पहली बार परियोजना के लिए सलेक्ट हुई मेडिकल गे्रजुएट की रिसर्च

बॉडी ऑर्गन डोनेशन को लेकर रिसर्च में किए गए हैं कई खुलासे

Meerut। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने पहली बार लाला लाजपत राय के किसी विभाग में मेडिकल ग्रेजुएट की रिसर्च को चुना है। कम्युनिटी हेल्थ डिपार्टमेंट के तहत हुई इस रिसर्च को एमबीबीएस थर्ड ईयर के स्टूडेंट उमेश शर्मा ने पूरा किया है। नेत्र एवं अंगदान पर शहरी और ग्रामीण परिपेक्ष्य को लेकर हुई इस रिसर्च में जहां कई बड़े खुलासे हुए हैं, वहीं पहली बार नेशनल लेवल पर ये रिसर्च सामने आई है। कम्युनिटी हेल्थ के एचओडी डॉ। एसके गर्ग ने बताया कि ये कॉलेज के लिए गर्व का पल है। एसटीएस परियोजना के लिए विभाग में हुई रिसर्च को चुना गया है। इस रिसर्च को पूरा करने में डॉ। हरिवंश चोपड़ा और डॉ। प्रशांत भटनागर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

ये कहती है रिसर्च

मेरठ के शहरी एवं ग्रामीण इलाकों के निवासियों पर हुई इस रिसर्च में कई महत्वपूर्ण बातें सामने आई हैं। इसके तहत रिसर्च में शामिल शहरी क्षेत्र में 4.7 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्र के 11.32 प्रतिशत प्रतिभागियों ने नेत्र एवं अंगदान के बारे में कभी नहीं सुना था। इसके अलावा 48.21 प्रतिशत प्रतिभागी किसी भी तरह के नेत्र एवं अंगदान को गैर कानूनी मानते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि सरकार की ओर से चलाए जा रहे जागरूकता अभियान विफल हो रहे हैं। वहीं ट्रांसप्लांटेशन ऑफ ह्यूमन ऑर्गन्स एंड टिश्यूज एक्ट की अनभिज्ञता भी इससे जाहिर होती है। जबकि 18.16 प्रतिशत लोगों ने धार्मिक कारणों से नेत्र एवं अंगदान न करने की बात स्वीकार की है।

नहीं लिया संकल्प

शोध में सामने आया है कि 46.23 प्रतिशत शहरी नेत्र एवं अंगदान के इच्छुक हैं लेकिन किसी ने भी इसे करने का संकल्प नहीं लिया है। वहीं की 36.7 प्रतिशत ग्रामीण इच्छुक हैं लेकिन 1.89 प्रतिशत ग्रामीणों ने नेत्र एवं अंगदान का संकल्प लिया हैं। वहीं चौंकाने वाली बात ये है कि 37 प्रतिशत को भ्रम है कि नेत्र या अंगदान संकल्पकर्ता या उसका परिवार इसके लिए राजी हो गए तो डॉक्टर्स रोगी की जान बचाने की कोशिश ही नहीं करेंगे। इसके अलावा 48 प्रतिशत प्रतिभागियों में ये भ्रम था की नेत्र अवं अंगदान के बाद मानव शरीर विकृत हो जाता है। जिसकी वजह से अंतिम संस्कार करने में कठिनाई आएगी। इसके अलावा 41.98 प्रतिशत ग्रामीण एवं 57.65 प्रतिशत शहरी मानते हैं कि सरकार नेत्र या अंगदान संकल्पकर्ता को मुफ्त इलाज की सुविधा प्रदान करें ताकि लोग आगे आकर नेत्र या अंगदान का संकल्प लें।