JAMSHEDPUR: एक बार फिर वन विभाग के दावे फेल हुए। दलमा में सेंदरा पर्व मना। शिकार भी हुआ और वन विभाग के कर्मी सड़क पर घूमते रहे और शिकारियों ने जंगली जानवरों का शिकार किया। इस बार सेंदरा में पिछले साल के मुकाबले बहुत कम ही शिकारी आए। पिछले साल तक जिन शिकारियों की भीड़ से दलमा की तलहटी, यानी नेशनल हाइवे-फ्फ् से सटे फदलोगोड़ा स्थित गिपितिज टांडी (ठहराव स्थल) आटा पड़ा होता था, वहां इस बार गिनती के शिकारी ही दिखे। फदलोगोड़ा में दोलमा राजा (पारंपरिक राजा) राकेश हेम्ब्रम, माझी परगना महाल के जुगसलाई तोरोप परगना दसमत हांसदा, तालसा माझी बाबा दुर्गा मुर्मू व आदिवासी छात्र एकता के जसाई मार्डी दिन भर मोर्चा संभाले रहे। गिपितिज टांडी में पहले के मुकाबले सबकुछ बेहद व्यवस्थिति था। तीन-तीन टेंट लगाए गए थे। कुर्सियां मंगवाई गई थी, लेकिन बावजूद इसके शिकारियों की संख्या पिछले वर्षों के मुकाबले काफी कम रही। दोलमा राजा राकेश हेम्ब्रम इसके पीछे भीषण गर्मी को कारण बता रहे हैं। सोमवार को जमशेदपुर का तापमान ब्ख् डिग्री के आसपास रहा। गर्म हवा भी चली, लेकिन इतना तापमान तो हर साल होता है। फिर भी शिकारी आते थे, इस बार नहीं आए।

दोनों गुट आए साथ-साथ

सेंदरा को लेकर पिछले वर्ष दो गुट अलग-अलग हो गए थे। एक गुट जहां राकेश हेम्ब्रम के नेतृत्व में सेंदरा की पूजा करता था तो दूसरा फकीर सोरेन के नेतृत्व में। पूजा तो इस बार भी अलग-अलग ही हुई, लेकिन शिकारियों की जुटान एक ही जगह (फदलोगोड़ा) में हुई। आसनबनी फुटबॉल मैदान में जुटने वाले शिकारी भी फदलोगोड़ा ही पहुंचे।

शिकारियों को भगाया

शिकारियों का दल वैसे तो फदलोगोड़ा में ही जुटता है, लेकिन जंगल के अलग-अलग इलाकों से उतरने के कारण कुछ शिकारी पातिपानी व हलुदबनी की ओर भी जुटते हैं। सोमवार को भी शिकारियों का दल पातिपानी में रुका था। वन विभाग के अधिकारियों की पेट्रोलिंग गाड़ी वहां पहुंची तो सबको गांव चले जाने की हिदायत देकर वहां से भगा दिया गया।

जंगल से लौटे शिकारी

जंगल में सेंदरा करने के बाद दलमा से वापस नीचे उतरे और सीधे वापस चल दिए। अधिकतर शिकारी इस बार अपनी-अपनी मोटरसाइकिल पर दलमा पहुंचे थे। ये शिकारी दलमा में सेंदरा करने गए और लौट कर पारंपरिक रिवाज के मुताबिक गिपितिज टांडी जाने के बजाय सीधे लौट गए। इस कारण भी गिपितिज टांडी में शिकारियों की कम संख्या दिखी।