रंजना यादव (ऑल इंडिया रेडियो में अनाउंसर)। कम से कम फौजी भाइयों के लिए पेश किया जाने वाला कार्यक्रम जयमाला या नाटिकाओं, झलकियों और प्रहसन को प्रस्तुत करने वाला कार्यक्रम हवामहल तो यही कहानी कहता है, यही कारण है कि 'मोदी के मतवाले राही' से शुरू हुआ यह सफर आज भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'मन की बात' तक आ पहुंचा है। मगर आवाजों का ये सिलसिला शुरू कैसे हुआ और हम तक कैसे पहुंचा? ध्वनि तरंगों को रेडियो तरंगों में बदलकर हम रेडियो संदेश के रूप में पाते हैं। रेडियो तरंगें विद्युत चुम्बकीय तरंगें हैं, जिन्हें रेडियो रिसीवर से पकड़कर फिर ध्वनि रूप में प्रस्तुत किया जाता है। यह प्रयोग पहली बार सन् 1890 में मारकोनी ने वायरलेस टेलीग्राफी पर काम करते हुए किया। मारकोनी जिन्हें हम रेडियो अविष्कारक के रूप में भी जानते हैं ने 1900 में पहली बार रेडियो संदेश भेजा, मगर एक से ज्यादा लोगों के पास रेडियो संदेश 1906 में भेजा गया, जिसे अटलांटिक महासागर में तैर रहे जहाजों के ऑपरेटर्स द्वारा सुना गया। यह रेडियो संदेश फेसेंडेन द्वारा वॉयलिन पर बजाया गया संगीत था।

1921 से भारत में रेडियो की शुरुआत

भारत में रेडियो पर आवाजों की अनवरत यात्रा की शुरुआत सन् 1921 से मानी जाती है, जब मुम्बई में हुए एक स्पेशल संगीत कार्यक्रम को पोस्ट एवं टेलीग्राफ विभाग के सहयोग से ब्रॉडकास्ट किया गया। इस कार्यक्रम को पुणे तक सुना गया था। इसके ठीक बाद ही नवम्बर 1923 में कलकत्ता रेडियो क्लब की स्थापना हुई और वहां से रेडियो ब्रॉडकास्टिंग की शुरुआत हुई। इसके साथ ही 1924 में मुम्बई व चेन्नई से भी प्रसारण सुनिश्चित किया गया, पर ये प्रसारण सीमित समय के लिए ही हो सके। कई मुश्किलों और अव्यवस्थाओं के चलते इन गैर व्यवसायिक रेडियो प्रसारण क्लब्स को बंद करना पड़ा। 1924 में मद्रास प्रेसिडेंसी क्लब में रेडियो प्रसारण बंद होने के बाद फिर सन् 1927 में मुंबई और कोलकाता में इंडियन ब्रॉडकास्ट कंपनी की शुरुआत तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने किया। इनके प्रसारण को लगभग पचास किलोमीटर के क्षेत्र में सुना जा सकता था। पहली बार 23 जुलाई को इंडियन प्रसारण कंपनी ने बंबई स्टेशन से रेडियो प्रसारण शुरू किया था। भारत में हर साल 23 जुलाई को राष्ट्रीय प्रसारण दिवस मनाते हैं।

इंडियन ब्रॉडकास्ट सर्विस से शुरुआत

कई तैयारियों के बाद भी यह कंपनी 1930 में बंद हो गई, मगर इस फ्लॉप कंपनी ने नींव रखी आज के सुपरहिट रेडियो प्रसारण की। सन् 1932 में भारतीय सरकार ने इसकी बागडोर अपने हाथ में ली और शुरुआत की इंडियन ब्रॉडकास्ट सर्विस की। 1936 में जिसका नाम ऑल इंडिया रेडियो रखा गया, सन् 1957 में इस ऑल इंडिया रेडियो को नया नाम दिया गया, जिसे आज हम आकाशवाणी के नाम से जानते हैं।

विश्व में सबसे बड़ा भारतीय रेडियो प्रसारण

आकाशवाणी का अर्थ है आकाश से मिला संदेश। पंचतंत्र की कहानियों में भी इस शब्द का जिक्र मिला है। यहां तक कि महाभारत कथा में भी इसका उल्लेख मिलता है। 1936 में मैसूर के एक विद्वान चिंतक एम वी गोपाल स्वामी ने इस शब्द को गढ़ा था। देश के स्वतंत्र होने के बाद आल इंडिया रेडियो को आकाशवाणी ही कहा जाने लगा। 'बहुजन हिताय बहुजन सुखाय' ध्येय वाक्य वाले आकाशवाणी को अब सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय अधिकृत रूप से देखने लगा। समय के साथ सिर्फ 6 स्टेशन से शुरू हुआ यह सफर आज पूरे देश में विस्तारित हो चुका है। अंग्रेजी हिंदी एवं क्षेत्रीय भाषाओं में दिए जाने वाले रेडियो कार्यक्रमों का सिलसिला आज भी जारी है। भाषाई भव्यता तथा विवधता के साथ आज भारतीय रेडियो प्रसारण विश्व के सबसे बड़े रेडियो प्रसारण संस्थाओं में से एक है।

लोगों के दिलों में राज कर रहा रेडियो

रेडियो की विश्वसनीयता पर आज भी कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती है। इसके जरिए ना सिर्फ गीत, संगीत बल्कि ज्ञान, विज्ञान की धारा भी निरंतरता के साथ बह रही है। पर बदलते वक्त के साथ थोड़ा बदले अंदाज में। रेडियो का प्राइवेटाइजेशन उसके और ज्यादा हाईटेक स्वरूप को सामने लेकर आया है, जहां लिस्नर्स के लिए सबकुछ है, पर थोड़ा नए और डिफरेंट स्टाइल में और इसी बदलाव के साथ रेडियो के दोनों स्वरूप आज भी ब्रॉडकास्टिंग की फील्ड में लोगों के दिलों पर राज कर रहे हैं।

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