मानसून वेडिंग में अपनी धांसू परफॉर्मेंस के बाद उन्हें मेनस्ट्रीम के साथ ही ऑफबीट फिल्मों में भी देखा गया. एक चैट में विजय ने अपने प्रोफेशन, पैशन और प्रोजेक्ट से जुड़ा बहुत कुछ शेयर किया.

क्या आप लम्बे वक्त से डायरेक्शन में आना चाहते थे?

मैं बीते लम्बे वक्त से ऐसा प्लान कर रहा था लेकिन मैं इसे अपने तरीके से करना चाहता था. जब ये स्टोरी मेरे सामने आई तो मैंने इस मौके को हथियाना ठीक समझा.

पार्टीशन पर फिल्म बनाने का ख्याल कैसे आया?

मैं दिल्ली से हूं. मुझे लगता है कि दिल्ली के लगभग सभी लोग पार्टिशन से जुड़े खराब एक्सपीरियंसेस के बारे में सुनते हुए बड़े हुए हैं. मेरे बचपन का ये अहम हिस्सा था.

क्या आपकी फैमिली पर भी इसका असर पड़ा था?

नहीं. इसके बाद भी मैं ये कहानी लोगों तक पहुंचाना चाहता हूं. ये फिक्शनल कहानी हो सकती है, इसके बावजूद इसमें हकीकत के कई पुट हैं.

आप एक्टिंग और डायरेक्शन दोनों कर रहे हैं. क्या इन दोनों रोल के बीच बैलेंस बैठाना मुश्किल था?

नहीं. उल्टे काफी मजा आया. मैं डायरेक्ट कर रहा था इसलिए मैं अपने रोल को लेकर काफी क्लीयर था और मुझे लगता है कि मैंने इसे काफी बेहतर तरीके से किया. इसके बावजूद, डायरेक्शन ज्यादा टफ है क्योंकि उसमें ज्यादा रिस्पांसिबिलिटी है.

गुलजार आपकी फिल्म का हिस्सा कैसे बने?

गुलजार साब को इसका पोस्ट-इंडिपेंडेंस ड्रामा इतना छू गया कि उन्होंने इससे जुडऩे का फैसला कर लिया. हमारे क्रेडिट रोल में वह सबसे पॉपुलर नाम हैं. उन्होंने इस फिल्म के लिए पोयम भी लिखी हैं.

आज के सिनेरियो में ऑफबीट फिल्मों को आप कहां देखते हैं?

धीरे-धीरे वो जगह बना रही हैं. बदलाव में वक्त जो लगता है. रिक्शा ड्राइवर को रिव्यू की फिक्र किए बिना एक था टाइगर के टिकट खरीदने में सालों लग गए. कभी-कभी आप अच्छी फिल्में बनाते हैं और कभी-कभी आप सिर्फ लॉयल ऑडियंस क्रिएट करते हैं.

मानसून वेडिंग में अपनी धांसू परफॉर्मेंस के बाद उन्हें मेनस्ट्रीम के साथ ही ऑफबीट फिल्मों में भी देखा गया. एक चैट में विजय ने अपने प्रोफेशन, पैशन और प्रोजेक्ट से जुड़ा बहुत कुछ शेयर किया.

क्या आप लम्बे वक्त से डायरेक्शन में आना चाहते थे?

मैं बीते लम्बे वक्त से ऐसा प्लान कर रहा था लेकिन मैं इसे अपने तरीके से करना चाहता था. जब ये स्टोरी मेरे सामने आई तो मैंने इस मौके को हथियाना ठीक समझा.

पार्टीशन पर फिल्म बनाने का ख्याल कैसे आया?

मैं दिल्ली से हूं. मुझे लगता है कि दिल्ली के लगभग सभी लोग पार्टिशन से जुड़े खराब एक्सपीरियंसेस के बारे में सुनते हुए बड़े हुए हैं. मेरे बचपन का ये अहम हिस्सा था.

क्या आपकी फैमिली पर भी इसका असर पड़ा था?

नहीं. इसके बाद भी मैं ये कहानी लोगों तक पहुंचाना चाहता हूं. ये फिक्शनल कहानी हो सकती है, इसके बावजूद इसमें हकीकत के कई पुट हैं.

आप एक्टिंग और डायरेक्शन दोनों कर रहे हैं. क्या इन दोनों रोल के बीच बैलेंस बैठाना मुश्किल था?

नहीं. उल्टे काफी मजा आया. मैं डायरेक्ट कर रहा था इसलिए मैं अपने रोल को लेकर काफी क्लीयर था और मुझे लगता है कि मैंने इसे काफी बेहतर तरीके से किया. इसके बावजूद, डायरेक्शन ज्यादा टफ है क्योंकि उसमें ज्यादा रिस्पांसिबिलिटी है.

गुलजार आपकी फिल्म का हिस्सा कैसे बने?

गुलजार साब को इसका पोस्ट-इंडिपेंडेंस ड्रामा इतना छू गया कि उन्होंने इससे जुडऩे का फैसला कर लिया. हमारे क्रेडिट रोल में वह सबसे पॉपुलर नाम हैं. उन्होंने इस फिल्म के लिए पोयम भी लिखी हैं.

आज के सिनेरियो में ऑफबीट फिल्मों को आप कहां देखते हैं?

धीरे-धीरे वो जगह बना रही हैं. बदलाव में वक्त जो लगता है. रिक्शा ड्राइवर को रिव्यू की फिक्र किए बिना एक था टाइगर के टिकट खरीदने में सालों लग गए. कभी-कभी आप अच्छी फिल्में बनाते हैं और कभी-कभी आप सिर्फ लॉयल ऑडियंस क्रिएट करते हैं.