किशन की शहादत से मायूस है पूरा शहर

बीएसएफ 119 बटालियन के कांस्टेबल थे किशन

छ्वन्रूस्॥श्वष्ठक्कक्त्र : जब तक फौज में न था, तब तक मैं अपने घर का था। लेकिन बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्स(बीएसएफ)को ज्वाइन करने के बाद मैं पूरे देश का लाल बन गया हूं। यह बातें किशन ने बीएसएफ ज्वाइन करने के समय अपने घरवालों से कही थी। किशन की ज्वाइनिंग के ठीक 24 दिन बाद उसके बड़े भाई की शादी थी, उस समय किशन की ट्रेनिंग बीएसएफ हेडक्वार्टर मेरू(हजारीबाग)में चल रही थी। लेकिन किशन ने ट्रेनिंग में छुट्टी लेना ठीक नहीं समझा। शादी के खास मौके पर उसने आने से मना कर दिया। किशन का कहना था कि शादी की रिकॉर्डिग तो मैं सीडी में भी देख लूंगा लेकिन ट्रेनिंग के जो पार्ट छूट जाएंगे उसकी भरपाई नहीं हो पाएगी। उसने कहा था कि मिड्डम ब्रेक में वह 15 दिनों की छुट्टी पर घर आएगा। वह आया भी। मिड्डम ब्रेक में, ट्रेनिंग के बाद और तीसरा दफा वह इस साल के रामनवमी में आया था। लेकिन जमशेदपुर का लाल किशन कुमार दुबे अब शहीद हो गया है। किशन सिर्फ अपने घर का नहीं, सिर्फ जमशेदपुर का नहीं पूरे देश का लाल है। पूरे देश को उसकी शहादत पर गर्व है।

सीआइएसएफ और बीएसएफ के लिए हुआ था सेलेक्शन

साल 2013में किशन को नौकरी का ऑफर दो-दो पैरा मिलिट्री फोर्स की ओर से मिला था। लेकिन किशन ने बीएसएफ को गले लगाया। किशन बचपन से ही बीएसएफ में जाना चाहता था। लेकिन पहली ज्वाइनिंग लेटर उसे सीआइएसएफ से आया। ठीक दो दिन के बाद बीएसएफ से ज्वाइनिंग लेटर आ गया। हालांकि किशन के घरवाले सीआइएसएफ में भेजना चाहते थे, लेकिन किशन की इच्छा बॉर्डर पर रहकर देश की सेवा करने की थी। इसलिए उसने घर के सभी लोगों को राजी किया।

तिरंगे में लिपटकर घर आने की थी ख्वाहिश

किशन का भाई जयंशकर का कहना है कि भइया हमेशा कहते थे कि मैं गुमनाम मौत नहीं मरना चाहता। मेरी ख्वाहिश है कि बॉर्डर पर सरहद की रक्षा करते समय शहीद हो जाऊं। शहादत को गले लगाने की उनकी दिली तमन्ना था। वह अक्सर कहते थे कि मैं गुमनाम मौत नहीं मरना चाहता।

संघर्षमय जीवन रहा है किशन का

किशन ने साल 2006 में इंद्रा ज्योति पब्लिक हाई स्कूल से मैट्रिक फ‌र्स्ट डिवीजन से पास किया। साल 2008 में उसने इंटर(आ‌र्ट्स)किया। इसके बाद पढ़ाई छोड़ दी। किशन जब 8वीं क्लास में था तभी से वह मेहनत मजदूरी किया करता था। टिस्को में ठेका मजदूर, कैटरर से लेकर कदमा मेले में दुकान तक लगाया करता था। लेकिन पैसा कमाने के साथ साथ किशन फौज में जाने की तैयारी भी किया करता था। बागबेड़ा स्थित रेलवे मैदान में रोजाना सुबह-सुबह रनिंग की प्रैक्टिस भी करता था।

दौड़ में कई बार फेल, 2013 में मिली सफलता

किशन का सलेक्शन साल 2013 में अंतिम रूप से दो पैरा मिलिट्र्ी फोर्सेज के लिए हुआ। लेकिन बतौर कांस्टेलब उसने बीएसएफ में ज्वानिंग की। फौज में नौकरी की आस में उसे कई बार मायूसी हाथ लगी। लेकिन किशन ने हार नहीं मानी और अंतिम रूप से 2013 में नौकरी पा ली।

7 जुलाई को था बर्थडे

किशन का जन्म 7 जुलाई 1991 को हुआ था। सात जुलाई को घर के सभी लोगों ने उसे जन्मदिन की बधाई भी दी थी। किशन ने उस दिन कहा था कि यहां बहुत खतरा है। पड़ोसी मुल्क से हमेशा फायरिंग होती रहती है। ज्यादा बात नहीं कर पाउंगा। लेकिन चिंता की कोई बात नहीं है। घर आने पर ज्यादा बात करूंगा। किशन ने अंतिम बार 8 जुलाई को अपनी भाभी से की थी।

राखी में बोला था घर आऊंगा

किशन ने राखी में घर आने का वादा किया था। किशन ने बहन लक्ष्मी से कई वायदे किए थे। राखी में उसे स्पेशल सरप्राइज भी देना था। शायद भाभी के रूप में। लेकिन वह पूरा नहीं हो पाया। बहन कहती है कि भइया ने वादा नहीं तोड़ा बल्कि वादे के पहले ही वह घर आ गया।

शादी की चल रही थी बात

किशन की शादी की बात चल रही थी। घर वाले शादी की जल्दी में थे। लेकिन किशन अभी शादी नहीं करना चाहता था। मां जगमाया देवी के काफी मनाने के बाद किशन ने शादी के हामी भरी थी। इसी साल राखी में उसका छेका होना था। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था।

दो माह पहले हुई थी जम्मू में पोस्टिंग

किशन की जम्मू के बारामूला में पोस्टिंग दो माह पहले हुई थी। इसके पहले वह पश्चिम बंगाल के बॉर्डर पर तैनात थे। साल 2013 में उन्होंने बीएसएफ में बतौर कांस्टेबल के रूप में ज्वाइन किया था। इसके बाद एक महीने की ट्रेनिंग उन्होंने मेरू हजारीबाग हेडक्वार्टर में ली। यहां पर ट्रेनिंग के बाद किशन को इंदौर में बीएसएफ ट्रेनिंग सेटंर में भेज दिया गया।

पहली पोस्टिंग बंगाल बॉर्डर पर

इंदौर में पास आउट होने के बाद पहली पोस्टिंग बंगाल बॉर्डर में हुआ। इसके बाद जम्मू के बारामूला में किशन की तैनाती हुई। तीन माह पूर्व ही उसकी पोस्टिंग जम्मू-कश्मीर के बारामूला बॉर्डर पर हुई थी। जम्मू कश्मीर जाने के पहले किशन घर आया था।

जम्मू में पोस्टिंग के पहले आया था घर

किशन बारामूला में कमान संभालने के पहले घर आए थे। बांग्ला देश के बॉर्डर स्थित बीएसएफ हेडक्वार्टर से उनका कमान बारामूला के लिए कटा था। कमान लेकर वह घर आए थे। करीब 15 दिन घर में बिताने के बाद वह जम्मू में योगदान दिया था।