- गोरखपुर यूनिवर्सिटी को शासन से 74 करोड़ मिलने की उम्मीद

- वहीं इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारने के लिए 22 करोड़ की हुई है डिमांड

GORAKHPUR: डीडीयू गोरखपुर यूनिवर्सिटी को घाटे से उबारने की पहल शुरू हो चुकी है। घाटे का बजट पास करने वाली गोरखपुर यूनिवर्सिटी को इस मुश्किल से निकालने के लिए फाइनेंस ऑफिसर ने कोशिशें तेज कर दी हैं। जहां जिम्मेदारों ने यूनिवर्सिटी के टीचर्स की तनख्वाह देने और दूसरी व्यवस्थाओं के मद में शासन से 74 करोड़ की डिमांड की है, वहीं इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर करने के लिए भी 22 करोड़ रुपए मांगा है। फाइल शासन में पहुंच चुकी है और उम्मीद है कि अगले माह यूनिवर्सिटी को इस बजट की सौगात मिल जाए, जिससे उनकी आधी परेशानी दूर हो जाए।

56 करोड़ घाटे का है बजट

गोरखपुर यूनिवर्सिटी में इस बार जो एनुअल बजट पास हुआ है, उसमें यूनिवर्सिटी को 56 करोड़ का नुकसान हो रहा है। इससे यूनिवर्सिटी चाहकर भी कोई विकास कार्य खुद नहीं करा पा रही है और उन्हें उच्चतर शिक्षा आयोग और यूजीसी के फंड का इंतजार करना पड़ रहा है। उसमें भी अगर उनके फेवरेबल कोई फंड अलॉट नहीं हो पा रहा है, तो विकास की गाड़ी बेपटरी हो जा रही है। इससे बचाने के लिए पिछले दिनों जिम्मेदारों ने शासन को बजट के साथ अपनी डिमांड भी भेज दी थी।

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जीपीएफ की भी पैरवी शुरू

एक तरफ जहां यूनिवर्सिटी ने शासन से बजट की डिमांड की है, वहीं यूनिवर्सिटी के जीपीएफ अकाउंट से गलत ट्रांसफर हुई रकम को वापस लाने के लिए पैरवी भी तेज हो गई है। जिम्मेदारों का लापरवाह रवैया यूनिवर्सिटी के खाते से करोड़ों रुपए कम होने की वजह बना है। 2002 से 2009 तक पीएलए अकाउंट का करीब 30 करोड़ रुपया जिम्मेदारों ने ट्रेजरी अकाउंट में ट्रांसफर नहीं कराया, जिसकी वजह से अकाउंट डीएक्टिव पड़ा रहा और यूनिवर्सिटी के जिम्मेदारों को इन रुपयों पर एक पैसा भी ब्याज नहीं मिला। वहीं कर्मचारियों के लगातार रिटायरमेंट होते रहे और इस अकाउंट से पैसा भी निकलता रहा, जिसकी वजह से करीब साढ़े 28 करोड़ से ज्यादा अमाउंट बिना ब्याज मिले ही खत्म हो गया। इस मामले की जानकारी होने के बाद 2015 में जिम्मेदारों ने शासन को ब्याज के लिए लेटर भेजा, लेकिन इसके बाद वह फिर इसे भूल गए। अब दैनिक जागरण आई नेक्स्ट में खबर छपने के बाद फिर एडमिनिस्ट्रेशन हरकत में आया है और उन्होंने ब्याज लाने की कवायद तेज कर दी है।

लापरवाही में नहीं हुआ ट्रांसफर

गोरखपुर यूनिवर्सिटी के अकाउंट में इस तीस करोड़ रुपए को ट्रांसफर हो जाना चाहिए था। मगर जिम्मेदारों की अनदेखी और लापरवाही की वजह से उस वक्त पैसा ट्रांसफर नहीं हो सका। 2003 में सरकार ने सभी पीएलए अकाउंट बंद कर दिए, उसके बाद भी यूनिवर्सिटी का पैसा वहीं फंसा रहा और किसी ने उसे वहां से निकालने की जहमत गवारा नहीं की। मामले की जानकारी जिम्मेदारों को 2009 में हुई, लेकिन इस दौरान जिम्मेदारों के पास महज 1.82 करोड़ रुपए ही खाते में बचे थे। पैसे तो ट्रांसफर करा लिए गए, लेकिन ब्याज की ओर किसी का ध्यान नहीं गया। 2015 में फाइनेंशियल ऑडिट में जब खाते में गड़बड़ी सामने आई, तो फिर मामले में कागजी कार्रवाई शुरू हुई।

वर्जन

शासन से अलग-अलग बजट की डिमांड की गई है। उन्हें यूनिवर्सिटी का एनुअल बजट भी भेज दिया गया है, जिसमें यूनिवर्सिटी करीब 56 करोड़ रुपए के घाटे में है। साथ ही इन दिनों नए प्रोफेसर्स की नियुक्ति हुई है, जिनकी सैलरी भी देनी है। ऐसे में अगर फंड की कमी हो जाएगी, तो मुकिश्लें खड़ी हो सकती हैं। उम्मीद है यूनिवर्सिटी की डिमांड जल्द पूरी हो जाएगी।

- बीरेंद्र चौबे, फाइनेंस ऑफिसर, डीडीयूजीयू