नहीं हैं फायर सेफ्टी अरेंजमेंट्स
सिटी में सैकड़ों अपार्टमेंट्स ऐसे हैं, जिनमें फायर सेफ्टी का बेहतर अरेंजमेंट नहीं है। हालांकि कई जगहों पर व्यवस्था तो है, लेकिन वह भी बेहतर नहीं है। यही कारण है कि अपार्टमेंट्स में आग लगने के बाद उसे कंट्रोल करने में प्रॉब्लम होती है। फायर फाइटिंग के अरेंजमेंट्स व बेहतर फायर एग्जिट न होने के कारण प्रॉब्लम भी होती है, लेकिन बिल्डर्स द्वारा इस ओर ध्यान नहीं दिया जाता है।

कहीं है भी तो आधी अधूरी
मानगो-डिमना रोड के मधुसूदन कॉम्प्लेक्स कैम्पस स्थित कीर्तिवास भवन में फायर सेफ्टी के अरेंजमेंट्स किए गए हैं। यहां हर फ्लोर में फायर फाइटिंग पाइप कनेक्शन व फायर इस्टिंग्यूशर का अरेंजमेंट किया गया है। हालांकि इस कॉम्पलेक्स की दूसरी बिल्डिंग्स में अरेंजमेंट कुछ खास नहीं
दिखता। इस अपार्टमेंट के मेन गेट के पास ही फायर फाइटिंग के दौरान यूज होने वाली बाल्टियां तो रखी हैं, लेकिन वह पूरी तरह खाली हैं।

हालात नहीं हैं बेहतर
अगर हम साकची की बात करें, तो यहां भी फायर सेफ्टी के बेहतर अरेंजमेंट्स नहीं हैं। साकची स्थित गंगा-जमुना अपार्टमेंट व गौरौंगो टावर में भी बेहतर फायर फाइटिंग की व्यवस्था नहीं है। यहां फायर उपकरण तो कहीं नहीं दिखे, जिससे जरूरत पडऩे पर पानी की बौछार की जा सके, इसकी भी व्यवस्था नहीं है। यही हाल बिष्टुपुर के भी कुछ अर्पाटमेंट्स का भी है। बिष्टुपुर स्थित तलवार बिल्डिंग में भी फायर फाइटिंग के बेहतर अरेंजमेंट्स देखने को नहीं मिले। हालांकि, यहां एक फायर फाइटिंग उकरण जरूर देखने को मिला।

नहीं दिया जाता ध्यान
फायर फाइटिंग उपकरणों की समय-समय पर जांच की जानी चाहिए, लेकिन आम तौर पर यह प्रैक्टिस में नहीं है। रूल्स के मुताबिक एक साल में फायर एक्सटिंग्यूशर की जांच कर पायर डिपार्टमेंट के पास दोबारा री-फिलिंग के लिए जाना होता है, लेकिन ऐसा नहीं होता है। फायर डिपार्टमेंट से मिली जानकारी के मुताबिक अपार्टमेंट्स में एक बार जो उपकरण लग जाता है, दोबारा उसपर ध्यान नहीं दिया जाता और वह उसी हालत में पड़ा रहता है। आग लगने पर ये कुछ काम के नहीं होते हैं।


उपकरणों की नहीं होती जांच
डिमना रोड में ही वाटिका ग्रीन सिटी भी सिचुएटेड है। यहां फायर फाइटिंग के लिए अलग से प्रॉपर वाटर कनेक्शन पाइप नहीं है। इसके अलावा इस कैम्पस में जितने भी अपार्टमेंट्स हैं सभी में फायर फाइटिंग उपकरण भी नहीं है। जिन बिल्डिंग्स में हैं, उनकी भी लंबे समय से रिफिलिंग नहीं करायी गई है। किसी तरह के हादसे के वक्त यहां अफरा-तफरी का माहौल क्रिएट हो सकता है।


रूल्स के मुताबिक फायर एक्सटिंग्यूशर की एक साल में री-फिलिंग करानी है। अगर ऐसा नहीं हो रहा है तो यह गलत है। यह बात भी सही है कि अपार्टमेंट्स में इस पर ध्यान नहीं दिया जाता है। हालांकि, गड़बड़ी मिलने पर इस तरह के मामले में कार्रवाई की जाती है।
-महानंद सिंह, स्टेट फायर सेफ्टी ऑफिसर

Report by :goutam.ojha@inext.co.in