रांची (ब्यूरो)। राजधानी रांची में सुरक्षा के नाम पर करीब 600 सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। लेकिन इन कैमरों का उपयोग जिस उद्देश्य के लिए लगाया गया था, वो पूरा नहीं हो पा रहा है। कैमरा लगे करीब तीन साल बीत चुके हैं। लेकिन सिर्फ ट्रैफिक वॉयलेशन करने वालों के घरों तक आनलाइन चालान भेजने के अलावा इसका और कोई इस्तेमाल नहीं हो सका है। यहां तक कि ऐसे केस की संख्या भी कम है जिसमें पुलिस इन सीसीटीवी कैमरे की मदद से अपराधियों तक पहुंची हो और गिरफ्तार कर सकी हो। कुछ दिन पहले ही रांची के मेन रोड में एक बड़ा हादसा हुआ, लेकिन पुलिस के पास एक फुटेज तक नहीं है। वहीं बीते सप्ताह लालपुर में छिनतई हुई इसका भी पुलिस के पास कोई वीडियो नहीं है। इसे लेकर इंटेलेक्चुअल वर्ग अब सोशल मीडिया पर सवाल उठाने लगा है। लोगों का कहना है जब पुलिस के पास किसी हादसे का फुटेज ही नहीं रहता फिर कैमरे लगाने के नाम पर करोड़ो रुपए क्यों खर्च किए गए।

कैमरा पर करोड़ों रुपए

सीसीटीवी कैमरा लगाने के नाम पर करोड़ों रुपए फूंक दिए गए। लेकिन अक्सर इन कैमरों में कुछ न कुछ खराबी रहती है। जिस कारण राजधानी रांची का सर्विलांस सिस्टम ज्यादातर समय फेल ही रहता है। आम लोगों की सुरक्षा और अपराधियों की धर-पकड़ के लिए राजधानी के करीब 200 लोकेशंस पर कैमरा इंस्टाल किया गया है। वहीं सिटी के कुछ इलाकों में हाईटेक कैमरे भी लगाए गए हैैं, लेकिन ये सिर्फ हाथी के दांत साबित हो रहे हैं। जानकारी के अनुसार, कुछ स्थानों पर कैमरे काम भी नहीं कर रहे हैैं। मेनटेनेंस के अभाव में पुलिस की तीसरी आंख कमजोर पड़ती जा रही है। 10 दिनों के अंदर राजधानी रांची में दो बड़ी घटनाओं ने पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

क्रिमिनल्स पर भी नजर नहीं

अपराधी शहर में टूरिस्ट की तरह इंटर करते हैैं और अपने मंसूबे को अंजाम देकर निकल जाते हैं। पुलिस सिर्फ अनुसंधान करती रह जाती है। बीते दिनों मेन रोड में हुए एक्सीडेंट के बाद अंजुमन प्लाजा के पास क्या कुछ हुआ, इसे कह पाने में भी पुलिस असमर्थ है। शिवांस के परिजनों का कहना है कि भीड़ ने पीट-पीट कर उसकी जान ले ली। जबकि पुलिस ऐसे किसी भी घटना से इनकार कर रही है। पुलिस के पास किसी तरह का कोई वीडियों नहीं है।

दूसरों के भरोसे प्रशासन

प्रशासन द्वारा लगाए गए कैमरे किसी काम के साबित नहीं हो रहे है। घटना होने पर पुलिस प्राइवेट कैमरों की तरफ ताकती नजर आती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण रांची के मेन रोड में ही बीते साल हुआ दंगा है। दंगा के फुटेज के लिए पुलिस प्राइवेट कैमरा यहां तक कि मीडिया और आम लोगों से फुटेज उपलब्ध कराने का आग्रह कर रही थी, जबकि सबसे ज्यादा अल्बर्ट एक्का चौक से राजेंद्र चौक तक सीसीटीवी कैमरा लगवाए गए हैं। फिर क्या वजह है कि पुलिस को खुद के लगाए कैमरे के फुटेज नहीं मिल पाते हैं। इसका जवाब किसी अधिकारी के पास भी नहीं है। पर्सनल घरों और दुकानों के कैमरे की फुटेज निकाल अपराधी को ढूंढती है। इसमें काफी समय भी बर्बाद होता है। तब तक अपराधी सिटी से बाहर निकल चुके होते हैं। कमल भूषण हत्याकांड में भी यही मामला देखा गया। फुटेज निकालने में पुलिस को तीन घंटे लगे। तबतक अपराधी पुलिस की पकड़ से बाहर निकल गए। मामले को सुलझाने में सात दिन का वक्त लगा। इस मामले के सुलझते ही जेवर कारोबारी की हत्या कर दी गई।

कुछ स्थानों पर टेक्निकल इश्यू के कारण कैमरा बंद हो सकता है। हालांकि, सभी का समय-समय पर मेनटेनेंस करवाया जाता है।

-दीपक कुमार, सीसीआर, रांची