-प्रेशर हॉर्न और साइलेंसर के धुएं से बढ़ रही है शहरवासियों की परेशानी

-शहर में परमिसेबल लिमिट से ज्यादा है नॉयज पॉल्यूशन

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छ्वन्रूस्॥श्वष्ठक्कक्त्र: एक तो ट्रैफिक जाम और ऊपर से गाडि़यों के हॉर्न का शोर, बर्दाश्त नहीं होता भाई। यह कहना है शहर के बुजुर्ग व्यक्ति घनश्याम का। घनश्याम जी मानगो स्थित एक मंदिर में पुजारी हैं। मंदिर मानगो बस स्टैंड से एमजीएम रोड की तरफ है। इसलिए घनश्याम हमेशा सड़क के किनारे स्थित मंदिर में ही रहते हैं। लिहाजा प्रेशर हॉर्न और ट्रैफिक में लो स्पीड का सामना उन्हें करना पड़ता है। यह परेशानी सिर्फ घनश्याम की नहीं है। उनके जैसे कई लोग ट्रैफिक की लचर व्यवस्था से खासे परेशान हैं। खासकर हाईवे और बस स्टैंड जैसे व्यस्तम इलाकों में रहने वाले लोग। शहर के स्कूल और हॉस्पिटल्स में भी प्रेशर हॉर्न से मरीजों को खासी परेशानी होती है। रीजनल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की ओर से मिले आंकड़ों के मुताबिक शहर के सभी एरिया में तय मानक से ज्यादा नॉयज है।

जाम में सबसे ज्यादा बजता है हॉर्न

ट्रैफिक पुलिस राघव पांडेय की मानें तो लोग जाम में सबसे ज्यादा हॉर्न बजाते हैं। जल्दीबाजी में सभी सिर्फ आगे निकलने की होड़ रहती है। किसी को रूल्स की परवाह नहीं होती। लोगों को यह समझ में नहीं आता है कि उनके हॉर्न बजाने से नॉयज पॉल्यूशन का लेवल बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि लोगों को अवेयर कर नॉयल पॉल्यूशन को कुछ हद तक कम किया जा सकता है।

50 से 65 डेसीबल तक है परमिसेबल

डॉक्टरों के मुताबिक एक व्यक्ति में सामान्य तौर पर शोर बर्दाश्त करने की क्षमता 50 डेसीबल से 65 डेसीबल तक होती है, लेकिन शहर के अधिकांश हिस्सों में तय मानक से ज्यादा शोर है। इंडस्ट्रियल, रेसिडेंशियल और सेंसेटिव जोन के लिए अलग-अलग शोर के मान तय किए गए हैं। अस्पताल, स्कूल को सेंसेटिव जोन के अंतर्गत रखा गया है। यहां नॉयज का परमिसेबल लिमिट 50 डेसीबल तक है। रेसिडेंशियल इलाकों में नॉयज का मैक्सिमम लिमिट 65 डेसीबल तय किया गया है, लेकिन शहर के किसी भी एरिया में तय मानक से अधिक नॉयज पॉल्यूशन है।

हॉस्पिटल के पास तय मानक से ज्यादा शोर

रीजनल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अधिकारियों का मानता है कि शहर के लगभग हर हिस्से में तय मानक से करीब दस से पन्द्रह प्रतिशत शोर अधिक है। चिकित्सकों की मानें तो लगातार क्षमता से अधिक शोर सहन करने के बाद व्यक्ति स्थायी बहरेपन का शिकार हो जाता है। हद तो यह है कि कोल्हान प्रमंडल के सबसे बड़े सरकारी हॉस्पिटल एमजीएम में मरीज नॉयज पॉल्यूशन की परेशानी झेल रहे हैं। एमजीएम और टाटा मेन हॉस्पिटल (टीएमएच) जैसे साइलेंट जोन में भी मरीजों को नॉयज पॉल्यूशन की वजह से परेशानी हो रही है।

एमजीएम हॉस्पिटल के पास लगता है जाम

एमजीएम हॉस्पिटल के पास ट्रैफिक कंट्रोल की प्रॉपर व्यवस्था नहीं है। एमजीएम हॉस्पिटल चौराहा पर रोजाना जाम लगता है। जाम में हॉर्न की चिल्लम पों मरीजों को खासा परेशान करती है।

बढ़ रहा है बहरापन

सिविल सर्जन डॉ एसके झा के अनुसार शहर में नॉयज पॉल्यूशन परमिसेबल लिमिट से ज्यादा होने से लोगों में बहरेपन की शिकायत बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि ज्यादा नॉयज पॉल्यूशन से ब्रेन सबसे ज्यादा डिस्टर्ब होता है। हॉस्पिटल्स के आसपास ज्यादा शोर होने से मरीजों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो सकती है। स्कूल के आसपास शोर ज्यादा होने से बच्चों में कंसंट्रेशन पावर कम हो सकता है।

यहां सबसे ज्यादा जाम

मानगो पुल, जुबिली पार्क चौक, साकची गोलचक्कर, बसंत सिनेमा के पास, रंग गेट से प्रदीप मिश्रा चौक, रेलवे ओवरब्रिज, सुनसुनिया चौक, रेलवे क्रॉसिंग जुगसलाई, बिष्टुपुर रीगल मैदान चौक, गोलमुरी जैसे व्यस्ततम इलाकों में जाम की परेशानी सबसे ज्यादा है।

खतरनाक लेबल पर है नॉयज पॉल्यूशन

एरिया पाया गया लिमिट

आदित्यपुर 69.3 65

टीएमएच 66.2 50

एमजीएम हॉस्पिटल 70 50

बिष्टुपुर सिग्नल 74.8 65

साकची गोलचक्कर 74.4 65

सिविल कोर्ट 63.7 50

गोलमुरी चौक 76.2 65

मानगो बस स्टैंड 79.9 65

(ये आंकड़े क्षेत्रीय पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने 5 जून 2015 व‌र्ल्ड एन्वॉयरमेंट डे के मौके पर कलेक्ट किए। नॉयज पॉल्यूशन डेसीबल में हैं)

व‌र्ल्ड एन्वॉयरमेंट डे के मौके पर शहर के विभिन्न एरियाज में नॉयज पॉल्यूशन रिकॉर्ड किया गया। इंडस्ट्रियल, रेसिडेंसियल और सेंसेटिव जोन में नॉयज पॉल्यूशन की जांच की गई। सभी जगहों पर तय मान से ज्यादा पॉल्यूशन पाया गया है। नॉयज पॉल्यूशन कंट्रोल के लिए आम लोगों की भागीदारी आवश्यक है। बिना सहयोग के नॉयज पॉल्यूशन को कंट्रोल कर पाना पॉसिबल नहीं है।

-आरएन चौधरी, रीजनल ऑफिसर, रीजनल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड

प्रेशर हॉर्न के लिए परिवहन विभाग के संयुक्त प्रयास से अभियान चलाया जाता है। हमलोगों ने कई बार कार्रवाई की है। शहर में ट्रैफिक कंट्रोल के लिए पुलिस पूरी तरह से मुस्तैद है।

विवेकानंद ठाकुर, ट्रैफिक डीएसपी

क्या कहते हैं सिटी के लोग

शहर में वाहनों के प्रेशर हॉर्न, लाउडस्पीकर व अन्य प्रकार का कान फोड़ देने वाला शोर यदि इसी गति से बढ़ता गया, तो आने वाले समय में शहर बहरा भी हो सकता है। लोगों को सुनने में काफी दिक्कतों को सामना करना पड़ेगा।

हॉस्पिटल और स्कूल जैसे एरियाज में भी जब नॉयज पॉल्यूशन है तो दूसरी जगहों पर क्या आशा की जा सकती है। ट्रैफिक लोड और प्रेशर हॉर्न से मरीजों सबसे ज्यादा परेशान होते हैं। इसके लिए कुछ प्रयास तो करना ही चाहिए।

विजय सिंह, बारीडीह

वाहनों के शोर ने लोगों का चैन छिना लिया है। ये शोर कई तरह की बीमारियां छोड़ जाता है। हॉर्न बजाने से पहले एक बार तो सोचना ही चाहिए की कहां हॉर्न बजा रहे हैं। हॉर्न भी कम शोर वाला हो तो बेहतर होगा।

बॉबी, केबल टाऊन

हमें ऐसा काम करना चाहिए जिससे कि दूसरे को भी परेशानी न हो और अपना काम भी हो जाय। लिमिट से ज्यादा शोर से तो सभी को परेशानी है। ट्रैफिक जाम को कंट्रोल कर भी शोर को कम किया जा सकता है।

बिकास, परसुडीह

ट्रक, बस और दूसरे वाहनों की हॉर्न से सबसे ज्यादा परेशान हूं। क्या करें चारों तरफ सिर्फ शोर ही शोर है। जब जाम लगता है तो ऐसा महसूस होता है कि मानो सिर फटा जा रहा है।

घनश्याम, मानगो