रांची: कोरोना पेंडेमिक का असर झारखंड के शराब कारोबारियों पर भी दिखने लगा है। आलम ये है कि स्टेट में 1500 शराब कारोबारियों में से 300 ने अपना लाइसेंस सरेंडर कर दिया है। खासकर छोटे कारोबारी अब अपनी शराब दुकान का लाइसेंस रिन्यूवल कराने के बजाय दुकान बंद करना ही सही समझ रहे हैं। कारोबारियों ने बताया कि एक तो कोरोना में शराब की बिक्री काफी कम हो गई है। वहीं, सरकार द्वारा लगातार हर माह कर की वसूली करना सबसे बड़ी समस्या हो गई है। वहीं, कोरोना सेस तो लगाया गया, लेकिन हाल ही में इसे हटा भी लिया गया। नतीजन, शराब का कारोबार करना अब काफी महंगा साबित होने लगा है।

सेस हटाने से कस्टमर्स को फायदा

कोरोना सेस हटाने से ग्राहकों को महंगी मिल रही शराब थोड़ी सस्ती जरूर हुई है, लेकिन दुकानदारों को इससे कोई लाभ नहीं मिल पाया। कारोबारियों का कहना है कि सेस हटाने के बाद भी उनकी बिलिंग में कोई खास अंतर नहीं आया, जिससे उन्हें पूरी राहत नहीं मिल पाई।

ऑनलाइन बिक्री भी ध्वस्त

शराब व्यवसायियों ने बताया कि शराब ऑफलाइन के साथ-साथ ऑनलाइन बेचने का भी फरमान जारी किया गया था। लेकिन इसमें इतनी समस्या आयी कि इसे चला पाना मुश्किल हो गया। ऑनलाइन शराब बेचने काम का कई कंपनियों द्वारा किया जाता था, जो शराब तो ले जाते थे लेकिन समय पर पेमेंट नहीं होने से परेशानी होने लगी। इससे लाखों रुपये भी बाजार में उधार हो गए। कोविड काल में ऐसी समस्या से कारोबारियों की कमर टूट गई। शराब व्यवसायी संघ के अध्यक्ष सुबोध जायसवाल ने बताया कि सरकार ने जो कोरोना सेस लगाया उससे व्यवसायियों को कोई लाभ नहीं मिला। हटाने के बाद भी कोई राहत नहीं मिल सकी।

2300 करोड़ रेवेन्यू का लक्ष्य नहीं हुआ पूरा

उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग ने पिछले वर्ष 2500 करोड़ रुपये कर की वसूली का लक्ष्य रखा था। लेकिन कोरोना की वजह से कारोबारियों ने अपने हाथ खड़े कर दिये, जिसके बाद 2300 करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा गया, लेकिन इसके बावजूद राजस्व में करीब 40 परसेंट की कमी आई है।