BAREILLY:

पितृपक्ष की सैटरडे से शुरुआत हो चुकी है। लोग अपने पितरों का आज से तर्पण करेंगे और सुख, समृद्धि और पितरों की आत्मा की शांति की प्रार्थना करेंगे। इसी क्रम में पितृपक्ष के पहले दिन हम आपको बरेली के बदलाव की दास्तां के बारे में बताने जा रहे हैं, ताकि आप उन लोगों को याद कर सकें। जिन्होंने बरेली को इस मुकाम तक पहुंचाने में खुद को मिटा दिया। वर्षो से बांस बरेली के नाम से पहचाने जाने वाला बरेली आज स्मार्ट सिटी का दर्जा पा चुका है। आइए इसके इतिहास पर करेंग गौर

बरल नाम से जाना जाता था

बरेली का कोई शाब्दिक अर्थ नहीं है। यहां के राजा बरल देव के नाम पर इसका नामकरण बरेली हुआ। पूर्व मध्यकाल में उत्तर भारत में बरल नाम प्रचलित था। ऐसे में इसका नाम बरेली पड़ा। चंदेल, परमार, चौहान राजवंशों के समय कई राजाओं एवं सामंतों के नाम भी बरल थे। लोग बरेली को बांस बरेली नाम से भी पुकारते हैं। बता दें कि यह नाम यहां के राजा जगत सिंह के दो बेटों बासदेव और बरलदेव के शुरुआती अक्षरों को जोड़कर पुकारे जाने से पड़ा। बाद में बास कटा और बरेली नाम पड़ गया।

उम्दा क्वालिटी के होते थे बांस

लोगों ने बांस की पहचान को जोड़कर इसे बांस बरेली नाम से पुकारना शुरू कर दिया। यहां के आसपास बांस बहुतायत में पाए जाते हैं। जिनकी क्वालिटी भी जबरदस्त होती थी। पूर्व में सर्वाधिक प्रयोग बांस का होने से खरीदारी बढ़ी। जिससे बरेली की आय बढ़ी, जिसने इसके विकास में मदद की। कइयों ने यहां के बांस की क्वालिटी को नकार कर बाहर के राज्यों से बांस लाने की कोशिश की। जिन्हें वापस लौटना पड़ा। और किवदंती बनी कि 'उल्टे बांस बरेली को' अर्थात निर्रथक काम करना।

आज है अपनी अलग पहचान

पहाड़ों के नजदीक बसा होने और पेड़ पौधों की अधिकता समेत सर्द मौसम के कारण बरेली का मिजाज सुरमई है। शायद इसी वजह से तनु वेड्स मनु के सेकंड पार्ट के एक डॉयलॉग में बरेली को सुरमई कहा गया है। इसके साथ ही उस दौर में बरेली का जरी वर्क सर्वाधिक बेहतर होता था। जिसने इसे देश और विदेश में जरी नगरी के उप नाम से फेम दिलाया। आय बढ़ने से बरेली का विकास होना शुरू हुआ। निगम, कमिश्नरी, एयरफोर्स, आर्मी, हाइवे, रोड, पेयजल, आवास सभी सुविधाओं से लैस बरेली की आज अपनी अलग पहचान है। इस पहचान तक बरेली को पहुंचाने में न जाने कितने ही लोगों ने अपना योगदान दिया है। जिन्हें आई नेक्स्ट इस पितृपक्ष पर नमन करता है।