रांची (ब्यूरो)। आदिवासी समाज की विशिष्ट पहचान को सम्मान देने की जरूरत है। आदिवासी भाषा, संस्कृति, जीवन शैली एवं मान्यताओं को संरक्षित करने की जरूरत है। आदिवासी समाज में प्रचलित ज्ञान एवं अनुभव परंपरा से वर्तमान सदी को लाभ लेने की जरूरत है। प्रकृति के संरक्षण का सूत्र आदिवासी जीवन में निहित है। भाषाओं को संरक्षित करके हम संस्कृतियों को संरक्षित कर सकते हैं। आज भी जैव विविधता का व्यापक भाग आदिवासी बहुल क्षेत्रों में स्थित है। ये बातें संतोष कॉलेज ऑफ टीचर्स ट्रेनिंग एंड एजुकेशन के पूर्व प्राचार्य डॉ बीएन सिंह ने कहीं। वह कॉलेज की बीएड एवं डीएलएड इकाई द्वारा विश्व आदिवासी दिवस पर लोक नृत्य व संगीत प्रतियोगिता कार्यक्रम को बतौर चीफ गेस्ट संबोधित कर रहे थे। स्वागत अभिभाषण में निदेशिका डॉ रश्मि ने कहा कि आदिवासी समाज की भाषा, संस्कृति व खानपान शैली को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। इससे मानव समाज प्राकृतिक जीवन के लिए प्रेरित होता है और आपसी समन्वय व समरसता के भाव को आत्मसात करता है।
नृत्य-संगीत की शानदार प्रस्तुती
मौके पर प्रतिभागियों ने मुंडारी, नागपुरी, संथाली, पंचपरनिया, कुरुख, सादरी, कुरमाली, खोरठा आदि भाषाओं पर आधारित सामूहिक नृत्य एवं एकल गायन की प्रस्तुति दी। सामूहिक नृत्य में प्रथम स्थान डीएलएड की प्रियंका एवं समूह को मुंडारी नृत्य के लिए दिया गया। एकल लोक गायन में प्रथम स्थान सुष्मिता टोपनो को प्राप्त हुआ। मौके पर आदिवासी समाज में शिक्षा की आवश्यकता पर एकांकी नाटक की प्रस्तुति दी गई एवं फैशन शो के माध्यम से झारखंड की संस्कृति को दर्शाया गया। कार्यक्रम में सभी व्याख्याता गण एवं प्रशिक्षु शिक्षक उपस्थित थे।