कोर्ट का अजीबो-गरीब फैसला
बिहार के एक कोर्ट ने जब पूर्व स्टेशन मास्टर मिश्री राउत की अर्जी पर सुनवाई करते हुए फैसला सुनाया तो वहां खड़े सभी लोग सकते में आ गए. दरअसल मिश्री राउत ने वर्ष 2003 में रिटायर होने के बाद रेलवे से अपने ओवरटाइम को अदा किए जाने की गुहार लगाई थी. मुकदमा दर्ज कराते वक्त स्टेशन मास्टर को रेलवे से ओवरटाइम पारिश्रमिक के रूप में 22080 रुपये लेने थे. लेकिन जब राउत को रेलवे से कोई मुआवजा नहीं मिला तो उन्होंने जिला कोर्ट में इस बाबत मुकदमा दर्ज करा दिया. वर्ष 2009 में कोर्ट ने इस मामले पर अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि रेलवे 12 प्रतिशत ब्याज के साथ बकाया राशि अदा करे. ऐसा नहीं करने की स्थिति में प्रतिदिन के हिसाब से 50 रुपये जुर्माना जोड़ा जाएगा.

लेकिन नहीं हुआ पेमेंट

कोर्ट के इस फैसले के बाद भी रेलवे अधिकारियों के कानों पर जूं नहीं रेंगी. उन्होंने पूर्व स्टेशन मास्टर की बकाया राशि को अदा करने के लिए कोई कदम नहीं उठाया. इसके साथ ही कोर्ट के आदेश पर किसी तरह का स्थगन आदेश भी नहीं प्राप्त कर सके. जब यह बात कोर्ट को पता चली तो कोर्ट ने आदेश दिया कि रेलवे अधिकारी पब्लिक का पैसा मुकदमेबाजी में खर्च कर रहे हैं. इसके साथ ही कोर्ट ने कहा कि अगर कोर्ट का पेमेंट ना मिले तो शेखपुरा रेलवे स्टेशन को नीलाम कर दिया जाए.

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