जल्द ही यूपी और उत्तराखंड में असेंबली इलेक्शंस के लिए वोट डाले जाएंगे. ऐसे में हर तरफ साफ-सुथरे कैंडीडेट्स के बारे में ही डिस्कशन हो रहा है. हर कोई कह रहा है कि यंग और क्लीन इमेज वाले कैंडीडेट्स को सामने आना चाहिए. आखिर कहां से आएंगे ऐसे कैंडीडेट्स और क्या वाकई यंगस्टर्स सिस्टम को बदल सकते हैं? चलिए आपको मुंबई के तीन ऐसे यंगस्टर्स की कहानी से रूबरू करवाते हैं जो अपने दम पर अपने शहर की तस्वीर बदलने निकले हैं. हो सकता है कि यह कहानी आपमें से किसी को इंप्रेस कर जाए और आपमें भी इनके जैसा ही जज्बा आ जाए.
Hats off to them
16 फरवरी को जब बीएमसी इलेक्शंस के लिए वोटर्स वोट डालने निकलेंगे तो उनके सामने कुछ पुराने मंझे हुए पॉलिटिशयंस के साथ ही ऐसे यंगस्टर्स का भी ऑप्शन होगा जिन्होंने आम आदमी को एक बेहतर जिंदगी देने का वादा खुद से कर लिया है. इस बार के बीएमसी इलेक्शंस में कुछ ऐसे यंगस्टर्स भी चुनाव लड़ रहे हैं जो अपने करियर में अच्छी तरह से सैटल्ड हैं और नकारा सरकार से अपने शहर को बचाने के लिए आगे आना चाहते हैं.
They will bring the change!
29 साल के पंकज खानविलकर, 25 साल के बनाइफर दारूवाला और 28 साल के मेनानाथ गडे इस बार कॉरपोरेटर के लिए चुनाव में खड़े हैं. न तो ट्रेडीशनल पॉलिटिशयंस की तरह यह धोती-कुर्ते या कुर्ता पायजामा में नजर आते हैं और न ही यह किसी रीजनल लैंग्वेज को बढ़ावा देने की बात करते हैं. मॉडर्न ऑउटफिट्स और फर्राटेदार इंग्लिश बोलने वाले यह यंगस्टर्स इंडिपेंडेंट कैंडीडेट्स के तौर पर इलेक्शन में खड़े हैं. ये अपनी एजुकेशन, साफ रिकॉर्ड और खत्म होते इंफ्रास्ट्रक्चर को बचाने जैसे प्वाइंट्स को सामने रखकर इलेक्शन लडऩा चाहते हैं. आखिर क्यों वह सबकुछ छोडक़र पॉलिटिक्स में आना चाहते हैं? इसके बारे में घाटकोपर से कैंडीडेट मेनानाथ गडे बताते हैं कि सिविक बॉडीज का लापरवाह नजरिया, करप्शन, बुरी सडक़े और वॉटर सप्लाई, गंदगी, खराब होता ट्रांसपोर्ट सिस्टम और म्युनिसिपल स्कूलों की बुरी हालत ने उन्हें मजबूर कर दिया कि वह इस तरफ बढ़ें.
But what about the fund
जहां कैपेनिंग पर पॉलिटिशयंस करोड़ों खर्च कर डालते हैं, इन तीनों ने अपने लिए एक लाख तक की लिमिट तय कर रखी है. गडे बताते हैं कि उनके पास जितनी भी जमा पूंजी है वह उसे इन चुनावों में यूज कर डालेंगे. वहीं दूसरी बायफर दारूवाला इलेक्शन फंड के लिए अपने आठ 10 अच्छे दोस्तों पर डिपेंड करती हैं.
Beat the system
आदर्शवाद की बातों से अलग क्या ये तीनों यंगस्टर्स पॉलिटिशियंस और ब्यूरोक्रेट्स से डील कर पाएंगे जो पिछले कई सालों से माइंडगेम खेलते हुए इस फील्ड का हिस्सा बने है? खानविलकर कुछ इस अंदाज में जवाब देते हैं कि अगर 50,000 उनके पीछे खड़े हैं तो फिर उन्हें कोई भी सिचुएशन फेस करने में कोई डर नहीं लगता है.
लाखों की नौकरी छोडऩे को तैयार
सोसायटी को बेहतर बनाने के लिए यह तीनों अपने करियर को भी छोडऩे को तैयार हैं. खानविलकर एक एचआर प्रोफेशनल हैं. वह कहते हैं कि अगर वह जीत जाते हैं तो सोसायटी के भले के लिए अपनी नौकरी छोडऩे का भी कोई अफसोस नहीं होगा. वह कहते हैं कि वह आगे चलकर एक एचआर कंसलटेंसी शुरू करने की ख्वाहिश रखते हैं.
Campaign strategy Mouth publicity
जब इन कैंडीडेट से इनकी कैंपेन स्ट्रैटेजी की बात की जाती है तो यह सभी केवल एक शब्द पर डिपेंड करते हैं, माउथ पब्लिसिटी. यह तीनों ही मानते हैं कि अपने क्लोज फ्रेंड्स, कॉलोनी रेजीडेंट्स, ग्रुप्स पर ज्यादा डिपेंड करते हैं.
Social networking too
माउथ पब्लिसिटी के अलावा इन कैंडीडेट का सबसे बड़ा सहारा सोशल नेटवर्किंग साइट्स बनी हैं. इन तीनों ने ही फेसबुक और ट्विटर पर अपने अकाउंट्स बनाए हैं जिन पर यह तीनों ही लॉग इन करते हैं. इन्हें जानने वाले इनकी फ्रेंड लिस्ट का हिस्सा बनते हैं और वो अपने जानने वालों से इनके लिए वोट करने को कहते हैं.
Every vote counts
2007 बीएमसी इलेक्शंस में खानविलकर के एरिया डीएन नगर के 50,000 वोटर्स में से केवल 12,000 लोगों ने वोट डाले थे. इस बारे में पंकज कहते हैं कि वह वोटर्स को बताएंगे कि उनका वोट काफी कीमती है. वह कहते हैं कि उनका टारगेट यंगस्टर्स होंगे जो वोट डालने से बचते हैं. उन्हें बताएंगे कि वो अपने वोट से बड़ा चेंज ला सकते हैं.
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