RANCHI: बुधवार को रमजान के महीने की 29 तारीख थी। मगरिब के तमाम कोशिशें के बावजूद ईद का चांद कहीं नजर नहीं आया। इस वजह से अब ईद का त्यौहार 14 मई यानी शुक्रवार को मनाया जाएगा। रांची में ईद की नमाज किसी मस्जिद में नहीं होगी। अंजुमन इस्लामिया, रांची ने एक बयान में कहा है कि उसके अधीन हरमू रोड ईदगाह है, जिसमें ईद की नमाज का आयोजन नहीं किया जाएगा। इसके अलावा सिटी की मस्जिदों में भी आम लोगों के लिए ईद की नमाज का आयोजन नहीं होगा। सभी मस्जिदों में केवल चार लोग नमाज अदा करेंगे, जिसमें पेश-ईमाम, मोअज्जिन और दो ओहदेदार ही शामिल होंगे। आम लोगों से अपने घरों पर भी नमाज अदा करने की अपील अंजुमन की ओर से की गई है।

सोशल डिस्टेंसिंग का करें पालन

कोरोना संक्रमण को देखते हुए रांची के कई आलिमों ने कहा है कि ईद के दिन गले मिलने की रस्म अदायगी से परहेज करें। इस दौरान सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए ही लोगों को मुबारकबाद देने की अपील की गई है। अंजुमन के महासचिव हाजी मोख्तार अहमद ने कहा है कि जितना हो सके, लोग एक दूसरे से मिलने से परहेज करें। हो सके तो ऑनलाइन ही लोगों को मुबारकबाद पेश करें। इससे कोरोना संक्रमण को फैलने से रोका जा सकता है।

धार्मिक परंपरा निभाते हुए दें कोरोना को मात

तीन आशरे में बंटा पवित्र रमजान माह अब अंतिम मंजिल पड़ाव पर है। इस साल भी लोग ईद के दिन ईदगाह में नमाज अदा नहीं कर पाएंगे। पिछले साल भी कोरोना के कहर को देखते हुए सरकार के दिशा निर्देशों का बखूबी पालन किया गया था। इस साल भी कोरोना का दूसरा सत्र ज्यादा ही खतरनाक कहर बरपा रहा है, ऐसे में हमें और भी <स्हृद्द-क्तञ्जस्>यादा सतर्क रहने की जरूरत है। ईद के दिन धार्मिक परंपरा का निर्वाह करते हुए सामाजिक दूरी और मास्क लगाना कदापि नहीं भूलना है। छोटी सी भूल भी घातक साबित हो सकती है। यह सही है कि ईद सामूहिकता और भाईचारे का दूसरा नाम है। अकेला आदमी चाहे कि वह ईद की नमाज अदा कर ले तो अकेले-अकेले ईद की नमाज अदा करना संभव नहीं है, परंतु अभी के जो हालात हैं, हम कुदरत के आगे लाचार हैं। ईद में गले मिल ईद की बधाइयां देना तथा मीठी सेवइयां खाना खिलाना इसकी खासियत है पर कोरोना वायरस के कारण गले मिल या हाथ मिलाकर बधाइयां देने से फिलहाल हमें तो परहेज करना ही पड़ेगा। हम स्वस्थ रहेंगे तो हमारा परिवार हमारा समाज स्वस्थ रहेगा और हम अगले वर्ष अल्लाह की मर्जी से बेइंतहा खुशियों के साथ मिलजुल कर ईद मनाएंगे।

सरफे आलम, समाजसेवी सह युवा व्यवसायी

जिंदगी रही तो कई ईदें खुशियां ले कर आएंगी

लगातार दो ईदें कोरोना महामारी में गुजरीं। ऐसी ईद न कभी देखी न सुनी। रमजान के महीने में इफ्तार के समय चहल-पहल, सामूहिक इफ्तार का मंजर देखने को नहीं मिला। इफ्तार के बाद होटलों में लोग बड़े चाव से फिरनी, खीर, अरबी हलीम, गरमा-गरम जलेबी तथा चाय की चुस्कियों के साथ आपस में गुफ्तगू करते नजर नहीं आए। चांद रात की बाजार का मंजर सूना रहा। रोजेदार बड़ी सादगी से अपने घरों में इबतात करते रहे और भरसक जरूरतमंदों को इमदाद किया। ईद की नमाज का वो दिलकश नजारा भी लोग देखने को तरस गए। एक दूसरे से गले मिल गिला-शिकवा दूर करना, खुशियां बांटना, तरह-तरह के पकवान, मिठाइयां-सेवइयां खाना-खिलाना तथा ब<स्हृद्द-क्तञ्जस्>चों की ईदी, नए कपड़े-जूते पहन उधम मचाना उदासी में तब्दील हो गया। सभी पैगंबरों के दौर में ईद मनाई जाती रही लेकिन विगत 1442 साल से एक माह के रोजे के बाद ईद मनाने का जो सिलसिला चलता आ रहा है, वह अनूठा है। इस दिन अल्लाह रहमतों की बारिश करता है। इस महामारी के समय अल्लाह से यह दुआ करनी चाहिए कि पूरी इंसानियत को इस वबा से जल्द-से-जल्द निजात मिले। जिंदगी रही तो कई ईदें खुशियां ले कर आयेंगी।

डॉ मोहम्मद जाकिर, शिक्षाविद