-सिंहभूम होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज के ग‌र्ल्स हॉस्टल में सैटरडे की रात लगभग 12 बजे पहुंचा था कोई

-ग‌र्ल्स द्वारा कॉल करने के बाद रात के लगभग 12:30 बजे रिजाइन कर चुके प्रिंसिपल कुलवंत सिंह जेंट्स पुलिस के साथ पहुंचे ग‌र्ल्स हॉस्टल

द्भड्डद्वह्यद्धद्गस्त्रश्चह्वह्म@द्बठ्ठद्ग3ह्ल लास्ट सैटरडे को रात में साकची स्थित सिंहभूम होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज के ग‌र्ल्स हॉस्टल के फ‌र्स्ट फ्लोर के रुम नंबर वन में चार लड़कियां थीं। जयश्री और संगीता उसी रुम की थी जबकि सोमा और देव्य स्मिता थर्ड फ्लोर से उस रुम में आई थीं। रात के लगभग 11 बजकर 55 मिनट पर सोमा के नंबर पर थर्ड फ्लोर से उसकी फ्रेंड का कॉल आया कि कोई उसका दरवाजा खटखटा रहा है। यह सुनकर ये चारों ही डर गई। कुछ ही मिनट के बाद फ‌र्स्ट फ्लोर स्थित इनके रुम के दरवाजे को भी किसी ने नॉक किया। ये ग‌र्ल्स सहम गई और डर के मारे एक ही बेड पर सभी जा बैठीं। डरी-सहमी इन ग‌र्ल्स में से जयश्री ने हॉस्टल के इंचार्ज डॉ एस चौबे और कुछ महीनों पहले रिजाईन कर चुके कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ कुलवंत सिंह को कॉल किया और लगभग 12:30 बजे वे पुलिस को साथ लेकर हॉस्टल पहुंचे। और हां, हद तो यह है कि ग‌र्ल्स हॉस्टल में रात के साढ़े बारह बजे जेंट्स पुलिस वाले पहुंचे एक भी महिला कांस्टेबल साथ नहीं थी।

50 ग‌र्ल्स रहती हैं, न गार्ड और न ही वार्डन

सिंहभूम होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज के ग‌र्ल्स हॉस्टल में 50 गर्ल स्टूडेंट्स रहती हैं। प्रत्येक लड़की को हर महीने लॉजिंग एंड फूडिंग के लिए 32 से 35 सौ रुपए (सीनियर से 32 सौ और जूनियर से 35 सौ) लिए जाते हैं। हॉस्टल में पिछले कई महीने से नाइट गार्ड नहीं। हॉस्टल की कोई वार्डन भी नहीं। दिन में वासुदेव नाम के एक गार्ड की ड्यूटी रहती है जो खुद 72 साल को हो चुका है और उसकी भी ड्यूटी शाम 4 बजे तक ही रहती है। स्थिति यह है कि शाम के बाद हॉस्टल से कौन आ रहा है और कौन एंटर कर रहा है इसका ध्यान रखने वाला कोई नहीं। हॉस्टल की देखरेख की जिम्मेवारी कॉलेज के ही क्लर्क रामचंद्र प्रधान की थी पर 6 महीने पहले कॉलेज के ही काम से रायपुर से लौटते समय वे नशाखुरानी का शिकार हो गए और उनकी मौत हो गई। कॉलेज ने रामचंद्र प्रधान की मौत से ऐसे पल्ला झाड़ा जैसे वे कॉलेज के स्टाफ भी नहीं थे।

लाइब्रेरी से हॉस्टल इंटरकनेक्टेड क्यों?

एक सवाल यह भी उठ रहा कि आखिर कॉलेज की लाइब्रेरी से ग‌र्ल्स हॉस्टल इंटरकनेक्टेड क्यों है। लाइब्रेरी में ब्वॉज स्टूडेंट, कॉलेज के फैकल्टी मेंबर्स और दूसरे स्टाफ कभी भी एंटर कर सकते हैं। ऐसे में लाइब्रेरी के अंदर से ग‌र्ल्स हॉस्टल में एंटर करने के लिए बना दरवाजा भी सवाल उठा रहा। ग‌र्ल्स का कहना है कि बिना सिक्योरिटी के उस हॉस्टल में रहने में उन्हें काफी डर लगता है।

ब्वॉयज हॉस्टल की स्थिति बदतर

काशीडीह स्थित सिंहभूम होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज के ब्वॉयज हॉस्टल की स्थिति बहुत खराब है। हम थर्सडे को ब्वॉयज हॉस्टल में पहुंचे और देखा कि किचेन की स्थिति इतनी खराब थी कि उसमें बना खाना खाने के बाद बीमार पड़ना जैसे तय हो। बाथरुम में इतनी गंदगी फैली थी कि लड़के टूटी छत के नीचे बाहर में नहाने को मजबूर हैं। हॉस्टल के रूम में कहीं छत तो कहीं दीवारों से पानी टपक रहा था। हॉस्टल के स्टूडेंट धनंजय का कहना था कि बारिश होने पर उसे रूम से पानी बहाना पड़ता है।

क्या पता था कि पैसे भी देंगे और धरना भी देना होगा

धन्नजय पाण्डेय गिरिडीह का रहने वाला है। उसके पिता गांव में दूसरे के घरों में पूजा-पाठ कराके किसी तरह बच्चों को पढ़ा रहे। धन्नजय का कहना था कि बहुत मुश्किल से उसके पिता पढ़ाई का पैसा इकट्ठा कर पाते हैं। ऐसे में पिछले चार महीने से कॉलेज में पढ़ाई नहीं होने की वजह से वह कॅरियर को लेकर काफी टेंशन में और इस बात की जानकारी मिलने के बाद उसके पिता भी काफी टेंशन में हैं।

कई स्टेट के स्टूडेंट्स धरना पर बैठे हैं

सिंहभूम होमियोपैथिक मेडिकल कॉलेज में टीचर्स के स्ट्राइक पर रहने की वजह से पिछले 4 महीने से पढ़ाई पूरी तरह ठप है। इसके अलावा अपनी दूसरी डिमांड्स को लेकर कॉलेज के स्टूडेंट्स डीसी ऑफिस के सामने पिछले 4 दिन से धरना पर बैठे हैं जिसे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद का सपोर्ट मिला हुआ है। अपने वाजिब हक के लिए धरना पर बैठने वाले स्टूडेंट्स झारखंड के अलावा बिहार, यूपी, उत्तराखंड, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के हैं। पिछले चार दिनों से इन स्टूडेंट्स को एबीवीपी के जिन मेंबर्स और पदाधिकारियों का सपोर्ट मिला हुआ है उनमें याज्ञवल्क्य शुक्ला, सोनू ठाकुर, प्रभात शंकर तिवारी, सुखदेव सिंह, सतनाम सिंह, रितेश और गौरव आदि शामिल हैं। थर्सडे को विश्व हिंदू परिषद का भी इन्हें सपोर्ट मिला।

गार्जियंस भी पहुंचे कॉलेज

पिछले 4 महीने से पढ़ाई नहीं होने और बच्चों के कॅरियर के साथ हो रहे खिलवाड़ को देखते हुए थर्सडे को स्टूडेंट्स के पैरेंट्स और गार्जियंस भी कॉलेज पहुंचे। उन्होंने कॉलेज के कुछ टीचर्स के साथ मीटिंग की और प्रजेंट सिचुएशन को जानने की कोशिश की। लंबे समय से पढ़ाई नहीं होने की वजह से ज्यादातर पैरेंट्स परेशान दिख रहे थे।