अगर आप को पसंद है 'पिंक' तो जरूर देखें ये 13 वुमन ओरियेंटेड फिल्‍में

'क्वीन' (2013)
कंगना रनौत की फिल्म 'क्वीन' अपने नाम से ही महिला की ताकत और उसके अंदाज को जाहिर कर देती है। शादी से ठीक पहले अपने होने वाले पति से नकार दी गयी एक लड़की के, खुद अपनी चाहतों के लिए उठ खड़े होने की कहानी है ये फिल्म।

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'डोर' (2006)
नागेश कुकनूर के डायरेक्शन में बनी ये फिल्म दो औरतों की दोस्ती और बांडिंग की कहानी है। आशया टाकिया और गुल पनाग के परफार्मेंस ने फिल्म में जो फ्लेवर दिया है वो अनोखा है। माफी मांगने और माफ कर देने के खास अहसास को बयान करने वाली इस फिल्म का हर मोड़ दमदार है। बावजूद इसके कि एक दोस्त अपने पति के कातिल की पत्नी की दोस्त बन जाती है।

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'इंग्लिश विंग्लिश' (2012)
औरत के आत्म सम्मान पर प्रहार उसे किस कदर तोड़ता और फिर जोड़ता है इसकी कहानी है श्रीदेवी की कमबैक फिल्म इंग्लिश विंग्लिश। अपने ही परिवार और अपनों से मिली उपेक्षा औरत को ये कहने को मजबूर कर देती है कि उसे प्यार नहीं थोड़ी सी इज्जत चाहिए अपने लिए।

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'भूमिका' (1977)
श्याम बेनेगल की फिल्म भूमिका में स्मिता पाटिल ऐसी औरत के रोल में है जो अपनी कामयाबी की कीमत चुका रही है। नाकामयाब पति का आहत अहंकार किस कदर क्रूर हो सकता है इस फिल्म में कमाल के कौशल से दिखाया गया है।

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'मृत्युदंड' (1997)
जेंडर इक्वेलिटी को आधार बना कर बनी इस फिल्म में माधुरी दीक्षित एक सशक्त महिला के किरदार में दिखाई दी हैं। ग्रामीण भारत में आज भी औरत को बराबरी का दर्जा नहीं मिलता और संघर्ष में जीतने के लिए कभी कभी उसे अपने प्यार से भी मुकाबला करना पड़ता है। फिल्म का एक संवाद "पति हैं परमेश्वर बनने की कोशिश मत कीजिए" इसी की एक झलक है।

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'दामिनी' (1993)
सिर्फ सच बोलने की कीमत अगर आप औरत हैं तो आपको मर्दों से शायद कई गुना ज्यादा चुकाना पड़ती है। इसके बावजूद आपका अपना परिवार भी आपको अकेला कर देता है। एक औरत के लिए औरत के सच की कहानी दामिनी यही बताती है। फिल्म में दामिनी बनी मीनाक्षी शेषाद्री बलात्कार की शिकार हुई अपनी मेड के हक की लड़ाई में इस सब से गुजरती है।

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'मिर्च मसाला' (1987)
गरीब या घर से निकल कर काम करने वाली हर औरत ना तो बाजार में बिकने के लिए आया सामान होती है, ना ही समझौता करने के लिए कमजोर होती है। फिल्म मिर्च मसाला में सशक्त लेबर सोनबाई का, पतित सूबेदार बने नसीरुद्दीन को तमाचा इसी सच को दिखाता है।

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'अस्तित्व' (2000)
तब्बू की मुख्य भूमिका वाली फिल्म अस्तित्व पहली नजर में एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर की कहानी लगती है। हकीकत लेकिन इससे कहीं अलग है। फिल्म बताती है कि औरत को महज जरूरत पूरी करने का जरिया नहीं माना जा सकता। उसका भी अपना एक अस्तित्व है और एक रिश्ते में उसकी भी जरूरतें होती हैं।

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'रुदाली' (1993)
राजस्थान के एक गांव में रहने वाली शनीचरी (डिम्पल कपाड़िया) एक पेशेवर रुदाली या अमीरों के घरों में होने वाली मौत पर रोने के लिए जाने वाली है। दूसरों के दर्द में रोने जाने वाली औरत के अपने कितने दर्द होते हैं इसे ही समझाती है ये फिल्म।

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'आंधी' (1975)
आज की राजनीति में कितने उतार चढ़ाव हैं और इस क्षेत्र में करियर बनाने वाली औरत की जिंदगी में क्या मोड़ आते हैं, उन्ही को दिखाती है फिल्म आंधी की कहानी।

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'मंडी' (1975)
वेश्या और वेश्यावृत्ति जब भी फिल्मों में दिखाई जाती है उसे करने वाला चरित्र ज्यादातर नकारात्मक ही दिखाया जाता है। मंडी उन चंद फिल्मों से एक है जो इस व्यवसाय से जुड़े कई दर्द भरे पहलुओं को सामने लाती हैं।

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'अर्थ'  (1982)
विवाहेतर संबंध कितने उलझे हुए हुए होते हैं अर्थ इसी की कहानी है। आप प्यार भी करते हैं और संवेदनशील भी है और आत्मसम्मान के साथ जीना भी चाहते हैं तो आपको सच की आंखों में आंखे डाल कर खड़ा होना होता है।

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'अंकुर' (1974)
श्याम बेनेगल की फिल्म अंकुर ये बताती है कि औरत के भीतर पल रहे आक्रोश में विरोध के अंकुर फूट रहे हैं। इसके साथ ही ये फिल्म औरत को अपने फैसलों के लिए अडिग होने और खुद को वस्तु मानने से इंकार करने के लिए प्रेरित करने की कहानी भी है।

 

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