RANCHI: लोक आस्था का महापर्व चार दिवसीय चैती छठ शुक्रवार को नहाय-खाय यानी कद्दू-भात अनुष्ठान के साथ शुरू हो रहा है, जो तीन अप्रैल को उदीयमान सूर्य के अ‌र्घ्य व व्रतियों के पारण के साथ संपन्न होगा। इससे पहले दूसरे दिन शनिवार एक अप्रैल खरना यानी सायंकाल में खीर भोजन, षष्ठी तिथि रविवार ख् अप्रैल को अस्ताचलगामी सूर्य को पहला अ‌र्घ्यदान एवं दूसरे दिन सप्तमी तिथि फ् अप्रैल को अरुणोदय काल में दूसरा अ‌र्घ्यदान किया जाएगा। सोमवार फ् अप्रैल को सूर्योदयोपरांत सप्तमी में पारण करना श्रेयस्कर रहेगा। इस बार अ‌र्घ्यदान में षष्ठी तिथि व रविवार के संयोग के साथ सौभाग्य योग, द्विपुष्कर योग व शोभन की उपस्थिति विशेष प्रभावकारी व उत्तम फलदायी रहेगी। भगवान सूर्यदेव की कृपा सभी भक्तों और व्रतियों पर बनी रहे।

क्या है छठ महापर्व

हमारे सनातन धर्म में सूर्यदेव को साक्षात देवता की संज्ञा हासिल है। सूर्यदेव में भगवान विष्णु की वेदत्रयी वैष्णवी शक्तियों के कारण सूर्यदेव ब्रह्मांड में सर्व शक्तिमान हैं। वैष्णवी शक्तियों की उपस्थिति से ही इन्हें सूर्य नारायण भी कहा जाता है। समस्त सृष्टि के पालनकर्ता भगवान सूर्य देव की शक्ति व क्षमता सर्वविदित है। सूर्यदेव की कृपा से भक्त को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि सूर्य की तिथि है। सूर्य देव की आराधना के क्रम में वर्ष में दो बार चैत्र शुक्ल पक्ष एवं कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को विशेष पूजा के रूप में व्रत-पूजन व अस्ताचलगामी सूर्य तथा सप्तमी तिथि को उदीयमान सूर्यदेव को विधिवत अ‌र्घ्यदान किया जाता है। इस पावन पर्व को सूर्यषष्ठी व्रत या छठ व्रत कहते हैं। आस्था व शुचिता का पर्व छठ चार दिनों का है।

क्या है अनुष्ठान का विधान

प्रथम दिन नहाय-खाय, दूसरे दिन खरना, खरना के उपरांत व्रत रखते हुए तीसरे दिन अस्ताचलगामी सूर्यदेव को पहला अ‌र्घ्य एवं पुन: अगले दिन अरुणोदय काल में दूसरा अ‌र्घ्य दान किया जाता है। सूर्यदेव की आराधना हर युग में अर्थात प्राचीन काल से ही होती आ रही है, जो पुराणों व धर्मशास्त्रों में वर्णित है। छठ व्रत के दौरान नदी या सरोवर में कमर तक जल में खड़े होकर ताम्र पात्र से सूर्यदेव को अ‌र्घ्यदान करना चाहिए। अ‌र्घ्यदान में जल, गाय का दूध, लाल चंदन, रोली, अक्षत, लाल या पीला पुष्प गुड़, फल, ईख, ऋतुफल, कंदमूल और विशेष प्रकार के पकवान का उपयोग किया जाता है। अ‌र्घ्य दान हेतु मंत्र:- एहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजोराशे जगत्पते। अनुकम्पय मां देव गृहाणाघ्र्य दिवाकर। भगवान सूर्य देव प्रसन्न होकर मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।