-बुधवार को साकची स्थित जेल चौक के पास ऑटो से गिरने पर स्कूल से घर लौट रही बच्ची घायल हो गई थी

-आई नेक्स्ट ने रियलिटी चेक कर जाना ऑटो की मनमानी का हकीकत, पहले भी हो चुकी है घटना

-ट्रैफिक पुलिस भी सुस्त, महीनों बाद एक बार चलाया जाता है ऑटो और स्कूल वैन के खिलाफ अभियान

JAMSHEDPUR: बुधवार को साकची स्थित जेल चौक के पास से गुजरते हुए ऑटो से स्कूल से लौट रही एक बच्ची गिर पड़ी। उसे चोट आई, खून निकला और वह रोने लगी। वह पीछे की सीट पर बैठी थी जिसे बाद में ड्राइवर ने अपनी बगल में बिठा लिया। बच्ची को चोट लगने की खबर उसके पैरेंट्स को तब लगी होगी जब वह घर पहुंची होगी। इससे पहले तक तो पैरेंट्स उन अंजान ड्राइवर्स पर भरोसा कर निश्चिंत रहते हैं कि बच्ची सकुशल घर वापस आ जाएगी। ऐसा पहली बार नहीं हुआ। पहले भी ऑटो के पलटने या उससे गिरने की वजह से बच्चे घायल होते रहे हैं। इस घटना के बाद हमने गुरुवार को रियलिटी चेक किया और स्कूली ऑटो की हकीकत जानने की कोशिश की। इस दौरान पैरेंट्स ने भी अपना दर्द बयां किया।

ऑटो में नहीं है सेफ्टी रॉड

ऑटो किसी भी सूरत में स्टूडेंट्स की सुरक्षा के लिहाज से ठीक नहीं है। ऑटो ड्राइवर फ्रंट सीट पर लेफ्ट और राइट में दो-दो बच्चों को बैठाते हैं। दोनों तरफ सेफ्टी रॉड भी नहीं लगा है। इसके अलावा बीच वाली सीट पर 7 से 8 बच्चे और पीछे वाली सीट पर भी उतने ही बच्चे बैठाते हैं। हद तो तब हो जाती है जब सीट के अलावा पीछले गेट पर भी बच्चों को बैठाते हैं। इससे अचानक गेट खुलने की स्थिति में बच्चे सड़क पर गिर सकते हैं।

800 रुपए वसूलते हैं किराया

गार्जियन प्रकाश सिंह ने बताया एक ऑटो का किराया 800 रुपए पेमेंट करते हैं। उनका बच्चा टीन प्लेट से डीबीएमएस स्कूल में पढ़ने आता है। दूरी बढ़ने पर स्कूल फेयर और अधिक बढ़ जाता है।

वाहनों के साथ छेड़छाड़ कर बनाया नया सीट

मैजिक मिनी व्हेकिल में सीट के साथ छेड़छाड़ कर उसमें सीटिंग कैपिसिटी ज्यादा कर दी गई है। लोहे के रॉड लगाकर नया सीट तैयार कर दिया गया है। इससे वाहन में बैठने पर स्टूडेंट्स अनकंफर्टेबल फील करते हैं। हालांकि मोटर व्हीकल्स एक्ट में ऐसा करना अपराध माना जाता है।

पहले भी ऑटो पलटने से बच्चे घायल हुए थे

ऑटो और स्कूल वैन की मनमानी पहले से चलती आ रही है। बुधवार को ऑटो से गिरकर एक बच्ची को चोट लगी। पर यह इस साल की दूसरी घटना है। इससे पहले ब् फरवरी को ऑटो पलटने से काशीडीह हाई स्कूल के कई बच्चे घायल हो गए थे। इस घटना के बाद क्म् फरवरी को ट्रैफिक पुलिस द्वारा ऑटो और स्कूल वैन के खिलाफ अभियान चलाया गया था। इसमें 9 ऑटो और क्क् स्कूल वैन को पकड़ा गया था। इनमें कैपेसिटी से ज्यादा बच्चों केा बिठाया गया था। सवाल यह है कि एक बार अभियान चलाकर ही ट्रैफिक पुलिस अपना काम पूरा क्यों मान लेती है। मैक्सिमम ऑटो और स्कूल वैन में कैपेसिटी से ज्यादा बच्चों को बिठाया जाता है जो सभी को दिखता है पर एडमिनिस्ट्रेशन काे नहीं।

क्या कहता है सुप्रीम कोर्ट का गाइडलाइंस

सुप्रीम कोर्ट के डायरेक्शन के आधार पर विभिन्न राज्यों में स्कूल बस, वैन के लिए कई रूल्स बनाए गए हैं

-स्कूली बच्चों को ले जाने वाले बस या वैन्स पर स्कूल बस या हायर किए गए बस पर ऑन स्कूल/कॉलेज ड्यूटी लिखा होना चाहिए।

-गाडि़यों पर परमिटेड सीटिंग कैपिसिटी से ज्यादा बच्चे नहीं बैठाए जा सकते।

-व्हीकल में फ‌र्स्ट एड बॉक्स, ड्रिंकिंग वाटर होना चाहिए।

-स्कूल का नाम और टेलीफोन नंबर डिस्प्ले करना है।

-स्कूली बच्चों को ले जाने वाले व्हीकल्स के ड्राइवर के पास ड्राइविंग का पांच साल का एक्सपीरिएंस होना चाहिए।

-ड्राइवर रेड लाइट जंपिंग, लेन डिसिप्लिन को तोड़ना या अनऑथराइज्ड व्यक्ति को गाड़ी चलाने देने जैसे ऑफेंस में एक साल में दो बार से ज्यादा चलान होने पर ड्राइवर स्कूल व्हीकल नहीं चला सकता।

-अगर किसी ड्राइवर का ओवर स्पीडिंग, ड्रंकेन ड्राइविंग और डेंजरस ड्राइविंग के लिए एक बार भी चलान हुआ है, तो वो स्कूल व्हीकल नहीं चला सकता।

-ड्राइवर के साथ इफेक्टिव कंडक्टर्स लाइसेंस वाला कंडक्टर भी होना चाहिए।

-इसके अलावा सीट बेल्ट बांधने सहित और भी कई रूल्स हैं।

हमारे पास परमिट है तभी तो ऑटो चलाते हैं। मनमानी नहीं करते हैं। बच्चों की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखा जाता है।

- सुरेंद्र सिंह, ऑटो ड्राइवर

स्कूल मैनेजमेंट बसों की व्यवस्था नहीं कर रहा है। इसके पीछे क्या रीजन है नहीं मालूम। लेकिन बिजी लाइफ होने के कारण बच्चों को स्कूल भेजने के लिए ऑटो का सहारा लेना मजबूरी है।

सामोल, पैरेंट

ऑटो में बच्चे सेफ नहीं है। यह सभी पैरेंट्स जानते हैं, लेकिन क्या करें मजबूरी है। बच्चों को घर तक पहुंचा देते हैं यह भी कम बड़ी बात नहीं है।

विजय पाठक, पैरेंट