11 साल जेल में रहे क़यूम को अक्षरधाम मंदिर हमले में मौत की सज़ा सुनाई गई थी. अब उन्हें बेकसूर क़रार दिया गया है.

क़यूम के दोस्त सलाम शेख कहते हैं, ''उनकी रिहाई के दिन अहमदाबाद के पुराने शहर बिस्तर में सैकड़ों किलो मिठाई बंटी.''

15 अगस्त 2003 यानी आज़ादी के 56वें वर्ष के जश्न के दो दिनों बाद ही पुलिस क़यूम को पकड़ ले गई.

क़यूम अहमदाबाद के दरीपुर इलाके की मस्जिद में मुफ्ती थे. उस आजादी के दिन मस्जिद में उन्होंने तकरीर दी थी, ''आज़ाद  भारत में मुसलमानों का उतना ही हक है, जितना और किसी का.''

'इनकार पर अत्याचार और बढ़ गया'

क़यूम कहते हैं, ''मुझे 17 अगस्त 2003 को क्राइम ब्रांच में ले जाया गया. मुझे हरेन पंड्या मर्डर और फिर  अक्षरधाम मंदिर हमले के बारे में बताया गया.''

वे कहते हैं, ''मुझ पर वर्ष 2002 दंगों का बदला लेने के लिए अहमदाबाद में फिदायीन को शरण देने और हैदराबाद के कुछ लोगों के साथ मिलकर हमले के लिए जगह तलाशने का आरोप लगाया गया.''

क़यूम कहते हैं, ''मुझसे गुनाह क़बूल करने को कहा गया. मेरी उंगलियों में करंट लगाया गया. बेड़ियों से बांधकर डंडों से पिटाई की गई.''

'...तो वो मेरा एनकाउंटर कर देते'

जब क़यूम ने गुनाह क़बूल करने से इनकार कर दिया. तब अत्याचार और बढ़ गया. ''रोज मुझे मारा जाता. मैं बेहोश होता, उठता और फिर बेहोश हो जाता.''

वो बताते हैं, ''फिर एक दिन मुझे रात में कहीं ले जाया गया. देखकर लग रहा था कि ये अहमदाबाद एयरपोर्ट के पीछे का हिस्सा है.''

क़यूम ने बताया, ''वहां पहुंचकर कहा गया, ये कोतरपुर है. तेरे लतीफ को हमने यहीं मारा है. उन्होंने मेरे आसपास पांच गोलियां चलाईं. मुझे लगा कि अगर मैं नहीं माना तो यहीं एनकाउंटर हो जाएगा.''

अब्दुल लतीफ अहमदाबाद का एक कुख्यात गैंगस्टर था. जिसका एनकाउंटर यहीं हुआ था. कोतरपुर वही जगह है, जहां 2004 में इशरत जहां और उसके तीन दोस्तों को फ़र्ज़ी मुठभेड़ में मार गिराया गया था.

वह कहते हैं, "हमारी नाराज़गी सिस्टम से हो सकती है लेकिन हम भी मुल्क के उतने ही हैं जितने हिन्दू. कौम के मुट्ठीभर लोगों की ग़लत हरकत के लिए सबको जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते.''

'11 साल का हिसाब मांगेंगे'

'...तो वो मेरा एनकाउंटर कर देते'

जेल में क़यूम के 11 साल बहुत ख़राब बीते. बकौल क़यूम, "जेल में कई बार आत्महत्या करने का मन किया. पर उम्मीद जग जाती थी कि सुप्रीम कोर्ट में तो न्याय मिलेगा ही. "

वो कहते हैं, "पूरे केस में सबूत के तौर पर क्राइम ब्रांच ने केवल दो चिट्ठियां पेश कीं. जो उनके अनुसार मैने लिखकर फिदायीन को दी थीं, जिन्होंने  अक्षरधाम पर हमला किया. जब सुप्रीम कोर्ट ने फिदायीन की पैंट और पोस्ट मार्टम रिपोर्ट देखी तो पूछा कि इनकी लाशें खून और मिट्टी में लथपथ हैं, पैर में इतनी गोलियां लगीं हैं और चिट्ठियों पर खून का एक कतरा तक नहीं, ऐसा क्यों?''

वह कहते हैं,'' क़ानून ने हमें बेगुनाह साबित कर दिया लेकिन उन 11 साल का हिसाब कौन देगा. जब मुझे फांसी की सजा हुई तो अख़बार में बड़े बड़े फोटो छपे जब रिहा हुआ तो कुछ ही अख़बारों और चैनलों ने ख़बर दिखाई.''

क़यूम कहते हैं, "अब हम सोच रहे हैं कि जिन लोगों की वजह से हम 11 साल जेल में रहे उन पर मुक़दमा करें और हिसाब मांगें.''

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