सालों से खराब पड़े यंत्र की चर्च के युवाओं ने की मरम्मत

2005 में ही युवाओं ने उठाया अपनी धरोहर बचाने का बीड़ा

RANCHI: एक बार फिर से सेंट पॉल कैथेड्रल चर्च की दीवारें वाद्ययंतों की धुन पर गूंज उठी हैं। करीब डेढ़ सौ साल पुराने वाद्ययंत्र की धुन यहां गुंजायमान है। रांची के इस चर्च में यह वाद्ययंत्र दशकों से खराब पड़ा था। आखिरकार यहीं के युवकों ने अपनी धरोहर को बचाने में सफलता पाई। इन यंत्रों की खुद से मरम्मत कर इसे बजने लायक बनाया और यह यंत्र अब चर्च के लिए कुछ खास बन गया है।

1860 में आया था रानी पाइप ऑरगन

इसे वाद्ययंत्रों की रानी कहा जाता है। बोलचाल की भाषा में इसे रानी पाइप ऑरगन के नाम से पुकारते हैं। इससे प्राकृतिक आवाज निकलती है। इसका उपयोग चर्च की आराधना विधि में किया जाता है। दो हजार साल पहले इस तरह के वाद्य यंत्रों का निर्माण हुआ था। रांची में जीईएल चर्च मिशनरियों ने भी 1860 के आसपास इस वाद्य यंत्र को मेन रोड स्थित चर्च में लाकर रखा था। लेकिन कुछ समय बाद उन यंत्रों को दूसरी जगह भेज दिया गया। अभी रांची में यह वाद्ययंत्र सिर्फ बहू बाजार स्थित सेंट पॉल कैथेड्रल चर्च में है। डेढ़ सौ साल से भी अधिक पुराना हो चुका यह यंत्र खराब होकर यूं ही पड़ा हुआ था। यहीं के युवकों ने साल 2005 में इसकी मरम्मत का बीड़ा उठाया। लोचन खलखो के नेतृत्व में आशीष समद, सहाय धान, आनंद पूर्ति, अजित समद व मनीष कच्छप ने जब इसे ठीक किया, तो देश-विदेश में भी उनकी पहचान बनी।

क्यों खास है यह वाद्ययंत्र

इस ऑरगन में लगी पाइप बांसुरी व पानी की पाइप की तरह दिखती है। इसमें 56-56 की संख्या में की-बोर्ड अटैच किए हुए हैं। इस यंत्र से 11 तरह की धुनें निकलती हैं। साथ ही 27 तरीके के बेस टोन भी निकाले जा सकते हैं। इसे हाथ और पैर दोनों से बजाया जाता है। इससे निकलने वाली आवाज भी इतनी सुरीली है कि माइक अटैच करने की जरूरत नहीं पड़ती। इसके बजते ही चर्च का कोना-कोना गूंज उठता है। यह पूरा का पूरा वाद्ययंत्र एक कमरे के आकार का है, जिसमें 20 प्रतिशत लकड़ी और 80 प्रतिशत शीशा, जिंक और टिन की पाइप लगी हुई है। पहले इसमें हवा भरी जाती थी, जिसमें दो लोगों की जरूरत पड़ती थी। लेकिन 1960 में बिजली आने के बाद इसमें मोटर से हवा भरा जाने लगा।

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इंटरनेट पर सीखा वाद्ययंत्र को बनाना

आरगन मरम्मत करने वाली टीम के मनीष कच्छप ने बताया कि उन्होंने इंटरनेट पर पुराने वाद्ययंत्रों के बारे में स्टडी किया है। इसी क्रम में जर्मनी के चर्च संगीतज्ञ हाटमूट ग्रोस से संपर्क हुआ। हाटमूट ने न सिर्फ इस वाद्ययंत्र की मरम्मत का तरीका बताया, बल्कि उसे ठीक करने के लिए कई सामान भी उपलब्ध कराए। मनीष ने जर्मनी जाकर साल 2006-09 तक पाइप ऑरगन फर्म में एक ट्रेनी के रूप में भी काम किया। इसी दौरान इस यंत्र को ज्यादा करीब से जाना और रांची लौटकर इस यंत्र को पूरी तरह से ठीक किया। इस यंत्र को ठीक करते ही अब कोलकाता और पुणे जैसे बड़े शहरों से भी इन युवकों की टीम की डिमांड है, जहां जाकर ये लोग वाद्ययंत्र को ठीक कर रहे हैं।

वर्जन

करीब दो हजार साल पहले यूनान में ऐसे ही वाद्ययंत्रों को बजाया जाता था। रांची में इसे 1860 में लाया गया था, लेकिन इसकी मरम्मत में काफी खर्च था। बाद में यहीं के युवकों की टीम ने पहल करते हुए इसे ठीक किया और आज चर्च में यह आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।

-अरुण बरवा, पेरिस प्रीस्ट, सीएनआई चर्च, रांची