-मरने की बाद भी दूसरों को जिंदगी देने की ख्वाहिश

JAMSHEDPUR : अपने लिए तो सभी जीते हैं पर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो मरने की बाद भी दूसरों को जिंदगी देने की ख्वाहिश रखते हैं। गोलमुरी स्थित गाढ़ाबासा निवासी लोमन सिंह साहु और पत्नी सत्या बाई उन्हीं लोगों में शामिल हैं। टाटा स्टील के रिटायर्ड कर्मचारी लोमन सिंह साहु बुधवार को अपनी पत्नी के साथ अपना शरीर दान करने के लिए महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल पहुंचे। उन्होंने ऑर्गन डोनेशन की प्रक्रिया को जानने के लिए हॉस्पिटल में घंटों समय बिताया।

सत्संग से मिली अंगदान की प्रेरणा

लोमन सिंह टाटा स्टील के रिटायर्ड कर्मचारी है। दंपति परिवार बीते कई वर्षो से राधा स्वामी सत्संग से जुड़े हुए है। लोमन सिंह ने कहा कि सत्संग के माध्यम से ही उन्हें शरीर दान करने की प्रेरणा मिली है। उन्होंने कहा कि मौत के बाद शरीर मिट्टी में मिल जाता है, जबकि इससे करीब आठ लोगों की जान बचायी जा सकती है। यानी पति, पत्नी दोनों मिलकर करीब क्ब् लोगों को नई जिंदगी दे सकते हैं। लोमन सिंह की एक बेटी और दो बेटे हैं।

जरूरी है पहल

ऑर्गन ट्रांसप्लांट के इंतजार में देश में हर साल हजारों लोग अपनी जान गंवा देते हैं। देश में हर साल ख्.क् लाख किडनी ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है पर सिर्फ फ् से ब् हजार किडनी ट्रांसप्लांट ही होते हैं। बात हार्ट ट्रांसप्लांट की करें तो देश में हर साल ब् से भ् हजार हार्ट ट्रांसप्लांट की जरूरत पड़ती है पर अब तक देश में सिर्फ क्00 हार्ट ट्रांसप्लांट ही हुए हैं। अगर लोग अंग दान करें तो हजारों जिंदगियां बचाई जा सकती हैं। लोमन सिंह ने कहा कि वह दूसरे लोगों से भी अंग दान करने की अपील करेंगे। ताकि अधिक से अधिक लोगों की जान बचायी जा सके।

एमजीएम में सिर्फ आई डोनेशन की सुविधा

एमजीएम हॉस्पिटल में सिर्फ आई डोनेशन की सुविधा है, जबकि अंगदान के लिए कोलकाता, दिल्ली या फिर देश के दूसरे राज्यों में जाना पड़ेगा। हालांकि इसके लिए फॉर्म की व्यवस्था है। अंगदान के लिए एक फॉर्म भरना होगा। दो विटनेस भी चाहिए होंगे, जिनमें एक करीबी रिश्तेदार होना चाहिए। इसके बाद डोनर कार्ड बनता है।