हाथों में क्रमशः कमंडल, धनुष-बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा है इनके आठवें हाथ में सभी तरह की श्रद्धियाँ सिद्धियाँ देने वाली जप की माला है। देवी का वाहन सिंह है इस देवी के निवास सूर्य मंडल के भीतर लोक में बताया गया है। सूर्य लोक में रहने के कारण संपूर्ण शक्ति क्षमता इनमंन बताई गई। इनके शरीर से क्रान्ति और आभा सूर्य के समान दिखाई देती है। इनके तेज से दशों दिशायें आलोपित होती है। संपूर्ण ब्रह्मांड में इनका तेज परिव्याप्त है इनकी पूजा से भक्तजन तेज एवं शक्तिशाली महसूस करते है। और अपने को महिमामंडित बनाने में भी सफल होते है।

5. स्कंद माताः- सिंह्यसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया। शुभदास्तु सद देवी स्कंदमाता यशस्विनी।।
नवरात्री के पाचवें दिन इस देवी की पूजा की जाती है। स्कन्द कुमार कार्तिकेय जी की माता के कारण इन्हें स्कन्द माता के रुप में जाना जाता है। इनके स्वरुप में भगवान स्कन्द बालरुप में इनकी गोद में विराजमान रहते है। इनका स्वरुप शुभ्र वर्ण का है यह माता कमल के आसन पर विराजमान रहती है। इसलिए इन्हें पद्मासना माता भी कहा जाता है शेर इनका वाहन है इस देवी की चार भुजाएं है इनकी गोद में स्कन्द विराजमान है नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है बाईं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरद मुद्रा में है नीचे वाली भुजा में कमलपुष्प है इनकी पूजा या उपासना से भक्तजन की सम्पूर्ण इच्छा पूर्ण हो जाती है। और भक्तजन अपनी संपूर्ण मनोकामना की पूर्ति के लिए इनकी विशेष आराधना करता है।

6. कात्यायनीः- चन्द्रहसोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी।।
नवरात्र की देवियों की पूजा में छठें दिन की पूजा कात्यायनी देवी के रुप में होती है। कहा जाता है, बैद्यनाथ नामक स्थान पर प्रकट होने के कारण इन्हें पूजा जाता है। भगवान कृष्ण को पति के रुप में पाने के लिए व्रज की गोपियों ने इसी देवी की पूजा की थी। इस देवी की पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गई थी इसीलिए इन्हें ब्रज मंडल की अधिष्ठात्री देवी के रुप में प्रतिष्ठित माना गया है। कात्य गोत्र में विश्व प्रसिद्ध महार्षि कात्यायन ने भगवती पाराम्बा की उपासना की थी, कठिन तपस्या के कारण उनकी इच्छाओं की पूर्ति हुई उनकी इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो माँ भगवती ने उनके घर पुत्री के रुप में जन्म लिया इसलिए इन्हें कात्यायनी देवी कहा जाता है। इनका वाहन सिंह है इनकी कृपा से भक्तजन के सारे कार्य पूरे हो जाते है, इसलिए इनकी उपासना नवरात्री के छठें दिन की जाती है। इनकी साधना से साधकों के प्रत्येक कार्य पूर्ण होते है और इनकी विशेष कृपा भक्तों पर बनी रहती है।

7. कालरात्रीः
एकवेणी जपाकर्णपुरा नग्ना खरास्थिता। लमबोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी।।
वामपादोल्लसल्लोहलताकणटकभूषणा। वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी।।

दुर्गा की यह सातवी शक्ति कालरात्री के रुप में पूजी जाती है। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह काला है। सिर के बाल बिखरे हुए है इनके गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति के रुप में इन्हें कालरात्री कहा जाता है। देवी के तीन नेत्र है ये तीनों नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल है इनके सांसों से अग्नि के समान ज्वाला निकलती रहती है। इनके ऊपर उठे दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को आशीर्वाद देती है इनके दाहिने तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा का संकेत देने वाला है बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का काँटा है और उसके नीचे वाले हाथ में खड़ग है यही इस देवी का स्वरुप है ये सदैव शुभ फल देने वाली माता के रुप में पूजी जाती है। इनकी पूजा से संपूर्ण मनोकामना पूर्ण होती है और इनकी शक्ति प्राप्त कर भक्त निर्भय और शक्ति संपन्न महसूस करता है।

8. महागौरीः- श्वेत वृषे समारुढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचिः। महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा।।
नवरात्री के आठवें दिन इस शक्ति की पूजा की जाती है। इनका रंग गौर वर्ण का है इनके सभी आभूषण और वस्त्र सफेद है इसलिए इन्हें स्वेताम्बधरा कहा जाता है। यह माँ चार भुजाओं वाली है। इनका वाहन वृषभ है इनका ऊपर वाला दाहिना हाथ अभय मुद्रा में रहता है। नीचे वाला हाथ त्रिशूल धारण किये हुए है। ऊपर वाले बायें हाथ में डमरु लिये हुए है और नीचे वाले हाथ में वरमुद्रा है भगवान शिव को पति के रुप में प्राप्त करने के लिए इस देवी ने कठोर तपस्या की इसी वजह से इनका शरीर काला पड़ गया। अपनी कठिन तपस्या के कारण भगवान शिव ने प्रसन्न होकर इनके शरीर को गंगा के पवित्र जल से धोकर क्रांतिमय बना दिया। इसी के कारण ये माता महागौरी के नाम जानी जाती है। ये भक्तजन को अपना शुभ आशीर्वाद निरन्तर देती रहती है और उनकी संपूर्ण मनोकामनाओं को पूरा करने की शक्ति देती रहती है।

9. सिद्धिदात्रीः- सिद्धगंधर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि। सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।।
नवरात्री के नवें एवं अन्तिम दिन इनकी पूजा की जाती है। इनके बारे में कहा गया है अर्णिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व एवं वाशित्व आठ सिद्धियाँ इनमें विराजमान होती है इसलिए इस देवी को सच्चे मन से विधि-विधान से पूजा या आराधना करे से सभी तरह की सिद्धियाँ प्राप्त की जा सकती है। देवी की कृपा से ही शिव जी का आधा शरीर देवीमय हो गया है। इस देवी के दाहिने तरफ वाले हाथ में चक्र, उपर वाले हाथ में गदा तथा बाईँ तरफ के नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल का पुष्प है। इस देवी की साधना करने से अलौकिक एवं पारलौकिक कामनाओं की पूर्ति होती है। यह देवी सभी सिद्धियों को देने वाली है इसलिए भक्तजन इनके आशीर्वाद की कामना करते है यदि इनका आशीर्वाद मिल जाये तो सारी सिद्धियों का लाभ भक्तजन प्राप्त करने में सफल हो सकते है और सुखमय जीवन प्राप्त कर सकते हैं।