गुरूवार को हुए अस्पताल में एडमिट
डालमिया को गुरुवार शाम अलीपुर स्थित उनके निवास स्थल पर सीने में दर्द की शिकायत पर बीएम बिड़ला हार्ट रिसर्च इंस्टिट्यूट में भर्ती कराया गया था, जहां उनकी एंजियोग्राफी की गई थी और दिल की धमनी में जमे खून के थक्कों को हटाया गया था। उन्हें आइसीयू में रखा गया था। हालांकि पिछले दो दिनों से उनकी हालत स्थिर बताई जा रही थी। अस्पताल सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक रविवार शाम छह बजे के बाद उनकी तबीयत अचानक बेहद बिगड़ गई और दिल का दौरा पडऩे एवं कई अंगों के काम करना बंद कर देने के कारण उनका निधन हो गया।

काफी दिन से थे बीमार
डालमिया पिछले काफी दिनों से अस्वस्थ थे और बीसीसीआइ एवं सीबीए के दैनिक कामकाज में सक्रिय रूप से भाग नही ले रहे थे। विश्व के सबसे बेहतरीन क्रिकेट प्रशासकों में शुमार डालमिया 10 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद इसी साल मार्च में फिर से बीसीसीआइ अध्यक्ष के पद पर काबिज हुए थे। उनके निधन की खबर मिलते ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अस्पताल पहुंची। डालमिया का क्रिकेट प्रशासक के तौर पर तीन दशक से भी लंबा सफर रहा है। वह 1979 में बीसीसीआइ से जुड़े थे और 1983 में इसके कोषाध्यक्ष बने थे। 1987 व 1996 में दक्षिण एशिया को क्रिकेट विश्व कप की मेजबानी हासिल कराने में उनकी बहुत बड़ी भूमिका रही है। वह 1997 में निर्विरोध अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आइसीसी) के अध्यक्ष चुने गए थे।

भारतीय क्रिकेट को बनाया सबसे धनी
विकेटों के पीछे खड़ा रहने वाला एक नौजवान कभी भारतीय क्रिकेट को अपने बूते बहुत आगे ले जाएगा, शायद ही किसी ने ये सोचा था। वह शख्स कोई और नहीं, बल्कि जगमोहन डालमिया थे। क्रिकेट की दुनिया में जब भी बेहतरीन प्रशासकों की बात होगी तो पहला नाम यकीनन डालमिया का ही लिया जाएगा। भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) को दुनिया का सबसे धनी क्रिकेट बोर्ड बनाने में उनकी बड़ी भूमिका थी।

डालमिया का सफर
बीसीसीआइ में लंबी पारी खेलने वाले डालमिया बंगाल की क्रिकेट बिरादरी में ‘जग्गू दा’ के नाम से मशहूर थे। डालमिया का बीसीसीआइ से साढ़े तीन दशकों से भी पुराना नाता था। उन्होंने बीसीसीआइ से भी आगे बढक़र अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आइसीसी) तक की कमान बखूबी संभाली। बहुत कम लोगों को मालूम है कि 30 मई, 1940 को कोलकाता के एक मारवाड़ी परिवार में जन्मे डालमिया कॉलेज के दिनों में क्रिकेटर थे। वह स्कॉटिश चर्च कॉलेज की क्रिकेट टीम के विकेटकीपर रहे। वह  कई क्रिकेट क्लबों के लिए विकेटकीपर के रूप में खेले। इतना ही नहीं, वह एक बार दोहरा शतक भी जड़ चुके थे। इसके बाद वह अपने पिता की निर्माण कंपनी एमएल डालमिया एंड कंपनी से जुड़ गए। इसी कंपनी ने 1963 में एमपी बिड़ला प्लेनेटोरियम का निर्माण किया था। 

Jagmohan Dalmiya passed away

किस्मत को हालांकि कुछ और ही मंजूर था। बीसीसीआइ के साथ डालमिया की जुगलबंदी 1979 में शुरू हुई। 1983 में जब भारतीय क्रिकेट टीम ने कपिल देव की कप्तानी में पहला क्रिकेट विश्व कप जीता, उसी साल वह बोर्ड के कोषाध्यक्ष नियुक्त हुए थे। दक्षिण एशिया में 1987 और 1996 में क्रिकेट विश्व कप के आयोजन का काफी श्रेय उन्हीं को जाता है। 1997 में वह निर्विरोध आइसीसी के अध्यक्ष चुने गये और तीन वर्षों तक उन्होंने यह पदभार संभाला। वह कई बार बीसीसीआइ अध्यक्ष बने।

देखे हैं बहुत उतार चढ़ाव
जिंदगी में कभी न कभी बुरा वक्त सबका आता है। डालमिया भी अपवाद नहीं थे। बीसीसीआइ में शरद पवार गुट के सक्रिय होने पर 2006 में डालमिया को फंड के गबन के आरोप में बीसीसीआइ से हटा दिया गया। लेकिन उन्होंने हार नही मानी और बांबे हाईकोर्ट और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। डालमिया के खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं हुआ। उन्हें  क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल (सीएबी) के अध्यक्ष पद का चुनाव लडऩे से भी रोका गया। उन्होंने इस फैसले को भी कलकत्ता हाईकोर्ट में चुनौती दी। जुलाई, 2007 में कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया। डालमिया ने चुनाव लड़ा और जीता भी और इसके साथ ही उन पर कंधे पर ‘कम बैक मैन’ का तमगा लटक गया। जून, 2013 में एन श्रीनिवासन के अस्थायी तौर पर पद से हटने के बाद डालमिया बीसीसीआइ के अंतरिम अध्यक्ष बने। इसके पीछे भी कहीं न कहीं उनका ‘मास्टर स्ट्रोक’ था। इसी साल दो मार्च, 2015 को वह 10 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद फिर से बीसीसीआइ अध्यक्ष बने थे और एक बार फिर उनसे बड़ी पारी की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन उससे पहले ही वह ‘रिटायर्ड हर्ट’ होकर लौट गए।

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