द्भड्डद्वह्यद्धद्गस्त्रश्चह्वह्म : बोड़ाम थाना क्षेत्र का पगदा समेत कुछ और गांव। जिला मुख्यालय से महज 17 किमी की दूरी पर स्थित हैं ये गांव। इन गांवों की चार हजार की आबादी आज भी पीने के पानी के लिए प्रकृति पर निर्भर है। दशकों से ग्रामीण झरने का पानी पीने व भोजन पकाने के लिए इस्तेमाल कर रही है। झारखंड अलग राज्य बने डेढ़ दशक गुजर चुके हैं, पर किसी भी सरकार ने यहां शुद्ध पेयजल की व्यवस्था करने के लिए कोई पहल नहीं कर रही है। यहां लोगों के हर दिन की शुरूआत पानी के लिए संघर्ष करने से शुरु होती है। इन्हें अफसोस इस बात का है कि इनकी समस्या पर जिला प्रशासन के साथ स्थानीय विधायक से लेकर मंत्री तक ध्यान नहीं दे रहे हैं।

खारा है कुएं व चापाकल का पानी

इस गांव में कई कुएं और चापाकल तो हैं, लेकिन इसका पानी न तो पीने के लायक है और न ही भोजन पकाने के। कुएं और चापाकल का पानी बिलकुल खारा है। इस पानी का गांव वाले सिर्फ कपड़ा धोने में इस्तेमाल करते हैं। इस पानी को जो भी पीता है, बीमार पड़ जाता है। ऐसे में यहां के लोगों के लिए झरने का पानी ही एकमात्र सहारा बना हुआ है। शुद्ध पेयजल के लिए वे सरकार से कई दशकों से आस तो लगाए हैं, पर अभी तक निराशा ही हाथ लगी है।

हमारे लिए मिनरल वाटर है झरने का पानी

आखिर क्यों झरने का पानी पी रहे हैं, यह पूछे जाने पर ग्रामीणों ने बताया कि उनके पूर्वज ने जब इस पानी को पीकर जिंदगी गुजार दी, तो हम भी उन्हीं की राह पर चल रहे हैं। गांव में शुद्ध पेयजल की व्यवस्था के लिए किसी भी सरकार ने किसी तरह की पहल नहीं की। कुआं और चापाकल का पानी इतना खारा है कि पीने तो क्या खाना बनाने के लायक नहीं है। सिर्फ इस पानी का इस्तेमाल कपड़ा धोने में करते है। पीने व भोजन के लिए झरने का पानी लाते हैं। ऐसे में यह पानी हमारे लिए किसी मिनरल वाटर से कम नहीं है।