रांची (ब्यूरो)। आखिर हर महीने कहां से लाएंगे 70-80 हजार रुपए? जी हां, राजधानी रांची समेत राज्य भर में कैंसर के ऐसे लगभग 6000 मरीज हैं, जिन्हें मंथली टारगेटेड थेरेपी लेनी पड़ रही है, जिसमें हर महीने इन्हें लगभग 70 से 80 हजार रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। हालांकि कई ऐसे मरीज हैं जो सरकार की गंभीर बीमारी व आयुष्मान योजना का लाभ ले पाते हैं, लेकिन इनकी संख्या बहुत कम है। ज्यादातर ऐसे मरीज ही हैं जिन्हें इन योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है और उन्हें खुद से अपनी जिंदगी बचाने के लिए हर महीने 70 से 80 हजार रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर हर महीने इतने सारे पैसे मरीज या उनके परिजन लाएंगे कहां से? जाहिर है कई के समक्ष जान गंवाने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। बता दें कि झारखंड जैसे राच्य से हर साल 25 से 30 हजार कैंसर के नए केसेज सामने आ रहे हैं। वहीं, महंगी दवाइयां होने के बावजूद सरकार कैंसर के मरीजों के लिए कुछ खास नहीं कर पा रही है। वल्र्ड हेल्थ डे पर पढ़ें आज कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी पर विशेष खबर।
कीमो पर 25 हजार खर्च
राज्य भर में कैंसर के मरीज इलाज कराने के लिए सबसे अधिक रांची आते हैं। ओंकोलॉजी से जुड़े हुए एक डॉक्टर ने बताया कि कैंसर के मरीजों में सबसे अधिक कीमोथेरेपी वाले आते हैं। कैंसर के सभी मरीजों में 20 से 25 परसेंट मरीजों को टारगेटेड थेरेपी की ही जरूरत पड़ती है। राजधानी रांची में हर महीने कीमोथेरेपी लेने के लिए 2-20 हजार तक का खर्च आता है। अगर क्लीनिक पर लेते हैं तो मिनिमम 2 हजार खर्च आता है और शहर के बड़े कॉरपोरेट अस्पताल में अगर किमो लेते हैं तो हर महीने 25 से 30 हजार का खर्च आता है। यह उस पर भी डिपेंड करता है कि कैंसर की कौन-सी थेरेपी उनको दी जा रही है।
ओरल, सर्वाइकल व ब्रेस्ट कैंसर के ज्यादा मामले
झारखंड में सबसे अधिक ओरल, बच्चेदानी, ब्रेस्ट व फेफड़े के कैंसर के केसेज बढ़ रहे हैं। तंबाकू के सेवन से मुंह के कैंसर के मामलों में भी वृद्धि हो रही है। धूम्रपान से फेफड़े का कैंसर हो रहा है। झारखंड के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल रिम्स में इलाज के लिए कैंसर के हर दिन 70-80 मरीज आते हैं। उनमें 30-35 नए मरीज होते हैं। इसी से इसकी भयावहता का अनुमान लगाया जा सकता है। कैंसर पहले ज्यादातर 50 या इससे ज्यादा उम्र के लोगों में दिखता था। अब इसका कोई पैरामीटर नहीं रह गया है। अब तो बच्चों और युवाओं को भी इसने अपनी चपेट में लेना शुरू कर दिया है।
बच्चों में ल्यूकेमिया कैंसर
रांची के ओंकोलॉजिस्ट डॉ गुंजन कुमार सिंह का कहना है कि झारखंड में ओरल, सर्वाइकल और फेफड़े के कैंसर के ज्यादातर केसेज आ रहे हैं। महिलाओं में बच्चेदानी और ब्रेस्ट कैंसर भी अधिक मिल रहे हैं। दरअसल खैनी, गुटखा और सिगरेट जैसी चीजों के सेवन से मुंह और फेपड़े के कैंसर के खतरे बढ़ जाते हैं। महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर बढऩे की वजह वह हाइजिन को भी मानते हैं। कहते हैं कि महिलाएं वैक्सिनेशन और हाइजिन के प्रति जागरूक नहीं हैं। इस वजह से सर्वाइकल कैंसर के खतरे बढ़ जाते हैं। बच्चों में ल्यूकेमिया कैंसर के केसेज भी झारखंड में दिख रहे हैं।

कैंसर के नए मरीजों की संख्या हर दिन बढ़ रही है। कैंसर के इलाज में सबसे अधिक खर्च टारगेटेड थेरेपी लेने वाले मरीजों की होती है। यह सभी कैंसर के मरीजों में से 20 से 25 परसेंट मरीजों को दी जाती है। दवाइयां इसलिए महंगी हो रही है क्योंकि कुछ दवाइयों की मैन्युफैक्चरिंग भारत में नहीं हो रही है। हालांकि, सरकार ने गंभीर बीमारी योजना में टारगेटेड थेरेपी में ब्रेस्ट कैंसर सहित कैंसर की अन्य बीमारियों को भी जोड़ा है।
-डॉ गुंजन कुमार सिंह, ओंकोलॉजिस्ट, रांची

रिम्स में कैंसर के मरीजों का बेहतर इलाज किया जा रहा है। 2019 से यह डिपार्टमेंट शुरू किया गया है। यहां हर दिन 25 से 30 मरीजों को कीमो दी जाती है। 100 से अधिक मरीजों का ऑपरेशन होता है। इस अस्पताल में दूसरे बड़े अस्पतालों जितनी सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।
-डॉ रोहित कुमार झा, ओंकोलॉजी डिपार्टमेंट, रिम्स, रांची