जमशेदपुर (ब्यूरो): सिटी में सैकड़ों स्कूल खुल गए हैं। हर गली-मोहल्ले, कॉलोनी में एक प्राइवेट स्कूल चल रहा है। प्ले स्कूल की भी भरमार है। इन स्कूलों में बच्चों को पिक एंड ड्रॉप करने के लिए वैन ऑटो सहित अन्य वाहन चल रहे हैं। कुछ बड़े स्कूलों में बस की भी व्यवस्था है, लेकिन वह नाकाफी है। हालांकि कई स्कूलों में ऑटो के जरिए ही बच्चों को स्कूल और स्कूल से घर ले जाया जाता है। इस कारण बच्चों को काफी परेशानी होती है, लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। आज के समय में अंग्रेजी माध्यम के निजी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने का क्रेज है। पेरेंट्स स्कूल को लाखों रुपए फीस और डोनेशन के तौर पर तो देते हैं, लेकिन बच्चों की सेफ्टी पर किसी का भी फोकस नहीं होता। वैन या ऑटो किराए पर लेने के बाद वे अपना कर्तव्य पूरा समझते हैं वहीं जिला प्रशासन और स्कूल प्रबंधन को इससे कोई सरोकार नहीं होता। यही कारण है कि इन सबके बीच सबसे ज्यादा परेशानी छोटे-छोटे बच्चों को ही हो रही है।

बिना परमिट के चल रहे मैक्सिमम ऑटो

नियम कहता है कि स्कूली बच्चों को पिक एंड ड्रॉप करने के लिए ट्रांसपोर्ट डिपार्टमेंट से वाहन का रजिस्ट्रेशन कराना जरूरी है। लेकिन सिटी में सारे नियमों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। सिटी में बगैर परमिट वाले ऑटो स्कूली बच्चों को भेड़-बकरियों की तरह ढो रहे हैं। खास बात यह है कि जितने भी ऑटो सिटी में चल रहे हैं या बच्चों को स्कूल ले जा रहे हैं, इनमें से किसी के पास भी वैध परमिट नहीं है।

एक्स्ट्रा सीट लगाकर बैठाए जाते हैं बच्चे

इतना ही नहीं इन ऑटो या वैन में क्षमता से ज्यादा बच्चे बैठाए जा रहे हैं। कई बार तो स्कूली वाहन चालकों में आपस में झड़प भी हो जाती है, लेकिन इस ओर ध्यान देने वाला कोई है नहीं। इतना ही नहीं ऑटो हो या वैन या फिर दूसरे स्कूली वाहन, सभी में एक्स्ट्रा सीट लगा दिया गया है, ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चों को बैठाया जा सके।

ड्राइवर नियमों का नहीं करते पालन

शहर में फर्राटा भरने वाले अधिकतर ऑटो और वैन चालक नियमों का पालन नहीं करते। कई बार तो उनके नशे में वाहन चलाने की भी शिकायत मिलती है। कोई ड्रेस कोड न होने के कारण कई ड्राइवर हाफ पैंट पहनकर ही आ जाते हैं। उनके पास लाइसेंस है या नहीं, इसकी भी जांच नहीं की जाती।

यह है नियम

- वाहन का आरटीओ में रजिस्टर्ड होना जरूरी

- वर्दी में होने चाहिए ड्राइवर और कंडक्टर।

- वाहन के आगे व पीछे स्कूल का नाम और मोबाइल नंबर होना चाहिए।

- वाहन में जीपीएस, सीसीटीवी, फस्र्ट एड बॉक्स आदि होने चाहिए।

- अग्निशमन यंत्र, अलार्म घड़ी और सायरन लगा होना चाहिए।

- विंडो पर कम से कम चार स्टील के रॉड लगे हों, जिनके बीच की दूरी पांच सेमी से अधिक न हो।

वह शिक्षक ही हैं, जो बच्चों पर नजर रखते हैं। शिक्षक सभी हितधारकों यानी माता-पिता, प्रधानाध्यापक, चिकित्सा कर्मचारी आदि के बीच एक सामान्य कड़ी है। शिक्षक उन्हें जानवरों को संभालने, कचरा फेंकने, बीमारों के पास जाने, खेलने, छींकने, खांसने, शौचालय और मूत्रालय का उपयोग करने के बाद भी हाथ धोने के लिए प्रोत्साहित करता है। ऐसे में सेफ्टी को लेकर भी शिक्षक की भूमिका बढ़ जाती है।

गीतिका प्रसाद, बागबेड़ा

मेरे ख्याल से स्कूल प्रशासन या स्कूल के साथ ही अभिभावक और जिला प्रशासन को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। स्कूल हर चीज की फीस लेता है तो बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी भी लेनी चाहिए। प्रशासन को भी सक्रिय होना होगा, ताकि वाहन चालकों की मनमानी पर अंकुश लग सके।

बबीता ठाकुर, कदमा

स्कूली बच्चों की सेफ्टी की बात करें तो, इसके लिए पूरी जिम्मेदारी स्कूल प्रबंध की होती है, क्योंकि परिवार अपने बच्चों को पूरे विश्वास के साथ स्कूल भेजते हैं। इसलिए जरूरत है कि बच्चों की सुरक्षा के दृष्टिकोण के अनुसार सारी व्यवस्था स्कूल के कैंपस में होनी चाहिए, साथ ही साथ बच्चों के लिए सावधानी भी बरतनी चाहिए, ताकि बच्चे सुरक्षित रह सकें।

चंदन जायसवाल, जुगसलाई

स्कूली बच्चों की सेफ्टी के लिए स्कूल प्रबंधन, पुलिस प्रशासन, प्राइवेट ऑटो-वैन के चालक तीनों पूर्ण रूप से जिम्मेवार है। स्कूली बच्चे को ऑटो और वैन में क्षमता से अधिक बैठाने में चालक पहला जिम्मेवार, स्कूल प्रबंधन की जानकारी में रहते हुए अनजान बनना दूसरा जिम्मेवार, खुलेआम सडक़ पर चलने के बाद कुछ भी करवाई नहीं करने पर तीसरा पुलिस प्रशासन जिम्मेवार है। अब जनता को सडक़ से लेकर सदन तक उतरने, आंदोलन, प्रदर्शन करने की जरूरत है। तभी सुधार हो सकेगा।

सुनील गुप्ता, बागबेड़ा