पहली बार लोकतंत्र को जेल

यही वो तारीख है जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने खिलाफ उठ रही विरोध के सुर को दबाने के लिए इमरजेंसी जैसी तानाशाह कानून का सहारा लिया. 1971 में बांग्लादेश बनवाकार शोहरत के शिखर पर पंहुची इंदिरा को अब अपने खिलाफ उठी हर आवाज एक साजिश लग रही थी. उन्होंने लाखों लोगों को जेल में डाल दिया. इसके साथ ही कुछ लिखने-बोलने पर भी पाबंदी लग गई.

सरकार का हुआ था विरोध

देश में व्याप्त भ्रष्टाचार और मंहगाई से त्रस्त जनता ने सरकार का विरोध करना शुरू कर दिया. इस मुद्दे को लेकर देशव्यापी आंदोलन होने लगे. गुजरात कर्फ्यू इसका प्रबल उदाहरण था. इस मामले को लेकर गुजरात के चिमनभाई को इस्तीफा भी देना पड़ा. देश में छा रही अशांति को लेकर विपक्ष ने इंदिरा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया.

इधर गिरफ्तारी, उधर बगावत

12 जून 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने रायबरेली से इंदिरा का चुनाव अवैध घोषित कर दिया. विपक्ष उनसे इस्तीफे की मांग करने लगे. लेकिन सत्ता के मद में चूर इंदिरा ने 25 जून को इमरजेंसी की घोषणा कर दी. विपक्ष के तमाम नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. देश में उनके खिलाफ जो आवाज उठा रहा था उसे जेल भेज दिया गया. हालांकि जनता की आवाज को इमरजेंसी भी कुछ नहीं बिगाड़ पायी. देश में इंदिरा और कांग्रेस विरोधी नारे लगने लगे.

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