रांची(ब्यूरो)। जिन हाथों में किताबे होनी चाहिए उन हाथों में नशे की 'थैलीÓ है। जो नन्हें कदम स्कूलों की ओर बढऩे चाहिए वे कदम नशाखोरी की ओर बढ़ रहे है। नशे की जद में बचपन खोता जा रहा है, लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं है। कुछ मुनाफा कमाने के लिए जिम्मेवार नागरिक ही इन बच्चों को नशे के दलदल में धकेल रहे हैं। छोटे-छोटे बच्चों को आसानी से नशे का सामान उपलब्ध कराया जा रहा है। अहम सवाल यही है कि इन बच्चों तक नशे की पुडिय़ा कैसे पहुंच रही है? क्यों इन बच्चों को नशे के सामान उपलब्ध करा दिए जाते हंै। लेकिन इन सवालों के जवाब किसी के पास नहीं है।

उम्र तक नहीं देखते

राजधानी रांची की गलियों, मुहल्लों और कॉलोनियों में बचपन नशे की हालत में घूम रहा है। सात साल के बच्चे से लेकर 15 साल के किशोर तक पूरे दिन नशे में डूबे नजर आते हैं। नशे के लिए ये बच्चे डेंड्राइट और सुलेशन के अलावा व्हाइट्नर का उपयोग कर रहे हंै। मुहल्ले की दुकान से ही आसानी से इन तक नशे का सामान पहुंच जाता है। इसकी बिक्री करने वाले बच्चों की उम्र तक नहीं देखते।

रगों में दौड़ता है नशा

प्लास्टिक की छोटी थैली में सुलेशन या डेड्राइट गिराकर मुंह से फूंकते हैं और फिर शरीर के अंदर खींच लेते हैं। बच्चों की इस आदत से उनके घर वाले भी परेशान हैैं। घर वाले डांटते हैं, मगर वे उनकी आदत छुडा नहीं पा रहे। ज्यादा डांट-फटकार करने पर बच्चे चिड़चिड़े हो जाते हैैं और बेहद हिंसक बर्ताव करना शुरू कर देते हैं। किसी भी स्टेशनरी दुकान में व्हाइट्नर के साथ आसानी से डेंड्राइट मिल जाता है। इसके अलावा सुलेशन के छोटे-छोटे ट्यूब भी खरीद कर बच्चे रखते हैैं और थोड़ी-थोड़ी दर में इसे सांस से खींचते रहते हैं। सुलेशन जिसका उपयोग साइकिल के ट्यूब का पंचर बनाने, प्लास्टिक के सामान चिपकाने, जूते, चप्पल बनाने में किया जाता है लेकिन छोटे-छोटे बच्चे इसे नशे के लिए इसका उपयोग कर रहे हैं।

अब करने लगे हैैं चोरी

अपने नशे की लत को पूरा करने के लिए ये छोटे-छोटे बच्चे चोरी या छिनतई करने से भी नहीं हिचकते। जो बच्चे अपराध नहीं कर पाते वे अपनी इस जरूरत को पूरा करने के लिए चौक-चौराहों पर भीख मांगते हैं। फिर उसी पैसे से नशा करते हैं। बच्चों की भोली सूरत पर तरस खाकर लोग इन्हें एक-दो रुपए दे देते हैं लेकिन ये बच्चे अपने पेट की भूख मिटाने की बजाय नशे का सामान खरीदते हैं। दिनभर भीख मांगकर जुटाई राशि से अधिकतर बच्चे नशा करते हैं।

गांजा के भी शिकार

सिर्फ वाइटनर और सुलेशन ही नहीं, बल्कि कई बच्चे ऐसे भी हैं जो सिगरेट और गांजा भी पीने लगे हैं। लेकिन समस्या यह है कि नशे का कारोबार करने वाले कारोबारियों पर कोई कार्रवाई नहीं होती। सरकारी विभाग के अधिकारियों ने भी आंखों में पट्टी बांध रखी है। इसका नतीजा है कि राजधानी रांची में नशे का कारोबार तेजी से फल-फूल रहा है। इसकी गिरफ्त में छोटे-छोटे बच्चे फंस रहे हैं। गरीब मासूम बच्चे जिनके हाथों में कॉपी-किताब और पेंसिल होनी चाहिए थी, अब उनके हाथों में नशे के लिए पॉलिथीन और सुलेशन जैसी चीजें आ गई है।

कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा

सिटी के बड़ा तालाब के पास नशा कर रहे एक बच्चे सचिन (नाम परिवर्तित) ने बताया कि उसके पिताजी नहीं हैं, मां और बहन कूड़ा चुनने का काम करती है। वह भी उनके काम में योगदान देता है। अपने दोस्तों के साथ उसे भी नशे की आदत लग गई है। जबतक नशा नहीं करता है किसी काम में मन नहीं लगता है। कचरा बेच कर और भीख मांग कर वह अपनी जरूरत पूरी करता है। स्कूल जाने के संबंध में बच्चे ने कहा कि वह कभी स्कूल नहीं गया।

सुलेशन या वाइटनर के साथ मिलने वाला लिक्विड शरीर के तंत्रिका तंत्र को नुकसान पहुंचाता है। इसका ज्यादा सेवन करने से मानसिक और शारीरिक विकास पर भी असर पड़ता है। इसका सेवन करने के बाद कोई भी इंसान थोड़ी देर तक मानसिक रूप से सुस्त और बेहोशी की हालत में चला जाता है।

-डॉ अनिताभ कुमार, चाइल्ड स्पेशलिस्ट