रांची(ब्यूरो)। 3 करोड़ रुपए की लागत से कोकर स्थित डिस्टिलरी पार्क तालाब का निर्माण कराया गया। रांची नगर निगम ने इसे शहर के लोगों के घूमने-फिरने के लिए बनाया गया था, लेकिन इसका इस्तेमाल कभी नहीं किया गया। डिस्टिलरी पुल के पास स्वामी विवेकानंद स्मृति पार्क बनाया गया था। लेकिन, कुछ समय में ही यह पार्क बर्बाद हो गया। यह टूरिस्ट प्लेस की जगह शराब पीने का अड्डा बन गया। वहीं एक बार फिर पार्क में मिट्टी भरवा कर इसकी ऊंचाई बढ़ाई गई है। अब इस पार्क की जमीन पर नगर निगम ने सब्जी विक्रेताओं को शिफ्ट किया है।

घूमने लायक नहीं बचा पार्क

आम लोगों के पैसों को कैसे बर्बाद किया जाता है, विवेकानंद पार्क इसका जीता जागता उदाहरण है। सिर्फ आम लोगों के पैसे ही नहीं, बल्कि प्रकृति के साथ भी यहां खिलवाड़ किया गया है। जिस जगह पर पार्क बना है, वहां कभी नदी बहा करती थी। यही कारण है कि कुछ जगह पर पार्क की जमीन धंसने लगी है। कीचड़ बना रहता है। लोग तो यहां आना बंद कर दिए, लेकिन धीरे-धीरे इस जगह पर असामाजिक तत्वों का जमावड़ा लगने लगा है।

पार्क संचालन नहीं

बिना प्लानिंग के किए गए काम का ही नतीजा है कि पहले करोड़ो रुपए पानी में बहा दिए और अब लाखों रुपए मिट्टी भरवाने में खर्च किया जा रहा है। मालूम हो कि पार्क का निर्माण 2017 में कराया गया था। करीब दो साल तक किसी तरह पार्क का संचालन किया गया। इसके बाद बारिश में यहां की स्थिति खराब होने लगी। हर जगह जलजमाव की समस्या उत्पन्न होने लगी, जिस वजह से कोई कांट्रेक्टर इस पार्क के संचालन की जिम्मेवारी लेना नहीं चाह रहा।

पार्क नहीं आना चाहते लोग

डिस्टिलरी पार्क के पास ही करीब 5.17 करोड़ की लागत से वेजिटेबल मार्केट का निर्माण कराया गया है। यहां सब्जी विक्रेताओं के नाम पर मांस-मछली विक्रेताओं को भी शिफ्ट कर दिया गया। सब्जी विक्रेता आज भी सड़क पर ही हैं। अब उन्हें डिस्टिलरी पार्क में शिफ्ट करने की योजना नगर निगम द्वारा बनाई गई है। लालपुर कोकर रूट में दुकान लगाने वाले करीब 300 सब्जी विक्रेताओं को शिफ्ट नहीं किया जा सकता है। इनमें 198 दुकानदारों को पुल के पास बनाए गए विवेकानंद पार्क में बसाने की तैयारी है।

पार्क का रेस्तरां भी बंद

पार्क के अंदर एक खाने पीने का रेस्टोरेंट भी बनाया गया था, जो बंद हो चुका है। जब यह रेस्टोरेंट शुरू किया गया था उस समय भी दिन भर खाली रहता था। कुछ समय के लिए यह पार्क शुरू किया गया था उसी दौरान पार्क में दिन भर में 100 लोग भी नहीं आते थे, उनमें 50 से अधिक लोकल युवक होते थे जो पैसे देने से मना करते हैं। रेस्तरां के पास वे अड्डाबाजी करते थे, और नशा भी करते थे। उनके कारण ही बाकी लोग पार्क में आने से कतराते हैं। बताया गया कि कई बार इस बात को लेकर वे पार्क के कर्मियों से भी उलझ चुके हैं।

पार्क में नाली का पानी

पार्क की फेसिंग तार से की गई है जो कई जगह से टूटी हुई है। आसपास के घर में रहने वाले इसी फेंसिंग से होकर आना जाना करते हैं। पार्क के चारों ओर घर बने हैं, ऐसे में अगर आप परिवार के साथ वहां घूमने जाते हैं तो तमाम घरों की खिड़कियों से लोग आपको देख सकेंगे। इस कारण भी लोग वहां नहीं जाना चाहते हैं। पार्क के किनारे बने घरों से निकलने वाली नालियां पार्क में ही आ कर मिलती हैं। नालियों का पानी पार्क के तालाब के किनारे तक पहुंचती हैं। इनमें कीड़े तैरते हुए नजर आते हैं। दुर्गध भी आती है।