रांची (ब्यूरो) । बढती महंगाई में बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर ऐसे ही आफत आई हुई है। इस पर भी स्कूलों की मनमानी ने पैरेंट्स को परेशान कर रखा है। दो बच्चों को पढ़ाने के पीछे के अभिभावकों को मोटी रकम खर्च हो जा रही है। 25 से 30 हजार रुपए वेतन पाने वाले अभिभावकों के सामने बच्चों को पढ़ाना-लिखाना भी चुनौती बन गया है। बीते एक अप्रैल से नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत हो चुकी है। अभिभावक अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा दिलाने के लिए नामीगिरामी स्कूलों के चक्कर लगा रहे हैं।
लेकिन स्कूलों में प्रवेश के बाद बच्चों की कॉपी व किताबें खरीदने में अभिभावकों के पसीने छूट रहे हैं। कॉपियों व किताबों के दामों में हुई अप्रत्याशित वृद्धि से लोगों की जेब हल्की हो रही है। बीते साल की अपेक्षा इस साल स्टडी मैटेरियल में करीब 25 से 30 प्रतिशत तो किताबों पर 40 से 50 प्रतिशत की मूल्य वृद्धि हो गई हैै। इससे पैरेंट्स को परेशानियां उठानी पड़ रही है।
मेरे यहां से ही लेनी होगी कॉपी व किताबे
कई विद्यालयों की ओर से अभिभावकों को कॉपी व किताबों स्कूल से ही या स्कूल द्वारा बताए गए शॉप से खरीदने के लिए भी विवश किया जा रहा है। स्कूलों की इस मनमानी पर अंकुश लगाने के लिए शिक्षा विभाग के साथ ही प्रशासनिक अधिकारी भी मौन धारण किए हैं। हर माता-पिता का सपना होता है कि वे अपने बच्चों को बेहतर से बेहतर शिक्षा प्रदान करें, लेकिन स्कूलों की मनमानी पैरेंट्स अभिभावकों के सपने में भी पानी फेर रहे है। पहले प्राइवेट स्कूलों में एडमिशन के लिए उसका चक्कर काटना, फिर हजारों रुपए स्टडी मैटेरियल में खर्च करना अभिभावकों के लिए मुसीबत बन रहा है। लेकिन स्कूल मैनेजमेंट को इन सब से कोई लेना देना नहीं। उन्हें बस अपनी कमाई से मतलब है।
प्राइवेट पब्लिकेशन की किताबों के दाम छू रहे आसमान
प्राइवेट पब्लिकेशन की किताबों के दाम आसमान छू रहे हैं। कांवेंट स्कूलों के क्लास नर्सरी से एक का सेट लेने में लगभग तीन से चार हजार रुपए खर्च करने पड़ रहे है। क्लास तीन से पांच का सेट 5 हजार, क्लास चार से लेकर आठ का सेट के लिए छह हजार रुपए से अधिक खर्च करना पड़ रहा है। इसी प्रकार यदि बाजार में खुली दुकानों में बिक रही कॉपियों के दामों की तुलना करें तो बीते वर्ष 70 पेज की कॉपी 45 रुपए में मिल रही थी। इस वर्ष इसकी कीमत लगभग 55 से 60 रुपए है। 120 पेज की कॉपी की कीमत 65 से 70 रुपए से बढ़कर 85 रुपए तक पहुुंच गई है। इसी प्रकार 172 पेज की कॉपी व रजिस्टरों के दामों में भी इस वर्ष 25 से 30 प्रतिशत की वृद्धि देखने को मिल रही है।
पैकेज बना कर स्टडी मैटेरियल बेच रहा स्कूल प्रबंधन
स्थिति ऐसी है कि स्कूल से किताब, कॉपी और स्टडी मैटेरियल लेने का पैरेंट्स पर दवाब बनाया जा रहा है। एक निजी स्कूल में पढऩे वाले बच्चे के पिता ने बताया कि किताबें और कापियां स्कूल परिसर के अंदर से ही खरीदने का दबाव बनाया जा रहा है। स्कूल में पूरा एक पैकेज बनाकर बेचा जा रहा है। इसमें किताबें, कापियां और अन्य महंगे स्टेशनरी आइटम शामिल हैं। जिसकी जरुरत नहीं है वह भी पैकेज में शामिल है। ऐसे में किताब-कॉपी के अलावा फालतू खर्च भी हो रहा है।
कोरोना के बाद बढा खर्च का अनुपात
क्लास 1 से 12 के खर्चे

सर्विस कोरोना से पहले कोरोना के बाद
फीस 20000 200000
बुक और स्टेशनरी 5000 7000

यूनिफॉर्म 1000 1500
ट्रांपोर्टेशन 1500 2000
कुल 27500 -210500

स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना मुश्किल हो रहा है। फीस के अलावा कॉपी-किताबों में काफी खर्च हो रहा है। मैनेजमेंट स्कूल कैंपस से ही स्टडी मैटेरियल लेने का दवाब डालता है।

- नेहा सिंह

यह तो सच है कि इस महंगाई में बच्चों को पढ़ाना किसी जंग से कम नहीं। ऐसे में स्कूलों की मनमानी ने पैरेंट्स की कमर तोड कर रख दी है। इस पर गर्वमेंट को हस्तक्षेप करना चाहिए।
- संतोष कर्मकार


मेरी बेटी अभी टू क्लास में ही है। अभी उसके स्टडी मैटेरियल खरीदने में पांच हजार रुपए लग गए। बुक, कॉपी समेत कुछ स्टेशनरी आईटम भी था। अब शिक्षा सिर्फ शिक्षा न रहकर बिजनेस बन गया है।
- अभिषेक श्रीवास्तव


स्कूलों की मनमानी पर कोई कंट्रोल नहीं है। हर तरफ लूट मची है। मीडिल क्लास फैमिली को अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ाने के लिए सोचना पड़ रहा है।
- रंजीत कुमार