रांची(ब्यूरो)। लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ 17 नवंबर को नहाय खाय अनुष्ठान के साथ शुरू हो रहा है, जो 20 नवंबर को उदीयमान सूर्य को अघ्र्य और फिर पारण के साथ संपन्न हो जाएगा। लेकिन, अब छठ पूजा के दौरान नदी या तालाब जाने के बजाय लोग आर्टिफिशियल तालाब ज्यादा पसंद कर रहे हैं। मकान की छत पर या रेसिडेंशियल कैंपस में कृत्रिम तालाब, बड़ा टब का इस्तेमाल करके लोग अघ्र्य देना पसंद कर रहे हैं। बता दें कि छठ महापर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को नहाय-खाय के साथ शुरू होता है और सप्तमी को उगते सूर्य को अघ्र्य देने के बाद पारण के साथ संपन्न होता है। इस महापर्व के दौरान पवित्रता का खास का ख्याल रखा जाता है। छठ पूजा के गीत सिटी में गूंजने लगे हैं।
कोरोना काल से बदलाव
महापर्व में भगवान भास्कर को अघ्र्य को देने के लिए श्रद्धालु नदी-तालाब या जलाशय के घाट पर जाते हैं। लेकिन समय के साथ इसमें भी थोड़ा बदलाव आया है। घाट जाने के बजाय लोग घर पर ही कृत्रिम घाट बनाकर उसमें भगवान सूर्य को अघ्र्य अर्पित करते हंै। आपको बता दें कि छठ के तीसरे दिन लोग घाट पर जाकर सूर्य देव को अघ्र्य देते हैं, जिसे बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। लेकिन पिछले कोरोना काल से ही इसमें थोड़ा बदलाव आया है। लोग घाट जाने के बजाय घर पर ही इसकी व्यवस्था करने लगे हैं। घर की छत या आंगन में गोलाकार या चौड़ा कुंड जैसा बनाकर भी व्रती उसी में अघ्र्य देने देने लगे हैं।
मार्केट में बिक रहा टब
छठ महापर्व के दौरान अब लोग नदी-तालाब में जाने के बजाय घर पर ही कृत्रिम तालाब या प्लास्टिक के बाथ टब में अघ्र्य देना पसंद करते हैं। जिसे देखते हुए बाजारों में चार से लेकर 12 फीट तक के प्लास्टिक के टब भी उपलब्ध हैं। इसमें चाइनीज व इंडियन प्लास्टिक का टब दोनों अवेलेबल है। बाजार में 1000 रुपये से लेकर 4500 के रेंज में टब उपलब्ध है। दुकानदारों का कहना है कि पहले एक-दो आदमी ही टब की मांग करते थे, लेकिन कोरोना के बाद इसकी मांग बढ़ गई है।
क्यों आया बदलाव
शहर के छठ घाटों पर काफी भीड़ होती है। कई छठ घाट तो ऐसे हैं जहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ जुटती है। ऐसे में लोग भीड़-भाड़ से बचने के लिए घर पर ही कृत्रिम घाट बनाकर महापर्व संपन्न करते हैं। वहीं, सिटी के छठ घाट पर गंदगी का आलम रहता है। वहीं, नदी या तालाब घाट के आसपास बड़ी-बड़ी झाडिय़ां और कीड़े-मकोड़े भी रहते हैं। इससे भी लोगों को परेशानी होती है। इतना ही नहीं, इन दिनों लगभग सभी जलाशयों का पानी भी दूषित हो चुका है। इससे स्किन प्रॉब्लम का खतरा है। इससे बचने के लिए भी लोग नदी-तालाब जाना पसंद नहीं कर रहे हैं। इसके अलावा नदी-तालाब की गहराई भी एक बड़ी समस्या है। गहराई के कारण भी व्रती को परेशानी होती है।
क्या कहते हैं व्रती व उनके परिजन
नदी-तालाब में काफी भीड़ होती है। धक्का-मुक्का भी बहुत ज्यादा होती है। इससे बचने के लिए सोसायटी में ही कृत्रिम छठ घाट बनवाते हैं। आसपास के कई लोग यहां अघ्र्य देने आते हैं।
-राघवेंद्र सिंह लोहा

सिटी के नदी-तालाब गंदे हैं। पानी भी दूषित है। इससे स्किन प्रॉब्लम होने का खतरा बना रहता है। वहीं भीड़-भाड़ भी काफी ज्यादा होती है। इससे बचने के लिए प्लास्टिक का टब खरीद रहे हैं। इसी में अघ्र्य दिया जाएगा।
-सुमन देवी

तालाब का पानी गंदा और दूषित हो चुका है। उससे बदबू भी आती है। गहराई का भी पता नहीं चलता। जिस वजह से कृत्रिम घाट की व्यवस्था की हूं। इसी में पानी जमा करके शाम और सुबह में अघ्र्य दिया जाएगा।
-रीता देवी

क्या कहते हैं दुकानदार
कोरोना काल से घर पर ही घाट बनाने का टें्रड बढ़ा है। पहले बहुत कम लोग ऐसा करते थे। लेकिन अब ऐसा करने वालों की संख्या में इजाफा हुआ है। अघ्र्य देने के लिए स्पेशल छह फीट प्लास्टिक टब आया है। इसमें हवा भरने की जरूरत नहीं होती। सिर्फ पानी भरना होता है।
-कृष्णा कुमार, दुकानदार