रांची(ब्यूरो)। राजधानी रांची में चलने वाली सिटी बसों में यात्री बेबस नजर आते हैं। इंसानों को जानवरों की तरह ठूंसकर बसों में बिठाने का रिवाज खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। नगर निगम से गिनी-चुनी बस चलने का नतीजा है कि लोगों को न चाहते हुए भी मजबूरी में परेशानी झेलते हुए यात्रा करनी पड़ रही है। बस में सिर्फ महिला-पुरुष ही ट्रेवल नहीं करते, बल्कि स्कूल कॉलेज गोइंग स्टूडेंट्स और बुजुर्ग भी यात्रा करते हैं। बस में भीड़ होने के कारण सभी को परेशानी होती है। बस ड्राइवर कैपासिटी से ज्यादा पैसेंजर चढ़ा लेते हैं, जिन्हें सीट नहीं मिलने के कारण खड़े होकर ही जाना पड़ता है। बस ड्राइवर सभी पैसेंजर से दस रुपए भाड़ा वसूलता है। इसके बदले में कोई टिकट भी नहीं देता, जिसे लेकर यात्रियों में भी नाराजगी देखी जा रही है। सिटी बसों में क्षमता से अधिक यात्री बिठाने का फायदा चोर-उचक्के टाइप के लोग उठा रहे हैं। आए दिन बस में बैठी सवारियों के पर्स और मोबाइल फोन गायब हो रहे हैं।
करोड़ों की बस कबाड़
बड़े दुर्भाग्य की बात है कि राजधानी रांची में ढंग से पब्लिक ट्रांसपोर्ट आज तक शुरू नहीं हो सका है। इस वजह से सिटी के लोग ऑटो और निजी वाहनों पर निर्भर हो गए हैं। दस साल पहले शुरू हुए जवाहर लाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्यूवल मिशन के तहत राजधानी रांची सिटी के लोगों कोट्रेवल करने के लिए 70 बसें खरीदी गईं। लेकिन रांची की सड़कों पर 70 बसें एक साथ कभी नहीं चलीं। राजधानी का पॉपुलेशन लगातार बढ़ता गया, लेकिन सिटी की संख्या बढऩे की जगह घटती चली गई। जबकि इन दस सालों में नगर निगम ने बसों की खरीद, उनकी मरम्मत में करीब 18 करोड़ रुपए खर्च कर दिए। लेकिन लोगों को इसका कोई लाभ नहीं मिला। एक बार फिर से नगर निगम ने 240 सिटी बसें खरीदने का निर्णय लिया है, जबकि दूसरी ओर पहले से खरीदी गईं करोड़ो रुपए की बसें स्टोर में पड़ी-पड़ी बर्बाद हो गईं।
सिर्फ 9 बसें चल रहीं
रांची की जनसंख्या करीब 15 लाख के पार पहुंच चुकी है। ऐसे में जब पब्लिक ट्रांसपोर्ट की काफी ज्यादा जरूरत है। उस परिस्थति में विभाग अपंग बना बैठा है। कई बार बस बढ़ाने का निर्णय हुआ, लेकिन सभी फाइलों में ही बंद है। इन दिनों सिर्फ कचहरी से मेन रोड होते हुए राजेंद्र चौक तक ही बसें जा रही हैं। बाकी अन्य रूट पर कोई बस नहीं चल रही है। वहीं, पैसेंजर ऑटो पर ही निर्भर हैं।
2005 में मिली थी बसें
केंद्र सरकार की तरफ से सबसे पहले जवाहरलाल नेहरू पुनरुत्थान मिशन योजना के तहत साल 2005 में 51 सिटी बसें दी गई थीं। इनकी खरीद पर लगभग पांच करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। सिटी बसों को चलाने का जिम्मा नगर निगम का था। लेकिन नगर निगम के अधिकारियों की लापरवाही और खराब नीति के कारण कभी भी सभी बसें सड़कों पर नहीं उतर पाईं। 20 से 25 बसें ही सड़कों पर चल सकीं। बाकी बसों को अपर बाजार स्थित बकरी बाजार में रांची नगर निगम के स्टोर में खड़ा कर दिया गया। तब से ये बसें वहीं खड़ी हैं और खड़ी-खड़ी 31 कबाड़ हो चुकी हैं।

240 बसें चलाने का प्रस्ताव है। इसकी डीपीआर अंतिम चरण में है। अगले साल पीपीपी मोड पर इसे शुरू करने की योजना है।
-शशि रंजन, नगर आयुक्त, आरएमसी

क्या कहते हैं सिटी के लोग
सिटी बसों में यात्रा करना काफी कठिन कार्य है। लेकिन मजबूरी में करना पड़ता है। ऑटो में ज्यादा फेयर लग जाता है। बस में सीट नहीं मिलने से खड़े-खड़े यात्रा करनी पड़ती है।
-रमेश पांडे

बस कंडक्टर दस रुपए वसूल रहे हैं, जबकि भाड़ा पांच रुपए ही तय है। फिर भी ड्राइवर और कंडक्टर की मिलीभगत से ऐसा हो रहा है।
- सुधाकर

पैसा लेकर भी कोई टिकट नहीं दिया जाता है। सीट फुल होने के बाद भी ड्राइवर गाड़ी खड़ी रखता है। इस कारण बस में काफी भीड़ हो जाती है।
-नीलम देवी