पैसेंजर्स तो थे पर
दोपहर लगभग 1 बजे और शाम के लगभग 5 बजे। टाटानगर रेलवे स्टेशन पर डिफरेंट ट्रेंस से आने-जाने वाले पैसेंजर्स की काफी भीड़ थी। कोई अपनी ट्रेन पकडऩे के लिए प्लेटफॉर्म पर एंटर कर रहा था तो काई ट्रेन से उतरकर जल्दी घर पहुंचने की जल्दी में। आपने कई बार स्टेशन और उसके आस-पास लिखा देखा होगा कि अपने सामान की सुरक्षा खुद करें। लेकिन अगर आप टाटानगर रेलवे स्टेशन पर हैं तो आपको अपने सामान के साथ ही खुद की सुरक्षा भी खुद करनी होगी क्योंकि इसकी जिम्मेवारी किसी और की नहीं। आई नेक्स्ट की टीम काफी देर तक टाटानगर रेलवे स्टेशन पर रही लेकिन वहां जीआरपी और आरपीएफ के कांस्टेबल नहीं दिखे।

मेटल डिटेक्टर तो खराब ही रहता है
प्लेटफॉर्म पर जब चाहे चले जाएं। अपने साथ जो ले जाना चाहें लेकर चले जाएं। दूसरे सिटीज से आने वाले पैसेंजर्स के बैग में कुछ भी हो किसी को काई फर्क नहीं पड़ता। स्टेशन पर पैसेंजर्स की सेफ्टी को ध्यान में रखकर प्लेटफॉर्म के एंट्री प्वॉइंट पर मेटल डिटेक्टर लगाया गया था। पर टाटानगर रेलवे स्टेशन पर लगे ये मेटल डिटेक्टर अक्सर खराब ही रहते हैं। प्लेटफॉर्म नंबर वन पर स्थित पार्सल घर, आरएमएस या प्लेटफॉर्म के बाहर टिकट बुकिंग काउंटर्स। कहीं भी पुलिस नहीं दिखती। सीधी बात यह है कि टाटानगर रेलवे स्टेशन पर जितना आसान पहुंचना है उतना ही वहां से निकल जाना।

न ट्रेन में और न ही किसी स्टेशन पर सेफ्टी की व्यवस्था
हमने पैसेंजर्स की सेफ्टी और रेलवे डिपार्टमेंट के दावे के बीच डिफरेंस जानने के लिए टाटानगर से कांड्रा तक टे्रवल किया। इस दौरान टाटानगर से आदित्यपुर, गम्हरिया, बिरराजपुर और कांड्रा तक हम पहुंचे। टाटानगर-बरकाकाना पैसेंजर से कांड्रा  गए और हम वापस आए लालमाटी एक्सप्रेस से। कांड्रा तक जाने और आने में लगे 2 घंटे में हमने कई पैसेंजर्स से बात की। कोई भी ऐसा नहीं था जो रेलवे पर खफा न हो। लालमाटी एक्सप्रेस से पुरूलिया से घाटशिला जा रहे वाले पप्पू चौधरी ने बताया कि पूरे सफर के दौरान उन्हें बॉगी और किसी स्टेशन पर न तो जीआरपी और न ही आरपीएफ का एक कांस्टेबल दिखा। टाटानगर पैसेंजर से ट्रेवल करने वाले नित्य गोपाल कुमार ने तो साफ कहा कि जीआरपी और आरपीएफ वाले सिर्फ वसूली करते समय ही नजर आते हैं उसके बाद नहीं। उनका कहना था कि यहां ट्रेन से ट्रेवल करते समय सेफ्टी तो राम भरोसे ही रहती है।

पैसेंजर ट्रेन में कभी जाते भी हैं तो हाथ में सिर्फ डंडा होता है
टाटानगर रेलवे स्टेशन के जीआरपी इंचार्ज रामचंद्र राम का कहना था कि पैसेंजर ट्रेन में स्कॉट प्रोवाइड नहीं किया जाता। कोई पैसेंजर ट्रेन रात में हो तो उसमें कुछ कांस्टेबल को भेज दिया जाता है लेकिन उनके पास सिर्फ डंडे होते हैं। जरा सोचिए, नक्सली अपने साथ रॉकेट लांचर, एके 47, इंसास, एके 56 और दूसरे सॉफिस्टेकेटड वेपन्स लेकर आते हैं वैसे में ये डंडे वाले कांस्टेबल क्या टिकने वाले। इससे तो साफ है कि पैेसेंजर ट्रेंस में ट्रेवल करने वाले लोगों को रेलवे इंसान की गिनती में नहीं रखते। जिन कुछएक ट्रेंस में जीआरपी और आरपीएफ और आरपीएसएफ द्वारा स्कॉट प्रोवाइड कराया जाता है उनमें जाने वाले पुलिस मैन के पास इंसास राइफल, कार्बाइन और एआरएम जैसे वेपंस होते हैं। ऑफिसर के पास रिवाल्वर होता है।

किसकी कितनी क्षमता
वेपन्स की कैपेसिटी की बात की जाए तो आरपीएफ और जीआरपी के पास अवेलेवल वेपन्स का अलग-अलग रेंज और फाइरिंग कैपेसिटी है। इनमें एके 47 में 30 बुलेट्स वाली मैगजीन होती है और इसका रेंज लगभग 300 मीटर होता है। इंसास में 20 बुलेट्स वाली मैगजीन लगा होता है जिसका रेंज भी लगभग 300 मीटर होता है। कार्बाइन में 30 बुलेट्स वाली मैगजीन होती है और इसका रेंज 50 मीटर तक होता है। .303 में 10 बुलेट्स वाली मैगजीन होती है और इसका इफैक्टिव रेंज लगभग 300 मीटर होता है।

इतना पता है फिर भी कुछ नहीं करते
लास्ट इयर 14 मई को नक्सलियों द्वारा मनोहरपुर स्टेशन के पास टाटा-बिलासपुर पैसेंजर को काफी देर तक रोक रखा था और उसपर पोस्टर चिपकाए थे। इसके बाद 18 मई को स्टेट पुलिस हेड क्वार्टर ने 111 ईनामी माओवादियों की लिस्ट जारी की और माना कि इनमें से 81 झारखंड में एक्टिव हैं। हालांकि इनमें से कई पकड़े जा चुके हैं लेकिन अभी भी काफी संख्या में इनामी नक्सली स्टेट के डिफरेंट एरियाज में एक्टिव हैं। इन सबके बावजूद रेलवे स्टेशन और पैसेंजर ट्रेंस में सिक्योरिटी को लेकर पुलिस एक्टिव नहीं दिख रही।

लगता है डर
ट्रेन्स में सिक्यूरिटी की इस स्थिति से पैसेंजर ही नहीं बल्कि रेलवे स्टाफ भी डरते हैं। लालमाटी एक्सप्रेस में सफर के दौरान ट्रेन में मौजूद टीटीई आई खान और ए के सरकार ने अपनी चिंता हमारे साथ शेयर की । ए के सरकार ने बताया कि ट्रेन में सुरक्षा बलों की मौजूदगी न होने पर रेल में मौजूद रेलवे के अन्य स्टाफ को भी दिक्कतें होती हैं। उन्होंने बताया कि अगर ट्रेन में चेकिंग के दौरान किसी गड़बड़ी की सूरत में उनके पास कोई चारा नहीं रहता। आई खान ने भी ट्रेन्स में सिक्योरिटी की जरुरत बताते हुए कहा कि ट्रेन में कई तरह के लोग सफर करते हैं। ऐसे में सुरक्षा की पर्याप्त व्यवस्था न होना चिंता की बात है।

Report by: amit.choudhary@inext.co.in, abhijit.pandey@inext.co.in