आखिर कैसे मनाया जाता है ईकोफ्रैंडली फेस्टिवल

देश के अलग-अलग प्रदेशों में मनाए जाने वाले छठ महापर्व में कोई भी ऐसी पूजन सामग्री का उपयोग नही किया जाता है जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है. इसलिए इसे एक इकोफ्रैंडली पर्व के रूप में ख्याति प्राप्त है. इस पर्व में परंपरागत बर्तनों में बनने वाला प्रसाद नेचुरल होता है. दिल्ली भोजपुरी समाज के अध्यक्ष अजीत दुबे ने कहा कि इस पर्व की खासियत यह है कि इसमें कोई भी आधुनिकता का प्रदर्शन नही कर सकता है. इसके साथ ही परंपरा से हटकर भी कुछ नही सोचा जा सकता है. गौरतलब है कि पूजन करने वालों को नदी के घाट तक पूजन सामग्री अपने सर पर ही रखकर ले जाते हैं. दुबे कहते हैं कि सही मायनों में यही एक समाजवादी पर्व की पहचान है.

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घरों में उगता हैं प्रसाद का साठी चावल

इस त्योहार की खासियत यह है कि इस पर्व में भाग लेने वाले लोग अपनी अमीरी और गरीबी नही दिखा सकते हैं. बड़े पदों पर आसीन अफसरों से लेकर बड़े बिजनेसमैन तक आम लोगों को साथ इस महापर्व में भाग लेते हैं. इसके साथ ही इस पर्व में यूज होने वाली सामग्री हर वर्ग के अप्रोच में होती है. पिछले चार दशकों से छठ पूजा कर रहे बलिराम यादव ने कहा था कि छठ पूजा की सामग्री खुद ही तैयार की जाती है. पूजा का प्रसाद तैयार करने में काफी सफाई का ध्यान रखा जाता है. गौरतलब है कि प्रसाद में यूज होने वाला साठी का चावल भी लोग अपने घरों में ही उगाते हैं. हालांकि कुछ लोग अपने गांव से भी इस चावल को मंगवा लेते हैं.

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