असेंबली बम कांड रहा चर्चित
चंद्रशेखर आजाद बचपन से ही भारत की स्वतंत्रता को लेकर गंभीर थे। वे पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल व सरदार भगत सिंह सरीखे क्रान्तिकारियों के अनन्यतम साथियों में से थे। सन् 1922 में गाँधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में पहले 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड किया और फरार हो गये। इसके पश्चात् सन् 1927 में 'बिस्मिल' के साथ 4 प्रमुख साथियों के बलिदान के बाद उन्होंने उत्तर भारत की सभी क्रान्तिकारी पार्टियों को मिलाकर एक करते हुए हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन का गठन किया तथा भगत सिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स का हत्या करके लिया एवं दिल्ली पहुँच कर असेम्बली बम काण्ड को अंजाम दिया।

क्रांतिकारियों की फांसी रुकवाना चाहते थे
बताते हैं कि चन्द्रशेखर आज़ाद ने मृत्यु दण्ड पाये गए तीन प्रमुख क्रान्तिकारियों (भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव) की सजा कम कराने का काफी प्रयास किया। वे उत्तर प्रदेश की हरदोई जेल में जाकर गणेशशंकर विद्यार्थी से मिले। विद्यार्थी से परामर्श कर वे इलाहाबाद गये और जवाहरलाल नेहरू से उनके निवास आनन्द भवन में भेंट की। आजाद ने पण्डित नेहरू से यह आग्रह किया कि वे गांधी जी पर लॉर्ड इरविन से इन तीनों की फाँसी को उम्र- कैद में बदलवाने के लिये जोर डालें। नेहरू जी ने जब आजाद की बात नहीं मानी तो आजाद ने उनसे काफी देर तक बहस भी की। इस पर नेहरू जी ने क्रोधित होकर आजाद को तत्काल वहाँ से चले जाने को कहा।

कहानी अलफ्रेड पार्क की जहां शहीद हुए चंद्रशेखर आजाद
अलफ्रेड पार्क में खुद को मार ली गोली
नेहरू द्वारा उनकी बात न मानने पर आजाद काफी दुखी हुए। वे नेहरूर के घर से निकलकर अपनी साइकिल पर बैठकर अल्फ्रेड पार्क की ओर चले गये। अल्फ्रेड पार्क में अपने एक मित्र सुखदेव राज से मन्त्रणा कर ही रहे थे तभी सी०आई०डी० का एस०एस०पी० नॉट बाबर जीप से वहाँ आ पहुँचा। उसके पीछे-पीछे भारी संख्या में कर्नलगंज थाने से पुलिस भी आ गयी। दोनों ओर से हुई भयंकर गोलीबारी हुई, हालांकि इस गोलीबारी में आजाद ने सुखदेव राज को तो वहां से भगा दिया लेकिन अकेले ही पुलिस से सामना किया। आखिर में जब उनके पास सिर्फ एक गोली बची तो उन्होंने खुद को अंग्रेजों के सुपुर्द करने के बजाए स्वंय को गोली मार ली और वीरगति को प्राप्त हुए।

कहानी अलफ्रेड पार्क की जहां शहीद हुए चंद्रशेखर आजाद
अलफ्रेड पार्क बन गया आजाद पार्क
पुलिस ने बिना किसी को इसकी सूचना दिये चन्द्रशेखर आज़ाद का अन्तिम संस्कार कर दिया था। जैसे ही आजाद की बलिदान की खबर जनता को लगी सारा इलाहाबाद अलफ्रेड पार्क में उमड पडा। जिस वृक्ष के नीचे आजाद शहीद हुए थे लोग उस वृक्ष की पूजा करने लगे। वृक्ष के तने के इर्द-गिर्द झण्डियाँ बाँध दी गयीं। लोग उस स्थान की माटी को कपडों में शीशियों में भरकर ले जाने लगे। हालांकि वह वृक्ष आज भी इलाहाबाद में स्थित है और अब उस पार्क को अलफ्रेड नहीं बल्िक चंद्रशेखर आजाद पार्क बोला जाता है।

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