-चौराहों पर नहीं था ऑटो-टैंपो का जमावड़ा, सड़कों पर रहा ट्रैफिक स्मूद, क्राइम भी जीरो

-दूसरे दिन हालात पहले जैसे हुए, चौराहों पर कब्जा भी मिला और क्राइम भी हुआ दर्ज

BAREILLY: शहर के चौराहों का हाल किसी से छिपा नहीं है, शहरवासियों को यहां के हालात की आदत सी हो गई है। रोजाना बीच चौराहा पर सवारी भरते ऑटो-टेम्पो, रोड पर डग्गामार वाहनों की पार्किंग और खुलेआम ट्रैफिक नियमों की धज्जियां उड़ाती तस्वीरें सामने आती हैं, लेकिन फ्राइडे को यह तस्वीरें बदली-बदली सी नजर आयी थी, चौराहे खाली थे और ट्रैफिक स्मूद चल रहा था। यहां तक कि क्राइम का भी नामों निशान नहीं था, ऐसा इसलिए था क्योंकि पुलिस महकमे के मुखिया डीजीपी बरेली में थे। जब डीजीपी की विजिट के दूसरे दिन सैटरडे को शहर के चौराहों का रियलिटी चेक किया गया तो फिर से वही नजारा दिखा जो हमेशा ही नजर आता है।

सेटेलाइट चौराहा

तीन गुना वाहनों की बढ़ोत्तरी

फ्राइडे को डीजीपी शहर में पहुंचने वाले थे। दोपहर 3 बजे सेटेलाइट चौराहा पर ट्रैफिक पुलिस पूरी तरह से अलर्ट थी। चौराहा पर सिर्फ 7 से 8 वाहन ही नजर आ रहे थे। किसी को भी चौराहे पर खड़े नहीं होने दिया जा रहा था, जिससे ट्रैफिक पूरी तरह से स्मूद चल रहा था, लेकिन जब सैटरडे को उसी समय चौराहा पर जाकर देखा गया तो वाहनों की संख्या 10 गुना अधिक 70 से 80 नजर आयी। बीच चौराहा पर ऑटो खड़े करके सवारियां भर रहे थे। सेटेलाइट की ओर से आने वाले रास्ते पर ऑटो वालों का ही कब्जा था, जिसकी वजह से ग्रीन सिग्नल होने पर भी अन्य वाहन पार नहीं हो पा रहे थे। चौराहे के चारों ओर ऑटो, टेम्पो, मैजिक व अन्य वाहनों का जमावड़ा लगा था।

श्यामगंज चौराहा

अचानक गायब हो गए ऑटो

श्यामगंज चौराहा पर फ्लाईओवर बनने से ट्रैफिक का दबाव जरूर कम हुआ है लेकिन ऑटो वालों की वजह से जाम की स्थिति बनी ही रहती है। फ्राइडे को दोपहर बाद करीब 4 बजे जब यहां जाकर चेक किया तो सिर्फ 4 से 5 ऑटो ही नजर आ रहे थे। हालांकि इस रास्ते से डीजीपी को गुजरना नहीं था, बावजूद इसके इंतजाम चाक-चौबंद किए गए थे, लेकिन सैटरडे को जब इसी वक्त पर यहां ऑटो की संख्या 35 से 40 तक नजर आयी। ऑटो भी आड़े-तिरछे खड़े नजर आए। ट्रैफिक पुलिसकर्मी की ड्यूटी भी थी लेकिन व्हीकल रेंग-रेंगकर ही निकल रहे थे।

चौपला चौराहा

चौपुला पर फिर से वही जाम

चौपुला चौराहा पर हमेशा ही जाम लगता है। यहां की रेड लाइट काम नहीं करती है और ट्रैफिक पुलिसकर्मी मैनुअल ट्रैफिक चलाते हैं। इस चौराहा पर कभी भी कोई भी वाहन कहीं से बीच चौराहा पर आ जाए, पता नहीं होता है। जिससे एक्सीडेंट होने का भी खतरा बना रहता है। फ्राइडे को इस चौराहा पर सबकुछ बदला-बदला नजर आया। चौराहा से चंद कदम दूर पुलिस लाइंस में ही डीजीपी आए थे और तीन घंटे तक मीटिंग की थी। फ्राइडे को जहां सिर्फ 6 से 7 ऑटो नजर आ रहे थे तो सैटरडे को इनकी संख्या 40 से 50 तक नजर आयी।

थानों में नहीं हो रही सुनवाई

पुलिस अधिकारियों का कहना है कि क्राइम कंट्रोल हुआ है। जनता और पुलिस के बीच की खाई पाटी जा रही है। डीजीपी ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में क्राइम कंट्रोल पर जोर दिया था लेकिन हकीकत कुछ और ही है। फ्राइडे को डीजीपी आए तो पुलिस पूरी तरह से मुस्तैद थी, थानों में भी फरियादियों की सुनवाई हो रही थी। जबकि आम दिनों में थानों में फरियादियों की सुनवाई ही नहीं हो रही है। गंभीर मामलों को छोड़कर ज्यादातर मामलों में एफआईआर दर्ज नहीं की जाती है। कोर्ट का हवाला देकर कम सजा वाले केस में गिरफ्तारी नहीं की जाती है। यही वजह है कि एडीजी, आईजी व एसएसपी ऑफिस में फरियादियों की लंबी लाइन लगी रहती है। जहां पहले बरेली के 29 थानों में औसतन 15 से 20 एफआईआर दर्ज होती थीं जो अब 7 से 10 तक पहुंच गई हैं। एसएसपी पीआरओ ऑफिस से पिछले कुछ दिनों से औसतन यही आंकड़ा भेजा जा रहा है। हालांकि इसमें कई मामले छिपा भी लिए जाते हैं, जबकि रोजाना एसएसपी ऑफिस में फरियादियों की संख्या सवा सौ से 150 तक पहुंचती है, जिससे एक बात तो साफ है कि पब्लिक की थानों में सुनवाई ही नहीं होती है।