मोबाइल के ज्याद इस्तेमाल से 50 परसेंट यूथ टेक्स्ट नेक सिंड्रोम और बैक पेन से परेशान
-स्मार्टफोन आंख और मेमोरी कर रहा कमजोर
इंटरनेट रिवॉल्युशन के चलते दुनिया सिमटकर छोटे से स्मार्टफोन में सिमट गई है. डिजिटल युग में हर किसी की लाइफ का अहम हिस्सा है स्मार्टफोन, लेकिन यही यूजर्स की सेहत का दुश्मन बन रहा है. स्मार्ट सिटी बनारस के हॉस्पिटल्स में मोबाइल सिंड्रोम के केसेज काफी बढ़ने लगे हैं. सबसे अधिक प्रॉब्लम गर्दन के दर्द की है इसे नेक सिंड्रोम कहते हैं. डॉक्टर्स की मानें तो सिटी में करीब 50 परसेंट स्मार्टफोन यूजर्स नेक सिंड्रोम, मस्क्यूलर पेन की चपेट में आ चुके हैं. इसमें यूथ और टीनएजर्स सबसे ज्यादा हैं.
नशा बन गया स्मार्टफोन
डॉक्टर्स की मानें तो लोगों में स्मार्टफोन का इस्तेमाल नशा बनता जा रहा है. खासकर यूथ और बच्चों में. जिस तरह नशा लोगों को अपनों से दूर कर स्वास्थ्य को खराब करता है, वही काम अब स्मार्टफोन कर रहा है. इसकी लत ऐसी हो गई है कि यूजर्स हर दो-दो मिनट में अपने मोबाइल पर एफबी, व्हाट्सअप, इंस्टाग्राम, ट्विटर चेक करने के लिए मोबाइल हाथ में लेते रहते हैं. इससे वे स्मार्टफोन सिंड्रोम की चपेट में आ रहे है. इससे उनमें डिप्रेशन की समस्या भी बढ़ रही है.
40 फीसदी में टेक्स्ट नेक सिंड्रोम
चिकित्सकों की माने तो स्मार्टफोन का इस्तेमाल कर रहे यंगस्टर्स को पता नहीं होता कि फोन से भी वह बीमार हो सकते हैं. फोन पर घंटों वक्त बिताने के कारण गर्दन में पेन की समस्या आ रही है. इसे नेक टेक्स्ट सिंड्रोम कहते हैं. इसमें गर्दन में अकड़ और दर्द होता है. फिजियोथेरपी के बाद भी दर्द नही जा रहा है. यह मोबाइल पर अधिक गेम खेलने से होती है. सबसे ज्यादा यूथ व टीनेजर्स प्रभावित हैं.
करियर पर भी असर
स्मार्टफोन सिंड्रोम में बगैर जरूरत के भी फोन का यूज, सोशल मीडिया पर देर तक किसी का मैसेज, लाइन या कमेंट न आने पर विचलित होना. इससे खासकर टीनएजर्स व युवाओं में निगेटिविटी बढ़ है. इसकी समय से काउंसलिंग न हुई तो पढ़ाई के साथ ही करियर भी दांव पर लग सकता है.
मेमोरी हो रही लॉस
जरूरी बातें मोबाइल में सुरक्षित रखने की आदत से डेक्लेरेटिव मेमोरी यानि याद करने की क्षमता, सूचनाओं को विस्तार में समझने की प्रवृत्ति घट रही है. बच्चों में भी इंटरपर्सनल कम्युनिकेशन न होने से उनका शारीरिक हाव-भाव और मूड भांपने की क्षमता घट रही है.
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स्मार्टफोन से आ रही बीमारी
थम्ब टेन्डनाइटिस-
कलाई से अंगूठे के तरफ की नसों में दर्द व सूजन रहना
रिस्ट टेन्डनाइटिस-
कलाई के जोड़ के पास की नसों में जलन और सूजन रहना
सर्वाइकल पॉस्चर सिंड्रोम-
पीठ के ऊपरी हिस्से और गले में असंतुलन होने से मांसपेशियों में तनाव से दर्द रहता है.
डिस्क बल्ज-
रीढ़ की हड्डियों के बीच मौजूद डिस्क के लचीलेपन पर असर पड़ने से दर्द शुरू होना.
पीडी टिनिटस-
कान में मोबाइल की घंटी सुनाई देना. यह बहरेपन की वजह बनता है.
मोबाइल विजन सिंड्रोम-
ज्यादा चैटिंग से आंखों में दर्द, धुंधला दिखाई देना, ड्राईआई की समस्या होती है.
टेक्स्टक्लॉ या सेलफोन एल्बो- ज्यादा चैटिंग से कलाइयों, उंगलियों में सूजन कोहनी में अकड़न रहना
मोबाइल सिंड्रोम के लक्षण
- उंगलियां, कलाई, आंख, गर्दन में दर्द
- डिप्रेशन, आक्रोशित हो जाना
- खुद को मोबाइल चलाने से न रोक पाना
-फ्रेंड्स, फैमिली के साथ होने पर भी फोन पर बिजी रहना
- मोबाइल से चंद पल दूर होने पर बेचैनी होना
- मोबाइल की घंटी सुनायी देने का भ्रम होना
वजह
- सिर को झुकाने से रीढ़ पर दो गुना और गर्दन पर तीन गुना वजन होता है
- मोबाइल की छोटी स्क्रीन पर पढ़ना और गेम खेलते रहना
- दिन भर में 3 घंटे से ज्यादा बात करने पर कान संबंधी प्रॉब्लम्स होना
- सेल्फी के लिए गर्दन झुकाने से रीढ़ की हड्डी पर सर्वाधिक वजन पड़ना
खुद को ऐसे रखें सेहतमंद
- सीधे खड़े हों, शरीर और गले को सही रखने के लिए मिरर देखें
- झुकी हुई कमर को सही करने के लिए कंधों को फैलाते हुए पीछे मुड़ें
- टाइप करते समय एक उंगली से ज्यादा टेक्स्ट या टाइपिंग न करें
- कलाइयों को आराम दें. इससे कलाई के जोड़ों पर दबाव नहीं पड़ेगा
- ठोढ़ी को नीचे न झुकाएं, गर्दन को एक ओर मोड़ कर बात न करें
-जरूरत के मुताबिक ही स्मार्टफोन का यूज करना चाहिए.
- मोबाइल पर लगातार टाइपिंग न करें
वर्जन
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स्मार्टफोन सिंड्रोम टीनेजर्स और युवाओं को बीमार कर रहा है. 50 फीसदी से ज्यादा यूथ टेक्स्ट नेक सिंड्रोम व बैक पेन की समस्या से प्रभावित होकर हॉस्पिटल पहुंच रहे हैं.
डॉ. स्वरूप, सीनियर आर्थोपेडिक्स,
स्मार्टफोन के यूज से युवाओं और बच्चों में नेक, आई और जोड़ों में दर्द की समस्या आ रही है. उनकी ओपीडी में रोजाना 50 से ज्यादा पेशेंट इस समस्या से पीडि़त आ रहे हैं.
डॉ. संतोष गुप्ता, आर्थोपेडिक्स, मंडलीय हॉस्पिटल
मोबाइल का इस्तेमाल एक एडिक्सन है, जो यूथ को तेजी से अपनी गिरफ्त में ले रहा है. यूजर्स एक लिमिट में ही मोबाइल का इस्तेमाल करें. मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल घातक है.
डॉ. संजय गुप्ता, साइकोलॉजिस्ट