-नहीं थे टिकट के पैसे, घर पहुंचने में लगे नौ महीने

-बुंडू के मंगल सिंह मुंडा की है यह कहानी

-तमिलनाडु की कंपनी में काम किया तीन साल, नहीं मिली सैलरी

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JAMSHEDPUR: मंगल सिंह मुंडा (भ्0 वर्ष), नाम और कद काठी तो आम इंसानों की तरह ही है, लेकिन मजबूरी में ही सही इनका एक 'कारनामा' इन्हें दूसरों से अगल करता है। मंगल ने नौ महीने में तमिलनाडु से अपने घर करीब ख्000 किलोमीटर की दूरी पैदल ही नापी। रांची से ब्भ् किलोमीटर दूर बुंडू के पास चुतरू गांव के रहने वाले मंगल की कहानी जानने के लिए चलते हैं थोड़ा प्लैश बैक में।

फूटी कौड़ी भी नहीं दी

खेती-बारी और मजदूरी कर अपना घर चलाने वाले मंगल को अच्छी सैलरी और बेहतर भविष्य का झांसा देकर रांची की एक प्लेसमेंट एजेंसी ने करीब चार साल पहले ख्0क्क् में कंपनी में काम के लिए तमिलनाडू भेजा। चार बच्चों का बाप मंगल और उसके परिवार वाले खुश थे कि अब उनके दिन बहुरेंगे। उन्हें क्या पता था कि मुसीबत उनका इंतजार कर रही है। कंपनी में काम के घंटे निश्चित नहीं थे। मंगल ने बताया कि दिन, महीने और फिर साल गुजर गए, लेकिन उसे सैलरी नहीं मिली। बस पेट भरने के लिए रूखा-सूखा खाना मिलता था। उसे समझ में आ गया कि वह बंधुआ मजदूर बन गया है। मंगल ने कहा कि उसने कई बार भागने की कोशिश भी की, लेकिन सफल नहीं हुआ। तीन साल काम करने के बावजूद उसे सैलरी के रूप में फूटी कौड़ी भी नहीं मिली। इतने दिनों में उसने कंपनी का कबाड़ आदि बेचकर ख्000 रुपए जमा किए।

लेकिन दगा दे गई किस्मत

आखिर वह दिन आ ही गया, जिसका मंगल को इंतजार था। एक रात वह वहां से भाग खड़ा हुआ और रेलवे स्टेशन पहुंचा। वह खुश था कि अब वह अपनों से मिल पाएगा, लेकिन किस्मत ने साथ नहीं दिया। बदमाशों ने उसके सारे रुपए छिन लिए। मंगल ने बताया कि वह वापस उस दुनिया में लौटना नहीं चाहता था। हाथ में पैसे नहीं थे, जिससे कि वह ट्रेन का टिकट कटा पता। अपनों से मिलने की खुशी में वह सड़क मार्ग से ही घर के लिए चल दिया। रास्ते में कबाड़ चुनता और उससे जमा पैसों से पेट भरता। कोई उसे भिखारी समझ कर खाना वगैर दे देता था। जहां रात होती वहीं सो जाता। मंगल के मुताबिक तमिलनाडू से पैदल अपने घर पहुंचने में नौ महीने लगे। घरवाले भी उम्मीद छोड़ चुके थे कि अब वह वापस आएगा। एक दिन अचानक मंगल को दरवाजे पर देखकर भौचक्के रह गए।

हमलोगों को लग रहा था कि अब मंगल शायद ही घर लौटेगा। पहले वह मेरे घर में ही मजदूरी करता था। इसके बाद तमिलनाडू चला गया। चार साल बाद सितंबर में ही वापस आया है।

राणा सिंह, व्यवसायी, बुंडू

हमने मंगल के वापस लौटने की उम्मीद छोड़ दी थी। उसकी सकुशल घर वापसी के लिए मंदिरों में मन्नत मांगी। भगवान ने हमारी सुन ली। चार साल बाद वह घर वापस लौट गया है यही हमारे लिए काफी है।

एतवारी, दीदी

पापा घर वापस आ गए हैं। चार साल बाद उन्हें देख कर बहुत खुशी हो रही है। अब मैं इन्हें काम के लिए बाहर जाने नहीं दूंगी। यहीं मेहनत-मजदूरी करेंगे। पैसे नहीं मिले कोई बात नहीं, मुझे तो बस मेरे पापा चाहिए।

चाम्मी, बेटी